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Channel: दिल की बात
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कभी चलना आसमानों पे ...मांजे की चरखी ले के ...

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खांसते बच्चे . ओर  बूढ़े मोहल्ले एक से लगते है
मै जब बड़ा होजाऊंगा....बस अड्डे के पास मकान नहीं बनाऊंगा ......मै रजाईसे मुंह निकालकर  करपापा से कहता हूँ...किसी फाइल में डूबे  पापा सिर्फ" हूँ "करते है ... सवेरे सवेरे  हमारेउठने से पहले पापा रोज दिल्ली जाते है ......रात देर में  घर आते है ...मै अक्सर कोशिश करता हूँ उनके आने तक जगारहूं...उन्हें पतंग पसंदनहीं है ...मां सुबह जल्दी उठ जाती है...दिन भर काम करती रहती है. ...मुझे  पतंग उडानीबहुत अच्छी लगती है ..आज मैंने पहला  पेचा काटा है ....वो भीराजू भैय्या  का ..राजू भैय्या बहुत अच्छी पतंग उड़ाते है ..पापा को पतंगक्यों पसंद नहीं है?...
मां से मंजे के लिए  पैसेमांगू तो कहती है सारे खर्च हो गए ...मेहमानों के बिस्किट लाने में ...मेहमान .रोज  आते है ..ढेर सारे!!  बस अड्डे के पासहम  रहते  है  …किराये  के  मकान  में  … थापर नगरगली नंबर चार में……बस अड्डे से मोहल्ले में खुलती  गली जिसकी एक  दीवार पर ना जाने कौन  फिल्मो के पोस्टर चिपका जाता है   ...थोडा आगे चलकर एक मंदिर....जिसका लालआँखों वाला  पुजारी  मुझे  उछल  कर घंटा बजाने पे घूरता है ....मुझे मन्दिरआना पसंद नहीं है पर  स्वेटर वाली आंटी आम पापड़ का मीठा पेकेट देती है ..इसलिए उनके साथ आता हूँ……..गाँव सेमेरठ  चले  किसी  भी  काम के वास्ते चले  शख्स  की    ..हमारे घर हाजिरी  तय    है  ……..... मम्मी- पापा किसीज़मीन की बात कररहे   है ... ..मुझे   नींद ने घेरना  शुरू किया है ....मै जगे रहने की कोशिश  कररहा हूँ...बीच बीच में कुछ आवाजेसुने देती है ...पैसा .लोन...ढाई सौ गज...आहिस्ता - आहिस्ता   सारी आवाजेखो  जाती  है  … … कोई मुझे  रजाई  उड़ाते  वक़्त  प्यार कर रहा है ..चुभती  दाढ़ी ...पापा है .....
उम्मीदों केआसमान मेंयकीनो  के मांजे
सुबह  उठता  हूँ पापा  चले  गए  है  …मां  उन की केप   पहना  रही  है  ..मुझे  केप  पहनना पसंद नहीं ..बालकैसेचिपके चिपके से हो जाते है 
"मुझे  मंजा  लाना  है  मम्मी " …….... मांजैसे सुनती नहीं ...सीधे केप से  कान ढँक देती है ....स्कूल  पास  ही  है .. मै  पैदल  चल कर जाता हूँ..... स्कूल के नीचे बायीं ओर एक पोस्ट ऑफिस है ..जिसमे काम करने  वाले सारे बूढ़ेहै ..सब के सफ़ेद बाल है  ...दाई ओर एक नाई की दूकान है जिसे चलाना वालाकोई रिटायर्ड फौजी है ... उसे  "कटोरा कट" काटने में बड़ा मजा आता है ..छोटे छोटे बाल...मां अक्सर उसकी धमकी देती है.......गेट   पर  देव  खड़ा  है .... ऊँचा  हैओर मोटा भी...आते जाते  मेरी केप उतार देता है .....मुझे  उससे  डर  लगता  है  ..ओर मुझे वो  पसंद नहीं .....मै  साइड  से  निकल  जाता   हूँ ...आजकल  विनीत  मेरा  नया  पार्टनर  है ....अपने हाथ में वो एक लाल रंग की गाड़ीमुट्ठी  में दबाये रखता है ..क्लास शुरू होते ही उसे बेग की जेब में रखदेता है ....
...लंच  में  .. मै टिफिनखोलता हूँ....आलू ओर परांठा है ..मां.  रोज रोज  बस आलू ओर परांठे  देती  है .....जिस रोज आलू नहीं ..उस रोजअचार ...अचार का तेल टिफिन सेनिकलकर ..सब कुछ पीला कर देता है ..मेरा बेग भी.....विनीत ने अपना टिफिन खोला है ..उसका सफ़ेदपरांठा है...प्याज ओरटमाटर बीच में ...".खायेगा'.विनीत मुझसे पूछता है ....वो  मेरा बहुतअच्छा  वाला दोस्त नहीं है ..पर उसका परांठा!!!......मैआधे  से  ज्यादा  खा  जाता  हूँ …....उसका   "सफ़ेद परांठा"  कितना  अच्छा  है  !
