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Channel: दिल की बात
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मौजजे होते है ....ये बात सुना करते थे

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उम्र तकरीबन एक साल.. गोरा  रंग ...घुंघराले लम्बे बाल ..एक हाथ में काले मोतियों से बना कड़ा ...बात करती आँखे ...जिनका स्केलेरा बिलकुल व्हाईट है...दुनियादारी से. .नॉन पोल्यूटिड ...  अभी अपने  छह साला भाई पर जमी है ....जो बेमन से बस्ते को पीठ पर टांग रहा है....कई दिनों की छुट्टी  उदासी को भी किताबो संग रख देती है .. ओर  ... .पैरो को धीमा ..हाथ में .पानी की बोतल  थामे...आहिस्ता आहिस्ता  सर झुकाये   बड़ा  स्कूल   के गेट  तक का फासला तय  कर रहा है..... ..कुछ कदम का फासला ........  नन्हे ने  उसे अपनी आवाज में बुलाया है ......बड़ा जैसे दुनियादारी की सोचो में अब भी गुम है ....कदम दर कदम भाई का पीछा करती.... नन्हे की निगाहों में एक अजीब  सी बैचेनी  है..... ......सड़क की दूसरी  जरूरी  -गैरजरूरी ... तमाम आवाजो के बीच .........नन्हे  ने  मां की   गोद से उचक कर... फिर आवाज दी है ..गेट के नजदीक ....बड़ा  पीछे मुड़ा है.....एक मुस्कराहट दी है........नन्हा खिलखिला उठा  है.....
......बट्टा रख दो इस गुजरते लम्हे पे..........हाय पॉज़ का बटन दबायो कोई.!!






आज की त्रिवेणी...

"सलेक्शन "

सफ़ेद चादर  पे फलक की....  सलवटे है सुबह से
 काले बादल के  कई टप्पे यहाँ वहां पड़े है ..

रंगरोगन करने वाला  तो कोई तजुर्बेकार  चुनना था  तुमने .


खुरदुरी बायोग्राफी के दो खुरदुरे एबस्ट्रेक्ट.......

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नोस्टेल्जिया भी  विस्थापित होता  है ....
वोहमसे दो साल बड़ा था  ..जब  हम दसवी में थे   वो  ग्यारहवी  में ....मेथ्स की .ट्रिगनोमेट्री  अबूझ पहेली थी ..कुछ कुछ डरावनी भी ...उसनेडर निकाला ..." बोर्ड के  मेथ्स  के एक्जाम  में ....हौसला देने सुबह   वो  अपनी साइकिल  से मेरे सेंटर तक मेरे साथ  आया था......उसके पिता  नेरायपुर में रहते रहते दूसरी शादी कर ली  थी..अचानक उसकी दुनिया  बढ़ी  होगयी थी ....वो   भी....जब हम शाम को  पार्क में क्रिकेट  खेल रहे होते ..वो   ट्यूशन  पढ़ा रहा होता ......सन्डे के दिन .कुछ देर खेलने आता तोउसकी मां कोने से आवाज देती  "बब्बू ".....बड़ी चुभती  थी वो आवाज....दोसाल बाद  ....पहले ही  अटेम्प्ट   में  इंजीयरिंग में उसका एडमिशन हुआ ....दो बहनों के  रहने का  डर मां पर हावी हो गया .ओर बब्बू ट्यूशन  मेंऐसा  उलझा के फिर कभी निकल न सका ...... गाडी मोड़ते हुए देखता हूँ........ उसके घर के बाहर अब भी साइकिलो की लम्बी कतारे है…... वो अब  हमसे कई साल बड़ा है .....

समय की नोक पर टिके  आदमी..... तुम  किसी पहले का ही मेटामोरफोसिस हो

हने वाले कहते है ....."ओरिजनल" मिडिल क्लास  नहीं  रहा ..इसकी भी कई क्लास हो गयी है  ..हरदोचारसालबाद    . नए एडिशन भी  निकल रहे  है  ....मध्यमवर्गीय ईगो" वो भी .ओरिजनल नहीं  रहा.... ...अब वाले में दिखावे ओर छिछोरेपन की परसेंटेज़ ज्यादा  है ".......फिमेल वाइग्रा भी अब लौंच हो गयी है ....  भगवान्  अब स्लो मोशन में नहीं चलता है ...कलयुग .ओर सतयुग जैसे सौ सालो का कांसेप्ट चला गया है ..हर दस साल में भगवान्  कदम बढ़ा देता है ..  ओर दुनिया भी  बदल  जाती है ......जेनरेशन गेप अब भाइयो के बीच बैठ के हँसता है   ... ... प्रायश्चित करने के लिए  मंदिर मस्जिद के दरवाजे पे जाने के बजाय ..कंप्यूटर पे "एपोलोज़ी डोट कोम" पे अपने गुनाह लिखकर आराम से  मेगी नूडल्स खा कर सोया जा सकता है ....सन्डे के दिन राजमा छोंक कर चूल्हे पर चढ़ा कर नीता दीदी अख़बार फैलाकर "वधू चाहिए" वाले कोलम को ढूंढ कर उस पर गोल घेरा के निशान नहीं  लगाती है ......ना छोटी वाली  उनके सर पे से सफ़ेद बाल  चुन चुन के  निकालती है ...शादी डोट कोम पे दोनों बहने शीट -पिट करती है.मल्होत्राइनका.छोटापिंकू .......स्कूल जाने के लिए .ए.सी वेन से जाता हैउसके स्कूल के सारे कमरे  ए. सी है ..... ..... .पिंकू को बड़े होकर "इन्डियन -आइडोल”  बनना  है....…….बारहवी में ग्रेस मार्क लेकर पास हुई मल्होत्राइन की    बड़ी बेटी.".बेबी ".एम् टी.वी के रोडिस में   अंग्रेजी -हिंदी की कई गलिया देकर   डी. जे बन लाखो रुपये महीना कमाने लगी  है ..      अभी अभी एक टी वी कमर्शियल   भी मिला है .   .उसकी क्लास के टोपर.. .बिट्टू की आँखों पर बड़े बड़े मोटे चश्मे है.  रोज  पोस्ट ऑफिस में कई  कम्पीटीशन फ़ार्म  भरके रजिस्ट्री कराता है…....शर्माइन  को लगता है   .....बिट्टू की बुरी सोहबत से उनका लड़का "डल' होने लगा है ...अब ज़माना स्मार्ट लोगो का है…." …..अंग्रेजी बोलना स्मार्टनेस की अनिवार्य शर्त है....
अपना बकाया लेने आयी.मायाको पैसे देते वक़्त..मल्होत्राइन उसका "करेक्टर सर्टिफिकेट" पकड़ा रही है.....उनीस साल की माया ..हाथ में एक साल .ओर पेट  में  ४ महीने के बच्चे को लिए सुबह सात बजे काम पे आ जाती थी  .... जिस रोज  चेहरा सूजा होता है ..उस दिन दूर से नमस्ते नहीं करती थी ...नजर झुका कर गुजरती थी ... . ऐसी हिन्दुतानी औरते शानदार  पंचिंग बेग है .....आफ्टर इफेक्ट्स ऑफ़ शराब ...........मल्होत्राइन रोज उसे झिड़कती थी  ...बच्चे को लाने पे.... .कहाँ छोड़े ?बाप को फेफड़ो का  टी.बी खा गया .....मां पिछले बरस गुजर गयी ...उससे ढाई साल छोटी खुद दूसरे घरो में  जाती है  ...बिना कोम्पप्लेन" पिये ही उसका बेटा  बड़ाहो रहा है....सुना है अपनी कोख किराये पे देने के लिए गुजरात के अनंद में शिफ्ट हो रही  है ........तीन लाख रुपये  मिलेगे ...ओर गर्भवस्था तक मेंटेनेस के लिए कुछ हज़ार रुपये ..
कलजुग है .कलजुग.....मल्होत्राइन की सास कानो पे हाथ रखके  युग बदलने की कन्फर्मेशन दे रही है ..... बेबी अपने मोबाइल से  कोई नॉन वेज़ जोक फोरवर्ड कर रही है  सामने वाले घर में बिट्टू शर्मा जी  से  किसी फॉर्म पर साइन करवा रहा है . बराबर में धोबी भी खड़ा है ....फॉर्म साइन करते करते धोबी  के प्रेस के एक रुपये से डेड रुपये  बढाने  पर शर्मा जी उसेडांट रहे है…..सरकारी  मुलाजिम है शर्मा जी.... .गजेटेड ऑफिसर…. सरकार अब भी मानती है के केवलसरकारी अफसरसच बोलते है..
.टूटे हत्थे वाली  आराम कुर्सी पे बैठे त्यागी अंकल बाहर वाले  आँगन में  अपने पोते  से अखबार सुन रहे  है ...दोनों पोतो को डयूटिया अलग अलग दिन है ....काले पानी का असर दोनों आँखों पर है ... बारीक अक्षर धुंधले दिखते है ... इस बदलती दुनिया में उनके पोते उम्मीद के सी ऍफ़एल   बल्बजलाते है...

तुम प्रेम कहानिया नहीं लिखते..!!!!!!

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सफ़रमें लोगबेवजह का कितना पढ़ते है ...एक ही अखबार को कितनी बार मोड़तोड़के  .... ...सामनेवाले  शख्स ने तीसरी बार अखबार उठाया  है......वो  बरसो बाद ट्रेन में बैठाहै ... ....सामने  की  सीट  के दूसरे हिस्सेपर एक लड़का बैठा है ....घुंघराले लम्बे  बाल .......हाथमें गिटार...... कोई धुन बजा रहा है ..."केयर लेस व्हिस्पर है  ..".....किनारेवालीसीट पर एकलड़की किताब हाथ में लिए बैठी है ....एक लम्हे में कितनी पेरेलल स्टोरियाचलती है ...

