हिल रोड के उस चर्च के बाहर जूते उतारने की कवायद नहीं है ….आलस में उस कवायद का बेजा फायदा उठा कर..मै कैमरा हाथमें लिए जूते पहने अन्दर चला जाता हूँ....आर्यन अपने सेंडिल से उलझा मुझेआवाज दे रहा है ......मै उसे अनसुना कर भीतरचला गया हूँ.बेंचो पे कितने लोग बैठे है ..... अपनी अपनी…उम्मीदों ...ख्वाहिशो ....गमो को अंडरलाइन किये हुए….यहां मोमबत्तियो की सिफारिश है .....झुके हुए सर में ज्यादा उम्र दराज लोग है .....अक्सर पचास के बाद हीखुदा की तलब ज्यादा लगती है आदमी को....डेमेज कंट्रोल एक्सरसाइज़ !..खुदा! किसने किया होगा उसका नामकरण ?. रोज कितने कितने क्रिटिक्स के दरमियांसे गुजरना पड़ता है .. उसे..पढ़े लिखे……बहुत पढ़े लिखे ... ....बे पढ़ेक्रिटिक्स.........जिनकी थेंक्स गिविंग की आदत नहीं है......
.इतने साल बाद भी शायद एक दिन वास्ते भी ….खुदा को परफेक्ट डिकलेयर नहीं किया गया …. ..शेखर कहता था ...आदमी ने अपनी रूह की रिपेयर वास्ते गेराज.खोले है .अलग अलग नामो से……जिसके मेकेनिक को …कभीछुट्टी की इज़ाज़त नहीं !
.....सामने रखी बेंच पर कुछ देर बैठ डिज़िटल कैमरे से मै कुछफोटो लेता हूँ...यहाँ वहां घूम के हम सब बाहर निकले है ....सड़क के उस पारचर्च के सामने शायद एक प्रार्थना स्थल है ...वहां की कुछ फोटो लेकर हमगाडी में बैठे है ...ड्राइवर को बेंड स्टेंड जाने के निर्देश मिले है .....मेरा मोबाइल बजा है ...लम्बी बातचीत है ....बेंड स्टेंड आ गया है….
समंदर की लहरे उछाल मार रही है .. हाई टाइड की सम्भानाये पिछले कई दिनों से है...मुंबई अब बादलो के इकठ्ठाहोने से डरने लगा है......कुछ किनारों पे कई जोड़े प्रेम कादुस्हासिक प्रदर्शन कर रहे है ...उनसे दूर एक कोने पर .मै आर्यनको आगेचट्टानों पे ले जाना चाहता हूँ ....वो कुछ अनमना सा है ......कुछ गुस्से में .....
आपने अच्छा नहीं किया .......
मै उसकी ओर देखता हूँ.....
जूते पहनकर कर कोई मंदिर में जाता है ?
आपने अच्छा नहीं किया .......
मै उसकी ओर देखता हूँ.....
जूते पहनकर कर कोई मंदिर में जाता है ?
उदास आँखो से देखता है
दूरगली के कोनो पर
नीले –हरे –लाल
कितने रंग बिरंगे
मोती बिखरे है वहाँ
झुकता है सजदे मे
जब उसका सर
जेब मे पड़े काँच
खनक जाते है
कितनी सर्द ओर बोलतीनिगाहे
जम जाती है उसके चेहरे पर
घबरा कर आँखे बंद कर
जाने क्या क्या बुदबुदाता है......
यूँ भागता है फिर
गली की जानिब………
कहते है
उसकी दुआओ मे सबसे ज़्यादा असर है
"ऐखुदा”
तेरा नन्हा नमाज़ी कन्चे खेल रहा है.......
पुनश्च:
उन चट्टानों के इर्द गिर्द तमाम शोर गुल में .एक कोने पे ...एक घायल कौवाहै.....खुले घाव लिए....दूसरे कौवे बारी-बारी से आ रहे है ....नोचकर जा रहे है .......वो जिंदा है .पर प्रतिरोध की हालत में नहीं है .....मेरे साथ बैठा दीपक एक पत्थर उन कौवो को मारने के लिए उठाता है ...."रहने दो बेटा...ये कुदरत का नियम है ......".कुछ दूर बैठे एक बुजुर्गउसे रोकते है ......कुदरत का नियम ?
.आदमी कितनी निष्ठा से इस का पालन कर रहा है ना!
.आदमी कितनी निष्ठा से इस का पालन कर रहा है ना!