लंच  के  बाद  अगला  पीरियड   हिस्टरी  का  है ….मेरा  कुछ  होम  वर्क  बाकी  है  ..मै  विनीत  की  कॉपी  से  कर  रहा  हूँ ….देव  ने  मेरी  केप  उतार  ली  है ….मै  उससे  लेने  की  कोशिश  करता  हूँ उसने मेरी हिस्टरी  की कोपी  उठा ली है....वापस लेने में ….  हिस्ट्री की कोपी फट गयी है ...होमवर्क का चेप्टर भी......
 पीरियड में  . हिस्ट्री कीमैडम  मुट्ठी बंद करवा के  स्केलको खड़ा करके मारती है ....बहुत जोर से लगती है...सीटपर जाकर आंसू पोछता  हुआ मै सोचताहूँ..टीचर बना तो बच्चो को नहीं मारूंगा !
स्कूल से लौटता हूँ तोसीडियो पर मुड़ी तुड़ी अधजली .बीड़िया देख मुझे गुस्सा आता है   ..मांरोज कीतरह कुछ बनाने मेंजुटी है .. कितना बड़ा गाँव है?

उन दिनों सब  लोग एक से  थे ...न ज्यादा अमीर .न ज्यादा गरीब...
 उस रोज  "स्वेटर वालीआंटी" ने ..मुझेओर छोटे को  सुबह खाने पर  बुलाया है ..वो  सर्दियों में बहुत सारेस्वेटर   बुनती  है .....इसलिए उन्हें सब स्वेटर वाली आंटी  कहते है ....वे  बहुत अच्छी  है .. हमेशा प्यार करती है  .सुबह के स्कूल में अभी  टाइम है ...वहां  पहुँचताहूँ  तो देखता हूँ  बहुत सारे बच्चे है पूरी ..काले छोले..ओर हलवा ...कालेछोले मुझे बहुत अच्छे  लगते  है कई दिनों से आंटी मंदिर नहीं गयी  .... आंटी कापेटफूलाहुआहै .
"आप बीमार हो'.....मै पूछता हूँ...
वे हंसती है ...ओर मेरेसर पर हाथ फेरती है.ओर थोडा हलवा मेरी प्लेट में डाल देती है .
"आंटी   के  पेट  में  बेबी  है "बराबर में बैठी .रविंदर  कौर  मुझे  धीमे  से  बताती  है  ….रविंदर  कौर  गली  नंबर  तीन  में  रहती  है ...बड़ी होशियार है ..नेल कटर से नेल  काटती है .(   पापा अपने  ब्लेड से  नेल  काटते  है ) उसके  घर  में  एक  बड़ा  डौगी  है….जब  कभी  "लंगड़ी - टांग"  में  उससे  लड़ो  तो  वो  बहुत  जोर  से  भौंकता  है  ….
पेट  भर गया है ...ऐसा  जैसे  फट जाएगा .... ..स्कूल पहुँचता हूँ तो देखताहूँ एक कोने में भीड़ जमा है ...विनीत केहोठो पर खून है ....देव   ने उसेमारा है....देव के हाथ में उसकी गाडी है ...विनीत.  रो रहा है . .....किसी ने मुझे देव की ओरधक्का दिया है ...."तू लडेगा" ..देव मेरी ओर बढ़ा  है ...मेरी घिघ्घी  बंध आयी है ...देव ने हाथ घुमायाहै...मै पीछे हटगया  हूँ फिर  जाने  क्या  हुआ  है  के  मैंने  घूंसे  बरसाने  शुरू  किये  है  …लगतार  ….देव  गिर  गया  है  …..मुझे  लगता  है  काले  छोलो  ने  मुझमे  ताकत  भर  दी  है  .....
स्कूली ड्रेस में भी सारे बच्चे एक से लगते है
सुबह उठा  हूँ... वीर सिंह अंकल आये है ....चंडीगढ़ से ....मेरे लिए हमेशा  कोई  किताब लेकर आते है ..... पापा बताते है बचपन के दोस्त है….एक हीगाँव से निकलेचंडीगढ़  सेवे जब भी सन्डे को  आते है ..पापा उनके साथघंटोचेस खेलते है ..........रात को वीर सिंह अंकल मुझे कहानिया सुनाते है
.अगले  दिन  विनीत ने  मुझे घर पे बुलाया है....वो गलीनंबर पांच में रहता है....उसके पास मांजे  की एक चरखी है ...बहुत सारीपतंगे ...हम उसकी छत   से पतंग   उड़ाते है ..उसकी मम्मी  नीचे   बुलाती है ...प्लेट में गरम गरम सफ़ेद परांठा है ...ब्रेड के साथ.......मै पूरा खाजाता हूँ..... ….ओर ऑमलेट  खायोगे बेटे? उसकी मम्मी पूछ रही है .... ऑमलेट !!!!!..मैंने अंडा खाया है ....मै डर गया हूँ.....नहीं ...मै कहता हूँ....वापस लौटते वक़्त मन में अजीब सा गिल्ट है ..... घर जाने से पहले गली नंबर  तीन के  अस्पताल के नल से मुंह धोता हूँ....  मम्मी को नहीं बतायूँगा..बहुत मार पड़ेगी  
रात को वीर सिंह अंकल मुझे एक कहानी सुनाते हैवे कहानिया लिखते भी है ..."मै भी बड़ा होकर कहानिया लिखूंगा" ....मै उनसे कहता हूँ....