वोभी इसी शहर में है ....पांच महीने पहले मारीशस से इंडिया शिफ्ट  हुई है ....कितना अजीब वर्ड है न "शिफ्ट ".....नयी जगह भीतर भी शायद "कुछ शिफ्ट "कर देती है   ...चार दिन पहले मानसी से उसकानंबर लिया था उसने ..
..कितना कुछ तो बांटा था हम दोनों ने ..कई साल ....फिर भी उसे फोन करते वक़्त वो नोर्मल नहीं था .....क्यों.?..
सन्डे  को  को मिलती हूँ .लंच साथ लेगे....उसने कहा था  फोन पर वही आवाज... ....कितने सालो बाद.....शायद१३ साल ........
. शहर शायद नजदीक है .ट्रेन मिनट दो मिनट के लिए रुकी है ..नए .मुसाफिरों मेंकुछ स्कूली लडकिया भी है सरकारी  स्कूली की  हिंदी मीडियमनुमा  लडकियाजिनके .  दुपट्टे   उनसे भी बड़े है ....गोया इम्तिहान के नंबर दुपट्टे कीचौड़ाई तय करती है...गिटार अब भी बज रहा है .धुन चेंज हो गयी है ....स्कूलीलडकिया चुहल कर रही है .... . वो फोन पर दो चार एस एम् एस करता है ........ अखबार पढने वाला एक टक किसी स्कूली लड़की  को  घूर रहा रहा है....वो  अपनीसहेली   के  पीछे सिमट सी  गयी है ...शायद इसी कारण से

१३ साल छह महीने ओरउनत्तीस दिन बाद के एक सन्डे की दोपहर  ....

 होटल की लोबी में वो पिछले पैंतालिस  मिनट  से वक़्त काटने की कई तरकीबेआजमा चूका है ... ....शीशे के दरवाजे के उस पार  वो ब्लेक साड़ी में लिपटी खड़ीदिखती  है .ब्लेक साड़ी  उसकी फेवरेट है..वो जानती है वो खड़ा हुआ  है...काफी कुछतब्दील हुआ है ..वो भर गयी है कई जगह से ...आँखों पर चश्मा है......
सोरी यार शहर में नयी हूँ इसलिए जगह नहीं पहचानती ...पूछते पूछते आयीहूँ....वो पास खड़ी हुई है ....उसी  बोडी ड्यूडेरेंट की खुशबु नथुनों मेंजा घुसी है .. वो अब भी वही ब्रांड इस्तेमाल करती  है
"तुम अब भी खुद ड्राइव करती हो..."
हाँ ....उसने चश्मा हटा दिया है .चेहरे पर आँख के नीचे उम्र के थोड़े निशानआये है ...हम्म्म..माथे पर भी .....
वोतुमकिसका   शेर कहतेथे ......के "कोई सौ बार तेरी गलीसे गुजरा हूँ .कोईसौ  बार तू अपनी खिड़की पे नहींआयी....सोचा आज उसी शेर को लोबी में याद करोगे
   वो  याद  करने  की  कोशिश  करता  है    पर  याद  नहीं    रहा  …
..कितना स्कोर हुआ  गालियों  का ...?वो पूछती है ....
वो सिर्फ मुस्कराया है.......
रेस्ट्रोरेन्ट तक जाते जाते उन्होंने कई कुछ औपचारिकबाते की है ......मसलन काम....मसलन ट्रेन का वक़्त ... रेस्ट्रोरेन्ट के उस सेक्शन को उन्होंने गाँव का लुक दिया है ..पांच सिताराहोटलों में भी अब गाँव बसते है ...वो यादकरता है उसे चाइनीज़ का टेस्ट उसी ने डवलप   कराया था..किसीखूबसूरत लड़की के सामने .पहली बार उनलकड़ी के इन्सट्रूमेंट से खाना बड़ा अजीब लगा था उसे....डरकर  सिर्फ  "ड्रम्स ऑफ़ हेवन"खाये  थे उसने .....
बैठते हुए  वो अपने हाथ में पकडे एक पेकेट उसे थमाता है ....केनेजी काइंस्ट्रुमेंटल. है........
"अजीब  सा लगता है ...कभी सोचा नहीं था ...हमारे बीच ये रस्म भीहोगी.....".वो कहती है
कैसी हो?
एज यूजवल .खालिस  शादी शुदा   औरतो की माफिक... शादी के बाद औरत की जिंदगी  थोड़ी  स्लो मोशन में चलती है.........तुम्हारा क्या हाल है….कविताये-शविताये    जिंदा   है.....?
उसके बांये गाल पर एक गढ्ढा पड़ता था ...अब भी पड़ता है पर इतना गहरानहीं.......
"ऐसे मत देखो .मै कोंशियस  हो रही हूँ" ...वो कहती है  .तो वो झेंप उठा है .....
जानतेहो ....बरसो बाद मैंने अपने शरीर को गौर से देखा ...ऐसानहीं के मै ध्यान नहींरखती पर आजयहाँ आने से पहले  थोड़ीकॉन्शियस हुई....फिर तुम्हारी कनपटी के सफ़ेद बालो ओर  सरके उड़े बालो को देखकरतसल्ली मिली....के तुम भी कहाँ पहले जैसे होअब.....?
उसमेकुछ बाते अब भी वैसी है ...अजीब से सचो को यूं बोल देना ..
तुम अब भी वही ब्रांड पीते हो.....वो सिगरेट का पेकेट  निकालती है अपनेपर्स से ....
वो हैरानी से उसे देखता है ....
नहीं…..मैंने पीना छोड़ दिया है .
...वो सिगरेट के पैकेट को थामेरुक गयी है  ...
वो मुस्कराता है.....ऐसी कोई शर्त नहीं है ...कोई पुराना मिल जाता है तो
पी  भी लेता हूँ....पर बाँट कर!
उसनेसिगरेट का पेकेट टेबुल  पर रख दिया है
बाई गोंड !!तुम  बदल गए हो.....
वो मुस्कराता है... बाई गोंड अभी भी मौजूद है…….
कुछ नहीं बस भीतर कुछ चीजों ने अपना क्रम बदल लिया है  ...
वो उसकी कनपटी  के सफ़ेद बाल देख रही है ."तुम्हारे बाल जल्दी सफ़ेद हो गए 'है ना..
कभी याद आती है मेरी”?
 .....ऐसे सवालों  के बाद अक्सर पॉज़ स्वंय अपनी जगह तलाश लेता है ....ये सवाल तो उसके ज़ेहन में अक्सर उठता है….इस सवाल को वो इस मुलाकात के दरमियाँ नहीं लाना चाहता था .पर कुछ सवाल  प्लान नहीं होते है ....
पर जवाब भी वो खुद ही देती है .".जब कभी टी. वी परबॉम्बे आती है ...तुम्हे याद करती हूँ.... "
बॉम्बे उन्होंने तीन बार देखी है  .एक साथ .....पूरी मुलाकात में पहली बार उसकेभीतर कुछ पिघला है ..छूने की तमन्ना भी हुई है ..
"तुमने जवाब नहीं दिया...."
जब कभी ड्रम्स ऑफ़ हेवन  खाता हूँ तुम्हे याद करता हूँ
वो हंसी है.
अब ख़ामोशी अपनी जगह ढूंढ कर  कुछ देर बैठती है......
"अच्छा है हम दोनों की शादी नहीं हुई.... उसने ख़ामोशी को हटाया है" एक दूसरे का सब कुछजान लेने के बाद उसे उसी तरह प्यार करना मुश्किल होता होगा ना "
वो उसको देखता है ... जाने  क्यों सिगरेट पीने की  तलब उठी है ..पीछे कुछइंस्ट्रूमेंटल बज रहा है ... खाने से पहले सूप आया है ..
.... …“जानती हो उस  उम्र  में  हमें  बहुत    कुछ   चाहिए  होता  है …. प्यार की कई किस्मे होती है ....... कई  शक्ले..आहिस्ता - आहिस्ता  जब जिंदगी मेंदाखिल  होती है ...शर्ते    फ़िल्टर  होने  लगती  है’” …...कभी कभी हम वक़्त के साथ अपने हिस्से का  तजुर्मा गलत कर देते है ....शायदवक़्त की अपनीलिमिटेशंसहोती हो...
वो उसकी आँखों में देखती है ..."डेस्टिनी”….फिर हंसी है
खाने के दौरान  कई दूसरे मसले उठते है ....
जोइंट फेमिली में रहना मुश्किल है भाई...कई जगह स्क्रीनिंग से गुजरना पड़ताहै ....
पहले जब वो  इस तरह से झुंझला कर अपनी तकलीफ  किसीबात  पर जाहिर करती  थी ....   तो कितनी खूबसूरत लगती थी ..... ..वो चीजों को मेनेज करना सीख गयी है
जाने से पहले .उसकी आँखों में सीधे झांकती  है. .एक बात पूंछु?
... .. इस तरह से पूछे जाने वाले   सवाल  अक्सर  मुश्किल  होते है..
कितनी प्रतिशत बची हूँ मै तुम में?
कुछचीज़े ऐसे  ही छोड़ी जाती है ....अनडिस्टर्ब .... फ्लेश्बेक को  खूबसूरत ही रहना चाहिए …. 
एक ठंडी सांस!!
क्या तुम्हे ड्रॉप करूँ स्टेशन तक? वो पूछती है
नहीं .होटल की टेक्सी है ...थोडा सामान भी पेक करना है 

 चाइनीज़ खाते रहना..... खास तौर से ड्रम्स ऑफ़ हेवन ....विदा लेती वक़्तवो बोली है
रेलवे स्टेशन   की ओर जाती टेक्सी में ....  उसे जाने क्यों लगता है ....इस मुलाकात में  प्यार नुमा  सा..जायका नहीं थाकुछ मिसिंग था ....तो क्या प्यार भी वक़्त के साथ रिसता है.?..

ट्रेन में चढ़ते हुए हुए उसने देखा है
घुंघराले लम्बे  बालो वाला लड़का वही लड़का गिटार कंधे पे टाँगे ट्रेन में चढ़ रहा है ...उसके साथ एक लड़की है ..जिसके कान में वो कुछ फुफुसा रहा है ..सामन रखकर वो मुड़ा है ...वेदोनोंउसीके  कम्पार्टमेंटमेंहै  .... लड़की उसी देख के मुस्कराई है ..वही किताब वाली लड़की.... .ट्रेन ने आहिस्ता आहिस्ता रफ़्तार पकड़ी है ....उसने  दरवाजे के पास आकर  सिगरेट सुलगा ली है ..
एक लम्हे में कितनी पेरेलल स्टोरिया चलती है ...



ऑफ़ दीरिकोर्ड -
किसी नेमेल लिख कर पूछा था ...तुम प्रेम कहानिया नहीं लिखते....
 .
मेरे पास कहानिया नहीं है.......

सुनो खुदा !तुम्हे छुट्टी की इज़ाज़त नहीं है

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हिल रोड के उस चर्च के बाहर जूते उतारने की कवायद नहीं है ….आलस में उस कवायद का बेजा फायदा उठा कर..मै  कैमरा हाथमें लिए जूते पहने अन्दर चला जाता हूँ....आर्यन  अपने सेंडिल से उलझा  मुझेआवाज दे रहा है ......मै उसे अनसुना कर भीतरचला गया हूँ.बेंचो पे कितने लोग बैठे है ..... अपनी अपनीउम्मीदों ...ख्वाहिशो ....गमो को अंडरलाइन  किये हुए….यहां मोमबत्तियो की सिफारिश है .....झुके हुए सर   में ज्यादा   उम्र दराज लोग है .....अक्सर पचास के बाद हीखुदा की तलब ज्यादा  लगती है  आदमी को....डेमेज कंट्रोल एक्सरसाइज़ !..खुदा!      किसने किया होगा उसका नामकरण ?. रोज कितने कितने क्रिटिक्स  के दरमियांसे गुजरना पड़ता है .. उसे..पढ़े लिखे……बहुत पढ़े  लिखे ... ....बे पढ़ेक्रिटिक्स.........जिनकी थेंक्स गिविंग की आदत नहीं है......
 .इतने साल बाद भी  शायद  एक दिन वास्ते   भी ….खुदा को  परफेक्ट डिकलेयर  नहीं किया गया …. ..शेखर  कहता था ...आदमी ने  अपनी रूह की रिपेयर वास्ते   गेराज.खोले है .अलग अलग नामो से……जिसके मेकेनिक को कभीछुट्टी की इज़ाज़त नहीं  !

.....सामने रखी बेंच पर कुछ देर बैठ डिज़िटल कैमरे से मै कुछफोटो लेता हूँ...यहाँ वहां घूम के हम सब बाहर निकले है ....सड़क के उस  पारचर्च के सामने शायद एक प्रार्थना  स्थल है ...वहां की कुछ फोटो लेकर हमगाडी में बैठे है ...ड्राइवर को बेंड स्टेंड जाने के निर्देश मिले है .....मेरा मोबाइल बजा है ...लम्बी बातचीत है ....बेंड स्टेंड आ गया है….
समंदर की लहरे उछाल मार रही है .. हाई टाइड की सम्भानाये पिछले कई दिनों से है...मुंबई अब बादलो के इकठ्ठाहोने से  डरने लगा है......कुछ किनारों पे कई जोड़े प्रेम कादुस्हासिक प्रदर्शन कर रहे है ...उनसे दूर   एक कोने  पर .मै  आर्यनको  आगेचट्टानों पे ले जाना चाहता हूँ ....वो कुछ अनमना सा है ......कुछ गुस्से में .....
आपने अच्छा नहीं किया .......

मै उसकी ओर देखता हूँ.....

जूते पहनकर कर कोई मंदिर में जाता है
?


मस्जिद की सीडियो पर ...चढ़ते चढ़ते
उदास आँखो से देखता है
दूरगली के कोनो पर
नीले हरे लाल
कितने रंग बिरंगे 
मोती बिखरे है वहाँ
झुकता है सजदे मे
जब उसका सर
जेब मे पड़े काँच
खनक जाते है
कितनी सर्द ओर बोलतीनिगाहे
जम जाती है उसके चेहरे पर
घबरा कर आँखे बंद कर
जाने क्या क्या बुदबुदाता है......
यूँ भागता है फिर
गली की जानिब………
कहते है
उसकी दुआओ मे सबसे ज़्यादा असर है
"खुदा
तेरा नन्हा नमाज़ी कन्चे खेल रहा है.......





पुनश्च:
उन चट्टानों के इर्द गिर्द तमाम शोर गुल में .एक कोने पे ...एक घायल कौवाहै.....खुले घाव लिए....दूसरे कौवे बारी-बारी  से आ रहे है ....नोचकर जा रहे है .......वो जिंदा है .पर प्रतिरोध की हालत में नहीं है .....मेरे साथ बैठा  दीपक एक पत्थर उन कौवो को मारने के लिए उठाता है ...."रहने दो बेटा...ये कुदरत का नियम है ......".कुछ दूर बैठे एक बुजुर्गउसे रोकते है ......कुदरत का नियम ?
 .आदमी कितनी निष्ठा से इस का पालन कर रहा है ना!

'मोरल ऑफ़ दी स्टोरी "

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 सुबह की चाय ख़त्म  ही की  है के मोबाइल ने आवाज देकर  बुलाया है ......अमित का  एस एम् एस  है ..... ‘डॉ श्रीवास्तव के यहाँ आज पगड़ी रस्म है …मीट एट हिज़ प्लेस एट . 3.30 “….भूल गया था ...वे शहर के जाने माने डॉ थे ..कुछ दिन पहले ही दिल के दौरे से उनका निधन हुआ था .आदतन   अखबार   के  पन्ने   पलटता हूँ ……सी बी एस सी बोर्ड का रिजल्ट आया है …एक लड़के ने स्कूल टॉप किया है …अपने माँ -बाप के साथ उसकी फोटो है … फोटो देखकर मैं पहचान जाता हूँ ..डॉ गुप्ता का बेटा है …सदर मे  जनरल  फिजियशन  है

दोपहर पौने चार बजे……
मोबाइल 
ने फिर आवाज दी है …कहाँ है ?मेरा दोस्त पूछता है … ...'..रस्ते में हूँ '...डॉ श्रीवास्तव  साकेत में रहते थे ......पोश कालोनी ....घर  के बाहर गाडियों की लम्बी कतारे है ....गाड़ी पार्क करने के लिए कोई मुनासिब जगह ढूंढ रहा हूँ   की   अगर कोई कॉल आए तो आराम से निकल सकूं ….एक जगह पार्क करके उतरता हूँ. ..सामने डॉ अरोड़ा किसी को मोबाइल पर इन्सट्रकशन  दे रहे है …ड्रिप मे …### डाल देना.... .स्पीड कम रखना ....आधे घंटे मे पहुँच जायूँगा …..मैं उन्हें अभिवादन करता हूँ ....वे मुस्करा कर सर झुकाते है ....फ़िर मोबाइल मे ही घुस जाते है .."चार नंबर वाले का क्या हुआ ? उसे गैस पास हुई की नही ?....मैं आगे बढ़  गया हूँ ..डॉ श्रीवास्तव  की एक हज़ार गज की बड़ी कोठी....आगे  बड़ा लोन है.... उसी में सफ़ेद रंग का टेंट सीना तान के    खड़ा है …......गेट पर ही डॉ मित्तल मोबाइल पर है ….ऐसा करो डॉ त्यागी को  साडे चार  का टाइम बता देना ….…"तुम ओ. टी तैयार करो मैं पहुँचता हूँ "….वे नीचे झुक गए है .....मुझसे १५ साल सीनियर है …ये उनकी खानदानी आदत है .......दोनों भाई अक्सर ऐसे ही झुके हुए मिलते है ........आगे जाकर  जरूरपीठ की तकलीफ होगी …पूरे शहर मे उनकी विनम्रता मशहूर है.

मैं अन्दर घुसता हूँ …कई सफ़ेद कुरते पाजामे है ,मैं थोड़ा अटपटा सा महसूस करता हूँ.... टी शर्ट ओर जींस मे ही चला आया हूँ   एक  सफ़ेद कुरता पाजामा अब 
सिलवा ही लेना चाहिए   ....नजर दौडाता हूँ की अपने वाले बन्दे कहाँ है .. .आदमी की अजीब  फितरत है ... अब  हर जगह कम्पनी ढूंढता है ......अभी शहर मे   सात  साल ही हुए है प्रक्टिस करते हुए अपनी वेवलेन्थ वाले कुछ ही लोग है …..डॉ श्रीवास्तव से आज तक मेरी मुलाकात बस एक दो बार  आई. एम्. ए  की मीटिंग्स मे तकल्लुफाना अंदाज मे हुई थी ....कोई बता रहा है .......समीर यहाँ कुछ ही दिनों के लिए आया है ...समीर उनका बेटा है फिहाल अमेरिका मे शिफ्ट हो गया है शायद  सॉफ्टवेयर इंजिनियर है .. 
“तेरे पास  डिस्पोसेबल बायोप्सी पञ्च है   है  तीन मिलीमीटर वाला “?मेरा दोस्त  फुसफुसाता है ...  …
".हाँ .."मैं धीमे से कहता हूँ...... मंत्रों उच्चारण हो रहा है ….भीड़ बहुत है …कई लोग रुमाल निकलकर उमस ओर बदलते मौसम की चर्चा कर रहे है .......
..मेरे आगे दो तीन लोग है ….".अंदाजन एक करोड़ की होगी "..पहला दूसरे से उस कोठी की कीमत का अंदाजा ले रहा है ,दोनों शहर के प्रतिष्ठित सर्जन है …हाँ …दूसरा कहता है ….”बेटा तो बाहर है …पहला फ़िर बात अधूरी छोड़ता है ….”कोई फायदा नही ..दूसरा उससे कहता है ..डील हो चुकी है …समीर  चार दिन बाद वापस जा रहा ..आपने पहले जिक्र नही किया …पहला नाराजगी दिखाता है .”मुझे भी आज ही मालूम चला है ‘.. डॉ .शर्मा हमारे पास आकर खड़े हो गए है ,साकेत मे ही रहते है उम्र पेंतालिस से ज्यादा ओर पचास से कम है.....,लेकिन फिट रहते है .......उन्हें बतियाने का शौंक भी है ...हम भी कभी उनकी कंपनी मे बोर नही होते है ,…थोडी देर मे पगड़ी की रस्म पूरी  हो गयी है ....लोग हाथ जोड़कर निकलने की कवायद में है .....   ..
हम बाहर  आये है .......  कोई कह रह रहा है " श्रीवास्तव जी सज्जन आदमी थे" ..मैं उसे गौर से देखता हूँ..ये पहला आदमी है अब तक जो वाकई शोक मे है ..
...शर्मा जी बाहर तक हमारे साथ है..गाड़ी के पास खड़े होकर वो कहते है ...मोरल ऑफ़ दा स्टोरीक्या है समझे ?......आराम से जियो अपने लिए जियो एक छोटा सा फ्लेट लो ....वरना बच्चे बड़े होकर बाहर जायेंगे ..तुम्हारी मौत पर बीस दिन की छुट्टी लेकर आयेंगे ..फ़िर प्रोपर्टी बेचकर अमेरिकन डॉलर मे कन्वर्ट करके चले जायेंगे.......छह :महीने मे चौथा किस्सा है साकेत मे........
तेरा बेटा कितना बड़ा है .....मुझसे पूछते है .....
चार साल..... मैं कहता हूँ.......
रात को मीटिंग मे आ रहा है ना...... वहां एक पंच लेता आना" मेरा दोस्त मुझसे कहता है.
रात  दस बजे
 