सपने में उनकी कहानी के साथ ऑमलेट भी आया है!
दो रोज से   मै विनीत के घर नहीं गया हूँ......तीसरे दिनविनीत   मुझे बुलाने आया है....मै शर्त रखता हूँ ऑमलेटनहीं  खायूँगा .......फिर कई दिन .रंग बिरंगी पतंगों.में बीतते है ...हाथ की अंगुलिया काटने लगी है मंजो से .... उसकी मम्मी ब्रेड सेंडविचबनाने लगी है ....उनके यहाँ की  ब्रेड कितनी मुलायम होती है न ...साफसुथरी  कोनो से कटी हुई.....आठ दिन बाद बसंत है ...पतंगों का त्यौहार ... हम ने उस दिन के लिए  एक रुपये वाली बड़ी पतंग भी खरीदी  है....".सरदारा "….
वक़्त के कन्ने कटते है जब ..
अगले रोज विनीत स्कूल में नहीं आया है ....दोपहर को मै उसके घर जाताहूँ....उसके यहां सामान की पेकिंग हो रही है ....पापा का ट्रांसफर हो गया ..वो बताता है ...उस रोज हम छत  पर पतंग नहीं उड़ाते...न सेंडविच खाते ...दोदिन बाद उसे जाना है ...वापस लौटते वक़्त  मै सड़क के कई पथ्थरो पर ठोकरमारता हूँ...  घर आकर मां से झगड़ता  हूँ..बिना खाए सो जाता हूँ....
सुबह जल्दी आँख  खुली है .पापा तैयार  होकर चाय पी रहे है .ये ट्रांसफरक्या होता है पापा ....मै पापा से पूछता हूँ.....वे कुछ समझाते है .जो मेरीसमझ नहीं आया है........
क्या आपका भी होगा
?..मै पूछता हूँ......वे हाँ कहते है ....जाते वक़्त मुझे प्यार करते है ......
मेरा स्कूल जाने का
  मन नहीं है ......मां गुस्सा होकर तैयार करके भेजती है .स्कूल में मन नहीं लगा है ...लौटा हूँ तो मां बताती है ... विनीतआयाथा..मुझे घर पे बुलाया है ...
मै उस रोज उसके घर नहीं गया हूँ...मां के कहने पर भी नहीं.... आज फिर मां से लड़ा हूँ कई बार
.. अगले दिन सुबह  मुझे ठण्ड  सी   लगती है ....स्कूल   में सब कुछ सुस्तसुस्त सा है ...मेरे सर में बहुत दर्द है....आज घर बहुत दूर  लगा है ......सीढियों पर चढ़ते चढ़ते  रुक गया हूँ... .मां दौड़ी आयी है ....कहती हैमुझे बुखार है ...रोते हुए प्यार करती है ....मै जब भी बीमार होताहूँ..मां बहुत प्यार करती है .....दवाई के साथ वो  मुझे ग्लूकोज़ काबिस्किट भी देती  है..मै दवाई लेकर  सो गया हूँ.....  घंटो  सोया हूँ...उठता हूँ....तो कमरे  के बाहर में हवा के साथ अजीब सी आवाजे सुनाई  दी  है .जानी पहचानी ...क्या .पापा छुट्टी लेकरआये है.?... ...."..मां "मै आवाज देता हूँ.....मां के हाथ मेंढेर सारी पतंगे है ओर हुचकी है .....बताती है विनीत आया था....छोड़ गया है... पापा कमरे के कोने में कोई कटोरी लेकर खड़े है ...गाजर का हलवा है ...मेरी फेवरेट डिशहवा से एक पतंग बाहर निकल कर गिरती है…."सरदारा" है….
 ...जनवरी महीने का एक मंगलवार   साल२०११ ..
नीचे अख़बार पढने उतरा हूँ तो मां चाय पीते पीते बताती
  है .वीर सिंह अंकलनहीं रहे .मन अजीब सा हो गया है ...... ...अखबार की तह बताती है ... ... पापा ने नहीं पढ़ा ....पापाचुप चुप से  है.... चाय में चीनी नहीं है ...पर वे चुपचाप पी रहे है ... उन्हें एक घंटे में चंडीगढ़निकलना है ...मुझे उनकी ख़ामोशीमुझे बैचेन करती है . ड्राईवर  को हिदायत देकर   भेजता हूं……पापा को अगले दिन आना है.....
बुधवार की दोपहर....
.. क्लीनिक से लौटते  वक़्त  सोचा है ......अगले  आधे दिन की छुट्टी रखूंगागाडी पार्क करते  देखता हूँ.......पापा दूरसड़क पे से आर्यन के साथ आ रहे है ...उसके हाथ में ढेर सारी पतंगे है….सबसे आगे "सरदारा "है

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