आई एम् ए  की मीटिंग है...मैं लेट पहुँचा हूँ ,  टाक ख़त्म हो गई है ,मैं अपने दोस्त को पंच पकड़ा देता हूँ ....लोग गिलास पकड़ कर खड़े है .... कुछ नेपकिन में दबाये ........डॉ मलिक पास आये है  ....अपने हाथ की प्लेट मे से एक पकोडा मुझे उठाने को कहते है ....."सामने   देख रहे हो ..".........  डॉ गुप्ता सामने    है....... उनके आस पास दो तीन लोग है ...."ये आदमी खाली  एम् . बी. बी. एस है लेकिन  इसके चेहरे  पर एक अजीब सा तेज है ..इस पूरी महफ़िल पे किसी के मुंह पे नहीं मिलेगा .....  जानते हो क्यों.......क्यूंकि उसके बेटे ने स्कूल टॉप किया है....."वे एक बड़ा घूँट भरते है...कंधे पे हाथ धरते है......मोरल ऑफ़ दी स्टोरी .क्या है समझे ?.तुम्हारी औलाद ही असल पूंजी है ...बाकी . सब बकवास है .......समझे .....
मै सर हामी में हिला देता हूँ ......वे एक बड़ा घूँट लेकर ओर नजदीक आ गये है     "तेरा बेटा कितने साल का है ?"






पुनश्च :तकरीबनदो सालपहले  इस   तजुरबे के बरक्स  चहलकदमी की थी.....उसी हलफनामेकादस्तावेज़था...पिछले  हफ्ते  ऐसा ही एक मंजर फिर आँखों से गुजरा तो  ..अलमारीटटोली.... . वैसे .ज्यादा कुछ  नहींबदला  है .जीनेके  हुनर थोड़े ओर  रिफाइन हुएहै ...थोड़ी  परते .रूह पे आयी है  ...थोड़ी जमीर पे ........मौतअब भी बिना नोटिस दिये दबे पाँव आती है .......बस सरनेम   चेंज होता है ......लोग अब भी कान पे मोबाइल रखे फुसफुसाते हुए   अफ़सोस   के रजिस्टर पे  अपनी हाजिरी   लगाने आते है ....दिन अब भी रुकता नहीं ... थोडा सा तेजचलने लगा है ...  ओर ....भीड़ में  अब भी कोई उदास नहीं दिखता .....ओर हां आर्यन अब छह साल का है 

हार्ट अटेक. .....
कोई दो महीने पहले महंगे रंगीन धागों से  रफू हुआ था
कहते है रफू करने वाला  शहर का सबसे काबिल रफूगर  है  .....
कल आधी रात  कोई एक जिद्दी धागा बगावत कर गया

सुन जिंदगी!! किसी-किसी रोज तेरी बहुत तलब लगती है

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आवारा !!

होठ  खुश्क रहते है..... तपा तपा सा चेहरा
जैसे कोई नशा किया हो
सुबह जल्द आकर .उन

 रिक्शा वालो ...खोमचे वालो ...की संगत में

.देर तक बैठा रहता   है

 इन गर्मियों में फिर 
दिन को
  उगने का सलीका नहीं  आया ...


 मेसेज की आमद.!!!.....

अच्छा हुआ

जो तुमने तोड़ दिया

उस इकरारनामे को

जिसके मुताबिक ना हमें मिलना था

ना बात करनी थी

पिछले आधे घंटे से

 दरअसल .......
मै तुमको ही सोच रहा था

पिछले आधे घंटे से
........
मेरे शहर में भी बारिश है

टचवुड !!!!





जुदाई ....

दिल किसी मुंशी सा......
 कब से

रोज दिन को ...पलट कर

उन पे मार्क लगा रहा है

पिछले शुक्रवार की  रात किसी ने एब्सेंट लगायी थी .....




  कारोबारीदुनिया मेंप्रेसेंट  .. रोज दर्ज करनी होतीहै ....जरूरी ....गैर-जरूरी  कितने मसले है .......कुछ  उलझाते है ...कुछ को फलांगता हूं  ..घडी   अपनीदोनों बांहे   आहिस्ता  आहिस्ता  फैलाती    है .......  .मोबाइल की . कोंटेक्टलिस्ट में नाम को स्क्रोल करते  करते किसी  नाम पे रुक गया  हूं......

जिंदगी माने !

 .
अक्सर बांट कर या टुकडो में ही पी है
 
एक्स- रे दिल को धब्बो को कहां
  दिखाता है 
 किसी-किसी  रोज तेरी बहुत तलब लगती है जिंदगी!!







"चिरकुटाई की डेमोक्रेसी'

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गुप्ता जी सुबह  सुबह अपनी नयी गाडी दिखाते है ..." सेक्सी" ....मै कहता हूँ ...उनका सत्रह साल का लड़का मुझे हैरानी से देखता है ...दस बारह साल हॉस्टल में रहने के बादहर शानदार चीज़ को सेक्सी कहने का आदत को डीज़ोल्व  होने  में काफी  वक़्तलगता है .........सभ्य  समाज  की अपनीशिष्ट  भाषाये  है ... उन दिनों   ढाबे की तड़का दाल से लेकर ....  अलेन सोली की व्हाईट  शर्ट  सेक्सी होती थी.....
फिर तुम लोग "असल" से कैसे डिफरेनशियेट करतेहो .... उन दिनों लडकिया पूछती ...
हो जाता है..यार .....
सभ्य समाज की कई अजीब सी मुश्किलें भी है ....पुणे के उस पांच सितारा होटलमें मेरे साथ ठहरे डॉ साहब फ्लाईट के  उतरने के बाद से  ही  परेशान है ...उम्र में मुझसे पंद्रह साल बढे वे कमरे में चहलकदमी कर रहे है ....क्याहुआ बॉस  ?मै पूछता हूँ......
यू पी में मेडिकल में सीनियर को बॉस कहा जाता है
इतना बड़ा होटल है  ...ओर एक भी इन्डियन टोइलेट नहीं... है.
आख़िरकार अगली सुबह
   कोंफ्रेस  हौल के ऑडीटोरियम के पीछे एक इन्डियन टोइलेट मिल जाता है  ओर उनकी जीवन में दिलचस्पी पुनः जाग जाती हैवे अक्सर कोंफ्रेस में मेरे रूम मेट रहते है ....इंदोर की उस यात्रा में भीवो मेरे साथ है.डॉ साहब इंदोर के  सियाजी होटल में रिसेप्शन पर इंडियन टोइलेट की बाबतसुझाव पुस्तिका में अपनी राय दर्ज करते है ...............इस देश के उन सभी होटले में जहाँ जहाँ वे ठहरे  सुझाव पुस्तिका पर उनकी इस बाबत राय दर्ज है .....
ऊपर कमरे में पहुंचकर सूटकेस खोलते ही ..मै जान जाता हूँ एक बहुत आवश्यकचीज़ पेक करनी भूल गया हूँ .....अंडरवियर!!
...कांग्रेंस हौल से लौटते  वक़्त ..रास्ते में ले लेगे .वे सुझाव देते है .....
वापसी में वो ड्राइवर को
वेस्ट साइडके आगे रोकने पर मुझे  हैरानी से   कहते है ....यहाँ
डिजायनर  यही मिलते है ..
डिजायनर?

तो आपके ज़माने में भी तो होते थे ....अलग अलग पट्टियों वाले ....मै कंधे उचका  देता हूँ
पंद्रह मिनट  से ज्यादा वक़्त लगने पर वे हैरान होते है ...इसमें इतना क्या सोचना भाई?कोईभी  उठायो ओर चल दो …..
रचनात्मकदृष्टिकोण से देखे तो ये विचारो  में परिवर्तन है.......ओर आमभाषा मेंकहे .....जाने दे...हर चीज़ को कहना जरूरी  तो  नहीं है....
बिल की लाइन में  ठीक हमारे  आगे सफ़ेद शर्ट ओर जींस पहने एक  सेक्सी .कन्या खड़ी है .....कुछ सेकण्ड बीतते  ही  वे  इतनी  जोर  से  डकार लेती  है  के  हम थोडा पीछे हट जाते है ..सोचते है शायद "एक्सम्यूस-  मी कहेगी...पर लगता है किसी सरकारी स्कूल की पढ़ी हुई है .जहाँ ये कहना नहीं सिखाया जाता......


  सी कोंफ्रेंस के कुछओर संभावित खतरे भी है . …........साइड इफेक्ट्स .....ऐसे ही एक  बड़े खतरे हमें लिफ्ट में टकराते है ....हमारे एक सीनियर ...चिरकुटाईके भी वीर होते है ..... ये उन लोगो में से है….जिनको सामने देख आप ऊपर वाले से कहते है ..".ये क्या .खुदा अब भी. बिना चेतावनी के फायर..." .... 
  उनके .मुंह में कुछ  है.. ..पिछले नौ सालो से  उनके मुंह को कभी  खाली नहीं देखा है....उनका मानना है  के गाली एक तरह की अप्रत्यक्ष श्रदांजलि   है ......भरीभीड़ में भी वे आपको श्रदा के सुमन जोर से अर्पित करते है ..... लिफ्ट बड़ी जालिम  शै  है ...हमें उस दिन अहसास होता हैछिपाने की.तमाम कोशिशो के बावजूद हमारे हाथ में किताब पर उनकी निगाह गयी है.
"#**साले अभी भी कविता लिखते हो.....
 गोया कविता  लिखना  कितनी  फिजूल बात  है .हाउ बोरिंग ! हम आत्म ग्लानि सी महसूस करते है
"#** 'इता टाइम कहाँ से निकाल लेते हो "...उनका अगला सवाल है 
जिसका  सीधा  सा  हिंदी  तजुर्मा  ये  है  के  आप  इत्ते  ठलुवे   है  .
"#** देखे कौन सी किताब है "....वे जबरिया किताब हथिया लेते है ....मोहन दास ए ट्रू स्टोरी ऑफ़ ए मेन,हिज़ पीपुल एंड हिज़ एम्पायर -राजमोहन गांधी ......पीछे पलटकर प्राइस टेग देखते है .
". #**गांधी  पे साडे  छह  सौ रुपये  खर्च  करते हो...."
साथ में उनकी पत्नी यूँ हमें देखती है जैसे कृषि दर्शन देख रही  हो ..
.ये पान आप लाये कहाँ से  ..इस एरिया में तो मिलता नहीं .हम पूछना  चाहते है.पर पूछते  नहीं .इससे  वार्तालाप आगे बढ़ने का खतरा है .. .....
१६ सालो..ने उन्हें अब भी नहीं बदला है....चिरकुटई उम्र की पाबन्दी नहीं मानती है ...न लिंग भेद में विश्वास रखती है ....उनकी पत्नी को गौर से देख हम सोचते है के क्या ये कंटाजीयस भी होती है .... हम अब भी  सोच रहे के कौन से सूत्रों से इसके कंटाजीयस होने की तस्दीक की जाए ….यूँ भी इश्क के एक्सपर्ट  हमारे  शुक्लाजी कहते थे ..जब आपकी प्रेमिकाआपकी नजरो से दुनिया को देखने लगे तो  प्यार की थ्योरी  को कन्फर्म मान करनीचे हेंस प्रूव्ड लिखा जा सकता है.....वैसे  हिन्दुस्तान  एक ऐसा देश है  जिसमे ....शादी के बाद  प्यार का प्रतिशत सबसे ज्यादा है ....
मुफ्त की दारु को सूंघने की उनके भीतर विरल शक्ति थी....गोंड गिफ्टेड .. . सूंघते हुए पहुँच जाते  ...फिर इत्ती पीते  .के स्टोक कम पड़ जाता ..रायता फैलाने के कई अवार्ड लगातार उनकी झोली में थे ....कितने वाश बेसिन उनकी गंध से आज भी गंधा रहे हैकई पार्टियों के  वे  निर्विवाद  ' क्यूरेटर' रहे….उनका मानना  था के कोई भी पार्टी  उनकीगैरमौजूदगी में फीकी सी रहती है ...अपनी रचनात्मक भूमिका के लिए वे सदैव आश्वस्तकारी रहे .मुद्राये जुटाकरपार्टी में योगदान को उन्होंने गतिरोध का हिस्सा माना………सामूहिक  अनुभव में  आनंद लेने की इस प्रक्रिया को लेकर उनका मौलिकद्रष्टिकोण अब भी बचा हुआ है .....
किसी ने कहा था के हमें अपने सदगुणों का पता अपने दोस्तों से चलता है ओरदुर्गणों का अपने दुश्मनों से ...वक़्त के मुताबिक  इसे मोडिफाई करने कीजरुरत  है 
"#**कहाँ ठहरे हो?" ....वे पूछते है
हम हालात को तकाजे में तौल कर झूठ का दरवाजे को पकड़ते है ....झूठ  बोलने का सबस बड़ा फायदा ये है की   ये बड़ी स्ट्रेचेबल   चीज़ है ....कितना खीच लो ...बस नुकसान ये  है के  याद  रखना पड़ता है ..... कहाँकितना खींचा था ……
लिफ्ट रुकी है ...
वे नजदीक आते है .......फिर
  धीरे से फुसफुसाते है ..."#**कोई प्रोग्राम  हो तो  बताना ...."
दरवाजे को पकड़ कर वे फिर मुड़े है
...वैसे ये#** राजमोहन गांधी कौन है..कोई रिलेटिव लगते है गांधी के
 उस रात  हमारे साथ वाले डॉ साहब  अगले दिन वहां के रजवाड़ा बाज़ार में कुछ चीज़े देखते है .....ओर मै नब्ज़देखकर रोग बताने वाली दुकान को ...... सोचता हूँ जाकर ट्राई  कर आयूं पर वे डपट देते है….
ख्यालो  की डेमोक्रेसी देश में भले ही न होपर चिरकुटई की कई दुकाने खुली हुई है ......


पुनश्च :१ ५ अगस्त की रात जब देशभक्ति का ओवर फ्लो हो रहा है मै ऐसा क्यों लिख रहा हूँ......कारण ...नयी तकनीक  के भी कुछ साइड इफेक्ट्स है ...  फेस बुक . ..  अपने मेसेज बॉक्स में  मुंह में मसाले भरी उनकी सूरत का दीदार कराती है .दाई ओर लिखा हुआ है." #**  साले फ्रेंडरिक्वेस्ट  भेजी  है ...एक्सेप्ट क्यों नहीं करते ! खुदा ने अपनी गन फिर लोड कर ली है ... डिशकयूं ...........

नोट- चिरकुट इस देश की नेशनल गाली का शिष्ट अनुवाद है

शेष दुनिया के लोगो ......

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स दिन ओ .पी . डीमे काफी भीड़ थी ....  मेरी  कुलिग़  ने   आवाज  दी  .... अन्दर  एक्सामिन रूम  में एक लड़की  थी .......उम्र तकरीबन उन्नीस - बीस  के  दरमियां ... सांवला रंग.आंखो में डर ओर कई सवाल. .  .
जेनाईटल वार्ट्स....मेरी कुलीग ने कहा
स्टेटस .....?मैंने पूछा 
पता नही ?मेरी  कुलीग  ने  सर  हिलाया  था   .
व्यासायिक रूप से तेजी से देश के पटल पर प्रगति करने के कारण सूरत शहर   न केवल अपनी सूरत बदल रहा था .....कामकाजी माइग्रेशन पॉपुलेशन को  भी आकर्षित कर रहा था ...डायमंड इंडस्ट्री ...साडी उधोग ...पर इस सबके साथ एक ओर अनचाही चीज़  का ग्राफ   आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ रहा  थी ..एच आई वी.मरीजो का  ..
"कुछ बताती है ?" मैंने पूछा .
शायद 
लेंग्वेज नही समझ पाती ? मेरी कुलिग़ ने कहा ...
वो एक सेक्स वर्कर है  .....

यहाँ कौन लाया ?मैंने पूछा ,
 बाहर खड़ा है …

कई लोग बस पहली नजर में  पसंद नहीं आते ......बेवजह! .....सफ़ेद शर्ट   बड़ी बड़ी  मूंछे ....मुंह में पान- मसाला ...शरीर   में अजीब सी गंध .उसे मैंने कोने में बुलाया ....
"कुछ खून की जांच जरूरी है .बीमारी बढ़ी हुई है ....तभी कुछ होगा ...."
साहेब कुछ इंजेक्शन -विन्जेक्शन दे दो ..टेस्ट के लफ़डो  में काहे को पड़ता है ? मैंने उसे घूरा
साहेब बहुत टाइम खोटी होता है इधर आने में .दोबारा नहीं भेजेगे  इसको....."
"देख भाई.बीमारी तेरी मेरी मरजी  से नहीं चलती है .मेरी आवाज में थोड़ी तल्खी आ गयी थी......
जो काम है हिसाब से होगा...
उसने कमरे के एक कोने मे खड़ी दूसरी महिला को देखा …..मैं उसे पहचानता था  जया  बेन   वो  उस  एन .जी .ओ से  जुड़ी   सक्रिय कार्यकर्त्ता थी  जो खास  तौर से रेड लाईट एरिया मे काम करता था  .
वो मेरे पास आयी ...”अनुराग भाई बड़ी मुश्किल से लेकर आयी हूँ ,आने नही दे रहे थे …तीन दिन बाद कह नही सकते की इसे भेजेगे या नही...आपने उसकी हालत देखी ही है ?
आप कुछ करो तभी मैं औरो को लेकर आ सकती हूँ ,,,,,..मैं जानता था   वो  सच  कह  रही  है
,"पर सब कुछ मेरे हाथ मे नही है जया बेन इसका मामला कुछ गड़बड़ लगता है .. .” उसका टेस्ट होना जरूरी है "
 पर तब तक कुछ तो करो ..उसने कहा …"सर से पूछना पड़ेगा .जया बेन ".मैंने कहा …..
 
मै उन्हें लेकर सर के पास पहुंचता हूं .....वे हाथो मे कोई फाइल लिये निकल रहे थे ,मुझे देखकर रुके .. सुपरिडेंट ऑफिस मे मीटिंग है ….पहले ही लेट हूँ .....उन्होंने घड़ी देखकर  कहा ..

समस्या ब्रीफ की गयी...सर बहुत ज्यादा वार्ट्स है जेनाईटल एरिया मे …..मैंने कहा .
अगर लगता है "
पोजीटिव ."है   तो रिपोर्ट का इंतज़ार करो ?नही तो जितना हो सके निकाल दो .वे  

वे इंग्लिश में बोले ....फ़िर मुझे पास बुलाया ओर  धीमे से कहा “इन लोगो को डिसकरेज नही करना ..बाकी जो तुम ठीक समझो ....पर पूरे प्रिकाशन लेना ……कहकर वो निकल गए ।
वो सफ़ेद शर्ट वाला बाहर ही खड़ा था … “साहिब जल्दी ख़त्म करो …धंधे का टाइम खोटी हो रहा है …
मैंने उसे अनसुना कर अपनी कुलिग़ से कहा

'कुछ वार्ट्स निकलने होगे ...ग्लोव्स डबल पहनना ….उसने सर हिलाया ,जब उसको "माइनर ओ.टी "मे लिटाया ....
   ..”नाम क्या है तुम्हारा ?
उसकी आँखे फ़िर मुझसे चिपक गई.........नाम  -नाम ?   मैंने कई  बार  दोहराया    पर वो ना जाने   क्यों   आँखों से   देखती रही ......  ....बाहर  भीड़ बहुत थी इसलिए  मैंने जल्दी जल्दी इंजेक्शन लगाया ओर हम दोनों प्रोसीज़र करने लगे ,उस एक घंटे मे वो कभी दर्द से सिसकिया भरती ओर कभी कस कर मेरा हाथ पकड़ लेती,फ़िर कई बार डांटने के बाद हाथ छोडती ....
.. एक घंटे बाद जब मैं बाहर निकला तो सफ़ेद शर्ट वाला बैचैनी से टहल रहा था ,मैंने देखा भीड़ काम
नही
हुई थी ओर मेरे दूसरे कुलीग मरीजो से उलझे हुए थे वो मेरी तरफ़ लपका 
..ख़त्म हो गया ?
"पूरी तरह नही ..मैंने कहा ."एक बार ओर आना पड़ेगा ....
काहे कू? उसका मुंह बिगड़ गया ....
अबे मर जायेगी. मैं झल्ला कर बोला ..उसने जैसे कुछ सुना नही
" रोज रोज आयेगी तो धंधा कब करेगी ?
 इस बीमारी मे उससे धंधा करवयोगे....मैंने कहा ....
"अभी तक कर ही रही थी न ..
.....उसकी टोन मुझे पसंद नहीं आयी थी.....

अभी १० दिन तक वो इस हालत मे नही है ,वैसे भी ये रोग वो ग्राहकों को ही देगी....
"१०दिन् ....आपने पहले तो नही बोला अब मैं मैडम को क्या जवाब देगा ...ऐ जया बेन ..वो जया बेन की तरफ़ लपका ....
मैंने जया बेन को किनारे पे बुलाया "इसका टेस्ट करवा देना जया बेन ....ओर 5 दिन बाद लेकर आना .....जया बेन उसे डपट कर मेरे पास आयी
"शुक्रिया अनुराग भाई ..... बंगलादेशी है ',उसने मुझे बताया ….तभी जबान नही समझती ….मैंने कहा" कुछ जवाब नही देती' .... …।
हाँ अब कुछ कुछ समझने लगी है ….पर दूसरी मुश्किल भी है … बेचारी गूंगी है !
...मैंने     मुड़कर    उसे    देखा ......जाते जाते   वक़्त  आँखे एक पल को मुझसे मिली ....फ़िर धीरे धीरे भीड़ मे गुम हो गयी.....
पांदिन बादमेरी कुलिग़ मेरे पास आयी .
"कोई प्रिक नही लगा था ना?उसकी रिपोर्ट आयी है ,एच .आई .वी . पोसिटिव है "
.वो गूंगी गुडिया वापस फ़िर कभी नही आयी , बाद मे जया बेन ने बताया उसे बोम्बे भेज दिया गया है ................एक शहर मे ज्यादा दिन नही रखते ........!
 

2000-2001 ...नेशनल एड्स कंट्रोल सोसिएटी (नाको) ,ब्रिटिश गवर्मेंट ओर गुजरात सरकार के साझा प्रयास से H.I.V के ख़िलाफ़ एक अभियान चलाया गया जिसमे कई N.G.O को भी जोडा गया ओर इसे" प्रोजेक्ट फॉर सेक्सुअल हैल्थ " का नाम दिया गया ,सूरत गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज को मोडल बनाया गया ...जो सफल रहा ओर बाद मे बरोदा ओर दूसरे शहरो मे भी ये प्रोजेक्ट चलाया गया ...उसमे रेसीडेंसी के साथ साथ मैंने मेडिकल ऑफिसर के तहत एक साल तक काम किया ... उसी दौरान कुछ अनुभवो मे से एक......





सितम्बर २०१० के पहले हफ्ते का कोई दिन

नर्सिंग होम के बाहर गाडी रोकते ऊपर बराबर की  ईमारत पे टंगे लायूड स्पीकर पर नजर जाती है ....बिजली ने उसे अभी खामोश रखा हुआ है ......ग्रीन हायूस इफेक्ट की वजह से ओजोन की परत में छेद ...क्या आसमान में बैठे  खुदा के  ओर नजदीक होने का भरोसा दिलाता है ..अलबत्ता .मंदिरों -मस्जिदों की छतो पे जमा लायूडस्पीकर अपने बढे डेसीबेल से मानो खुदा के कानो पे यकीन नहीं करते है .....
अपने ४४ साल के पति की तीसरी बीवी  का दर्जा  लेकर सत्रह  साल की नफीसा  यौन रोग लिए नर्सिंग होम  में  दाखिल हुई है .....शादी हुए तीन  महीने हुए है... ....  पेट से है ......जुबान होते हुए भी गूंगी......पति दुबई में है ....उसका बूढ़ा पिता अपने  हाथ जोड़ता है.....बाहर निकलते निकलते   मोबाइल बजता है ....यूनिवर्सटी   में  'नारी की समाज में भूमिका' पर आख्यान   का इनविटेशन  है.......  ...किस मुगालते  में है उस ओर की दुनिया ?.
बुद्दिजीवियो   के अपने शगूफे है .... समाज के फेब्रिक पर फेवीक्रिल के थ्री डी हाई लाइटर की तरह ..ऐसा  लगता है ..हम महज़  भाषा के युद्ध लड़ते सिपहसलार है . तर्क गढ़ने  में माहिर .आंख मीचकर इस दुनिया के बदलने की घोषणा करते ....

 
मैतर्कों के कई जिरहबख्तर पहने
अतीत के उजले पन्नो
  पे
पोलिश कर

तमाम संघर्षो
  को व्यक्तिगत  संघर्ष 
घोषित करता हूँ

मेरे सरोकार सिर्फ वे सरोकार है

जिन्हें बुद्धिमान लोगो ने रेखांकित किया है
 आओकविता लिखे.... नैतिकता की
ओर रोमांस करे आदर्शवाद से
भरे पेट ये ज्यादा 'किक' देते है
ओर
साइकिल के करियर पे रखे टिफिन
-बोक्सो
अंधेरे कमरे के रोशनदानो ,
बुग्गी पे पैर लटकाये  नंगे नन्हे पैरो को
 अपनी  पीठ के बस्ते समेत
 अपने समय  की अनिवार्य लड़ाई  लड़ने दे ......
शेष दुनिया की अपनी व्यस्तताये है !!



.

तटस्थता की हिप्पोक्रेटिक ओथ ......

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Thank you god for the world so sweet 


सार्दियो में शाम जैसे कम्पलीमेंटरी मिलती है, दिन का मूड हुआ तो दे दी. उस रोज शाम की अब्सेंट दर्ज है. जनवरी की कोई  रात है. रेफेरेंस देखकर लौटते वक़्त मोबाइल बजा है. मेडिकलकॉलेजकेबाहर  अपनी  गाडी मेंमेरादोस्तहै .अमूमनएकशहर   मेंहोकरभी  आप  कम  मिलते  है .अपने- अपनेहिस्से  की  मसरूफियतकेवास्ते .उसदिन  इत्तेफाकसे मिलेहै .शायद वो भी कोई रेफरेंस देखकर लौट रहा है .उसकी गाडी में हमेशा एक सिगरेट रहती है .पिछले कुछ सालो से मेरी छूट गयी है .गाहे बगाहे होती है .गेट से थोडा हटकर  एक कोने मेंहम  दोनोंकिसीपेशेंटकेमुताल्लिकगुफ्तगूमेंउलझेहै.

सकी पीठ पीछे  मेडिकल से  एकस्ट्रेचर  बाहररहाहै  .दोलोगहाथमेंउठानेवालेस्ट्रेचरपरकिसीशरीरकोलारहेहै . पीछेवालाएकआंखसेआंसूपोछताहै. फिरस्ट्रेचरसंभालताहै  साथमेंकम्बललपेटेएकबूढ़ा. है  सरझुकाए  रोतीबिलखतीदोऔरते ,पीछे नंगे पैरो चलते  दो बच्चे नज़दीक ,नज़दीक .आगेवालेकीआंखेलालहै .कोईसूखानशाहैशायद ,स्वेटरकेनीचेसेझांकती .शर्टअस्पतालकानुमाइंदाहै .एकबैलगाड़ीमेंडलीचारपाईशरीरकोवहांलिटादियागयाहै  औरतोकारोना  जारीहै.
 सड़क  पर कोई  बारात  है  .बाराते  आहिस्ता   -आहिस्ता चलती  है , लगभग एक सी शक्ल लिए . सूखे  नशेवालारुक गया है ,जाने क्यों शरीरकोदेखताहै ,फिर  बूढ़ेकोफिर .एक  ओरकोनेमें  जाकरअपनेहाथोमेंकुछमलनेलगाहै . पीछेवाला  कुछदेरउसेदेखताहै  फिरखालीस्ट्रेचरधकेलताआंसूपोछतावापस अस्पतालकीओरजारहाहै.शायदजमाकरने .बूढ़ावही  घुटनों में सर डाले बैठ गया है  .बारात  ओर नजदीक आ गयी है. आहिस्ता -आहिस्ता सड़क  पर एक्सपेंडहो गयी है .हम दोनों  के बीच संवाद में जैसे पॉज़ आ गया है .उसने सिगरेट सुलगा ली है .साथचलतेजनरेटरकेशोरमें सिक्केहवामेंउछालतेहै ,फिरछन्नसेसड़कपेबिखरजातेहै  ,अनजानेचेहरोंकासमूहउठानेकेलिएटूटपड़ा  हैउनकीनज़रबचाकरअपनीमस्तचालसेचलताहुआएकसिक्काठीकबुग्गीकेपहियेकेपास  कुछ  देरघूमकरठहराहै. बुग्गीपे  बैठा  बच्चाएकनज़रबारातकीओरदेखताहै. दूसरीबूढ़ेकीओर ,बूढ़े  का सर अब भी घुटनों में है ,कुछ  सेकण्ड ......
 वोनीचेझुककरसिक्काउठाताहै.
 
"सिगरेटपियेगा' ...मेरादोस्तमुझसेपूछरहाहै .
बैंडका वाल्यूम बढ़गयाहै .....







हकीक़तो के क्रोस फर्टीलाइजेशन

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तब दुनिया भली थी

सुबह सुबह सिगरेट नहीं पीनी चाहिएसीधी फेफड़ो तक जाती है ......वो सुबह सुबह सिगरेट पीते हुए रोज ये बात कहता ....ओर रोज एक सिगरेट पीता ....
जय सर्जरी का रेसिडेंटहै.....आल इंडिया इक्जाम क्लियर करके आया है ...मै बतोर  इन्टरन हूँ......जय की यूनिट   मेंपोस्टेड...मेरी पहली पोस्टिंग.. ऑफिशियली .हमें मिले हुए  तीन दिन ही हुए है  ...फिर भी हम दोनोंमें बनने लगी है  ...
.उससे पहले एकबार  कुछ घंटे  की  औपचारिक  सी मुलाकात  थी ... ....किसी  पार्टी में ....  हॉस्टल के कमरों की  पार्टिया .. ....गांधी के राज्य में एडलट्रेडेटमिलती थी ... या बहुत   महंगी ...
साला उस आदमी को नोबेल प्राइज़
  मिलना चाहिए जिसने दारु  का आविष्कार किया ......सब बायस लोगहै  प्राइज़ देने वाले ....उसने दूसरा पेग पीने के बाद  कहा था .....मुझे वो तभी जंच गया था
उस रोज सिगरेट का कोटा ख़त्म होने पर हम दोनों मोटरसाइकिल पे लेने निकले थे तब उसका कुछ कुछ ओर  समझ आया था
भाई मत बोलना ...उसने मोटरसाइकिल पे बैठते ही कहा था ....गुजरात में सीनियर को भाई कहते है
पिता बड़े देशभक्त थे ... किसी बम   के नजदीक से फटने  पर  आर्मी से अपनेदोनों कान ख़राब करके आये तो भी जनून जारी था.....जब बड़ा भाई श्रीलंकाशांति सेना से बिना पैरो के वापस लौटा ....तो मां ने बगावत कर दी ..हमेंसाला ये व्हाईट एप्रन बहुत अच्छा लगता था .....सो आ गये....
तेरा कोई है आर्मी में
?
मेरे सर हिलाने पर वो हंसा था ....अपनी जमेगी ..
 तीन साल ओर ...बस फिर बाहर की  दुनिया से आज़माइश करेगे….. उसने ठंडी सांस ली
अबे  सुन  तू जिसके साथ केन्टीन में बैठा रहता है वो तेरी गर्ल फ्रेंड है ....
नहीं

पक्का

क्यों

नहीं .....सेक्सी है  इसलिए .........
मैंने उसे नहीं बताया वो भी उसे पसंद करती है….. पीने के बावजूद मै सेन्स में था
एक मिनट गुजरता है ..मोटर साइकिल पे .....
पर तुम्हारी तो गर्ल फ्रेंड है .....मै उससे पूछता हूँ
तो...तुझे वो सेक्सी लगती है ....

नहीं....... मै झूठ बोलता हूं

वक़्त ने  कई उमरे अपने  भीतर रखी है....
 य के  गोरे चेहरे पे दाढ़ी अच्छी लगती है ...बेतरतीब से उसके बाल ....लडकियाउसे पसंद करती है ....पर उसे निवेदिता पसंद है ......उनका चलरहा है ...निवेदिता…  ..उसमे दिल छोड़कर सब कुछ खूबसूरत हैपीडियाट्रीकस में रेसिड़ेंशी कर रही है......कोलेज  ओर हॉस्पिटल .दो अलग इमारते थी......दोनों को जोड़ता  एक पुल सागलियारा ..शाम होते होते .कोलेज  एक दम  खामोश हो जाता   ...पर हॉस्पिटल  वैसे ही  जगा  रहता
"हॉस्पिटलअपनेआपकोदोहराताहै .....बस  हमहै .....जोसोचतेहैकेवेनायाबहै .."
.किसी सर्जरी की पहली ड्रेसिंग  खोलते वक़्त उसके डायलोग होते ...खास तौरसे जब  स्टिच  नीट निकलते  .....उसके हाथ में हुनर था ....ऐसा सब बोलते थे ....मनोज ओर वो गहरे यार हो गए थे ....मनोज मेरा बेडमिन्टन  पार्टनर ओरमेडिसिन में रेज़ीडेंट ...
.पास होने के बाद की सोच के फटती है .... इस चारदीवारी के बाहर की दुनिया बड़ी कमीनी है
.क्यों यहाँ क्या नेकी का थोक बाजार है.?मै उससे कहता ....
ये भी अजीब बात थी के मनोज ओर निवेदिता की पूरे पांच सालो में  कभी नहीं बनी........अजीबदोस्त थे साले........दोनों कीपसंदे अलग थी......जिंदगी की  फिलोसफी अलग.....फिर भी दोस्ती थी....ओर खूब निभ रही  थी....अजीब दौर था जिंदगी का .थोडा इंकलाबी ....थोडा रूमानी....जिंदगी के हाथ मेंभी कभी हंटर होता ....कभी गुलाब ......ओर दिल साला खुद से डबल क्रोसकरता...बेवकूफियो पर नाज करने के दिन अब उतरने लगे थे ....मुश्किलों पर प्रोटेस्टपर वाक् आउट  नहीं उनसे रूबरू होने का हौसला होने लगा था .....

 दुनिया कभी  भी  भली नहीं होती
मरजेंसी वाला दिन था ....बड़े भीड़ -भड़क्के वाला ....तकरीबन  दोपहर ढाई  बजे ....ओ.पी .डी में….चाकूबाजी के केस आये है ..........दोनों पार्टियों के लोग है...दो ओ टी एक साथहै......ओर एक ए .पी  पटेल आज छुट्टी पे है ...... मै बजे उसे ओ टी के बाहर के गलियारे में  पाँवमें ऑमलेट रोल कर  पकडाता हूँसुबह से वो दो चाय ओर तीन सिगरेट पे है .........३  मिनट में वो दो पाँव ओर एकऑमलेट  फटाफट ठूंसता है…  उसे वार्ड में जाना है….नीचेआकर मुझे याद आता है ....आज जय का जन्मदिन है...!!!!!!!!!
 केजूवलटी  की   रात है .......ये ड्यूटी  कम्पलसरी नहीं   है......केजविलटी  की एक अलग दुनिया है ....जहाँ रात में एक अजीब कंटीन्यूटी  है  ...एक किस्म का शोर वहां का स्थायी बाशिंदा है .....जब आप थके होते है आपकाशरीर जान जाता है उसे कितनी आवाजो में कैसे झपकी लेनी है... वो कल रात से केवल तीन घंटे सोया है ओर उसका बर्थ डे भी .......इसलिए .सोचा है मेस की घटिया दाल  को छोड़कर   कुछ अच्छा खायेगे .....बहुत नजदीकहै होटल ..मुझे सिर्फ जाकर लेकर आना है
.अच्छे कपडेपहने दो कम उम्र है ......लड़की अर्ध मूर्छित सी .... अच्छे कपडे पहने लोग सरकारीअस्पतालों में कम दिखते है ....जल्दी की इसका कारण पता चलता है
दीदी है ...लड़का कहता है .....नींद
  की गोलिया खा ली है ... केस मेडिसनका है
कितनी ......ओर फिर कुछ सवाल जवाब
......
कोई बात नहीं....मरेगी नहीं.....मनोज
कहता है ......वो उसकी आँखों पर टोर्च मारता कहता है
"मरेगी "मुझे चुभता है ...मुझे लगा मनोज पूछेगा क्यों खायी....पर मनोजपूछता नहीं है .....
 सिस्टर  स्टोमक वाश ....
दस पंद्रह मिनट गुजरते है .....
लड़का मनोज के पास मंडराता है ....
सुबह पापा मम्मी आ जायेगे ....बाहर
गए हुए है ....मै उससे पहले दीदी को ले जाना चाहता हूँ......
मनोज अपने चश्मे को ठीक करके उसे
देखता है ....
ओफिशियाली ले जा नहीं सकते.....पर
तुम्हे कोई रोकेगा नहीं......
मै वापस जय के पास आ गया हूँ.....जय ने आँखे बंद की है ......पर सोया नहीं है .....आधे घंटे  बाद मनोज अन्दर  आया है ....
बाहर कुछ हलचल हुई है
दो लोग
है........मोटरसाइकिल  सेगिरे है ....आगे वाला का पैर का मांस फटा है ...
इसका एक्स रे ....करवा कर के
आना....सन्तु.....उलटे हाथ के कमरे के बाजूमें   स्प्रिट पीकर पड़ा होगा.....चार पांच बार आवाजे मरना ...साला उठेगानहीं......
संतू रेडिओलोजी
  विभाग का नुमाइंदा है .....जो अँधेरा होतेही दूसरी दुनिया में पहुँच जाता है ....
संतू वही पड़ा मिला ......बमुश्किल
.....एक्स रे करा कर मै वापस लौटा........गीली फिल्म बताती है ....कोई हड्डी नहींटूटी.है..
जय टाँके लगा कर ड्रेसिंग कर रहा है
...मुझे प्रेस्क्रिप्शन लिखने को कहता है......फोन है .......इतने में सिस्टर ने आवाज दी है ....हमें चाय पीने के लिए गेट के आगे लारी तक जाना है ...सो मै एक किनारे खड़ा हूँ....
य फोन पर है ......स्टेब वुंड का
केस आ गया था सर.....दोनों पार्टी के लोग थे ....इमरजेंसी ....
उधर से तेज आवाजे.......

जी......

**********
येस सर

  अभी वही होकर  आता  हूँ...सर....
********
सर...........

उधर से आवाजे   तेज है
......उसके चेहरे के एक्सप्रेशन बताते है .....दूसरी ओर से कुछ अच्छा नहीं कहा जारहा है.......
चाय की लारी तक वो
  चलते चलते खामोश हो गया है ......
साहेब का
  फोन था ....मनोज पूछता है
हम...पटेल साहब का ...... बरोदा
 गए हुए है
क्या हुआ .....

कोई रिलेटिव है उनके बाहर
.....ओपरेशन हुआ है.....उनकी ड्रेसिंग  करके आनीथी......पर साला यहाँ से फुर्सत मिलती तोजाता न ....तीन इमरजेंसी आगयी
तुम कहो तो मै हो आयूँ......मै कहताहूँ......
नहीं वो साला .जयेश को बोल दिया है
...वो कहाँ मौका छोड़ेगा....उलटे सेम्पल की   दवा  भी ले जायेगा
जयेश जय का सीनियर
  है ........
चल चाय पी कर आते है ....चाय की लारी अन्दर ही हॉस्पिटल के गेट में ....
...  .....चाय की   लारी   पे निवेदिता की एंट्री हुई है ....... इन दिनों उनकेबीच कुछ तनाव है ...जय कुछ बतातानहीं.....पर बहुत सी बाते बिना बताये पताचलती है .... ...वो  सिगरेट के साथ    उठ खड़ा हुआ   है....कुछ दूरी  पे ....वे दोनों बैठे है .......
मुझे सिगरेट काअफ़सोस  है ...मेरा पूरीपीने का मन नहीं है ...ओर .मनोज बाँट कर नहीं पीता
   ......"हमें तुमसेप्यार कितना रेडियो पे "बज रहा है .....
प्यार की
  भी अपनी जरूरते है ........मनोज चाय  काएक घूँट भरते हुए  उनदोनों कीओर देखते हुए कहता है .....जहाँ   कुछ आरग्यूमेंट  शुरू हुए है .....       .....
बीच बीच में कुछ जुमले तेज आवाज़ में
सुनाई  देते है ...
मेरे घर वाले मेरे शादी कर
देगे........ वो खड़ी हो गयीहै  ....बैचैनी में   कुछ ओरचहलकदमी .....फिर  अंग्रेजी   के   कुछ शब्द ..जय धीमे से कुछकह रहा  है ...
 ........फिर अंग्रेजी के कुछओर शब्द .......
.  ...  मनोज  फेफड़ोमें गोल्ड फ्लेक  आरामसे   भर   रहा है .... ...  उसकी आँखों में झांकना चाहता हूँ ...पर  चश्मा  पहनने वालो केसाथ ये सहूलियत  है ...  उनके  एक्सप्रेशन  आपपढ़ नहीं सकते.....चाय ओरसिगरेट  होस्टल में इस  कोकटेल के आपके फेफड़े ओर आंत दोनों आदी  हो जाते है ....
 रेडियो   पे ....हमें तुमसे प्यार कितना ख़त्म होगया है!
 उधर फिर कुछ आवाजे है......सिर्फ निवेदिता की........निवेदिता पैर पटकती वापस गयी है .... जय  वापस हमारे पास आकर बैठा है ....चाय की लारी वाला दूसरीचाय लेकर आया है ...कुछ देर की ख़ामोशी.....
अच्छा हेप्पी बर्थ डे है ..जिसे देखो वही बजा रहा है ... जय बुदबुदाया है
तो घर पे बात क्यों नहीं करते ......मनोज 
एक महीने पहले फोन पे  बस इतना कहा था जरूरी है बिरादरी में शादी करना.....तब से बातचीत बंद है हम  बाप बेटे में .....
.
केज्युवलटी
   के गेट के बाहर कुछ हलचल हुई है.....
पेशेंट छे जय भाई…..का सर्वेंट बुलाने आया है
डेड साल का छोटा बच्चा है ...खूनम खून.....सर पे चोट है.....मां रो रही है ....बाप बदहवास......कोई ऑटो वाला टक्कर मार के गया है .....शुक्र हैकोशीयास है ..थोडा गहरा घाव है ..
जय
  वाश करके टाँके लगा ने की तैयारी में  है ....
फिर शोर मचता है ...मै बाहर
   निकलता हूं........सफ़ेद कुरते पजामे  मे कोई नेता जी है ..पीछे  चार पांच चेले ....घुटने के पास से पजामा फटा  है  .थोडा खून भी......
जगह दो भाई को.........उनके चेले एक बिस्तर कब्ज़ा लेते है ......डॉ कौन है

जय
  रूम में ....बच्चे  का घाव  क्लीन कर रहा है ....मै   वापस  उसके पास जाता हूं............ब्लीडिंग बहुत है ....
डॉ कौन है .......फिर आवाज आती है .अरे सिस्टर.......

इस बार नेता जी खुद
  है......सिस्टर भी वही  है
टाँके लगाने से पहले बच्चे के बाल काटने जरूरी है .....

तुम डॉ हो....कोई दो चेले अन्दर घुस आये है .....आगे वाला
 
साहेब
  जयेश भाई को  देखना .....चोट लगी है ...
जय उसे
  घूरता है .....फिर बाल काटने लगा है ...बच्चा अभी भी भी रो रहा है .मां भी......
साहेब....
थोडा वेट करोगे भाई....जय फिर उसे घूरता   है .....
साहेब ..
देखो लो कही आपको वेट नहीं करना पड़ जाये ....जयेश भाई भट साहेब  के खास  है  ......भट्ट गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री है .....
दो मिनट बाहर बैठगा ......

साहेब..

.जय ने टांका लगाना शुरू किया है.....बच्चे ने हाथ  पैर फेंकना ...."कस के पकड़ इसे "
जय मुझे डांटता है .....

बाहर नेता जी शुरू हो गए है ......सुपरिडेंट कौन है ...अस्पताल का..बुलायो.....

टाँके लग रहे है ....तकरीबन ७ टाँके है .......
बाहर निकले तो नेता जी नहीं थे ....मनोज बोला सुपरिडेंट के घर को गए है ....
तू खाना ला यार...जय मुझसे बोला ....
साढ़े  दस  बज रहे है ....मै खाना लेने अपनी मोटरसाइकिल पे   निकल  गया   हूँ.......ग्यारह बजे रेस्टोरेंट बंद हो जाएगा .......सुगर एंड स्पाइसहॉस्पिटल के नजदीक है ....मै  चाइनीज़  लेकर आता  हूँ......फेवरेट खाने   के साथ भूख  तेज हो गयी   है ....  अन्दर केजव्यूलटी  में माहोल  अपेक्षाकृत शांत है ..सिक्स्थ  सेन्स के वास्ते  . मै खाने का पोलीथिन    बाहरसिस्टर को देता हूँ   .
साहेब आधे घंटे से अन्दर है .....
... अन्दर साहब है.......ओर नेता जी.....ओरदो उनके चेले ... यानि मै क्लाइमेक्स सीन पर पहुंचा हूँ .....मनोज  एक कोने में है......मै  उसके  साथ   वाली जगह  में  एडजस्ट होता हूँ........ ओर जय हाथ बांधे खड़ा  है...सुप्रीडेंट साहब  भले आदमी है ..मेल जोल वाले .....मुंह में हमेशा पानदबाये रखते है ..... खैर ...जो हुआ ..जाने दीजिये बच्चा है ...इस उम्र में अक्सर ऐसा होता है .....
अब मांफी मांगो नेता जी से ....
 मै ओर मनोज जय की ओर देखते है .....वो थोडा सा नेता जी ओर टर्न होता है .....
I am sorry asshole


इत्तेफाको के रिचार्ज कूपन नहीं होते दोस्त !!!!

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हैदराबाद का एयरपोर्ट शहर से काफी बाहर है ....पर जल्दी आना यहाँ खलता नहीं है...  ......…..वक़्त अपने आप गुजर जाता है .... सफ़र अपने आप के साथ वक़्त बिताने का एक बेहतर जरिया है ...इंट्रो स्पेक्शन का भी..... बोर्डिंग पास लेने की लाइन पर  एक कपल है आगे ....लड़के ने.. रीबोक के शूज़ पहने है ....ब्लू जींस .....टी शर्ट पर लिखा है....आई एम् बोर्न फ्रीसाथ में….सर से पैर किसी कपडे से लिपटा पूरा जिस्म.है........झांकती दो आँखेबस.... मुझे अभि  याद आता है .....कहता था....औरतो केपैदा होते ही  रवायते बर्थ सरटिफिकेट के साथ स्टेपल हो जाती है ...
.दुनिया भर में  घूमने का शौक है उसे ...  ऐसे लोग गुल्लक की माफिक होते  है ...ढेरो तजुर्बे अपने भीतर जमा किये..........चेक इन के बाद किताबो की एक शॉप में कुछ वक़्त गुजार कर मै एक जगह तलाश करबैठा हूँ ...हाथो में अखबार लेकर ....कोंफ्रेंस में अकेले आना ..सफ़र करतेवक़्त  ज्यादा महसूस होता है ...एक नजर आस पास दौडाता हूँ...कानो में हेडफोन लगाये एक लड़का बराबर में बैठा है.....दूसरी ओर मोहतरमा मोबाइल मेंउलझी है .अंग्रेजी में बात करती...बीच में बीच में तेज तेज कुछ शब्द कानमें  पड़ते है...   ...ओह आई मिस यू टू.बेबी......तकरीबन  हर पांच  मिनटबाद .....सामने बैठी गुजराती फॅमिली में से एक १२ -१३ साल की लड़की हर बारइस "मिस यू " को सुनकर अपने प्ले स्टेशन से आँख ऊपर उठाती है...एक मिनटदेखती है ....फिर खेल में लग जाती है .....प्रति व्यक्ति आय दर २० रुपये से कम......केपरीकोन राशि वाले ज्यादारोमांटिक होते है ....करन जोहर के मुताबिक हिन्दुस्तान में राइटर की कमी है .......सारे पेज पलटकर मै  अखबार से  बाहर  निकलता  हूं  
ख़ूबसूरती अपना स्पेस भीड़ में भी तलाश लेती है ... एक.गोरा  गोल चेहरा ...बड़ासा जूडा  .माथे के ठीक बीचो बीच एक बड़ी सी गोल बिंदी.....कालीसाड़ी.जिसके  बोर्डर पे लाल रंग है ... चलता आ रहा है ..साथ चलने वाले जैसे बेक ग्रायूंड में है....कहते है खूबसूरत लोगो को अपनीख़ूबसूरती  का इल्म होता है ......उसे  भी है .. मेरे  सामने  दायी  ओर तीसरी   सीट खाली है .....वे नजरे  इधर  उधर घूमतीमुझ पर रुकी है ....  ....आधा मिनट.....अभी भी रुकी है .....मै थोडाअसहज होने लगा हूँ......हिम्मत   करके उन आँखों   का पीछा   करताहूँ.... वे ब्राउन आँखे है .....ब्राउन……..... एयरपोर्ट ने मुझे फिर यकीन दिलाया है के दुनिया गोल है ..... उन होठो पे मुस्कराहट आयी है….जानी पहचानी मुस्कराहट. ...
मै ब्राउन आँखों संग  कई साल पीछे दौड़ जाता हूँ......
 ब बी एस एस  ए लार की तारो वाली साइकिले हमारे लिए सिटी होंडा सीथी.....हमारे गेंग की आवश्यक शर्त भी....मूंछे बेतरतीब सी उग रही थी....रोजरेजर पे एक उम्मीद भरी निगाह दौड़ती थी .ओर कशमकश के  साफ़ करूँ यानहीं...... संजीव ओर मैंने लगभग साथ साथ साइकिले खरीदे थी ...फर्क इतना थाउसकी मे गोल्डन लाइने थी .....स्कूल जाने से पहले उसके घर के बाहर..... १०मिनट खडा होना मेरा रोज का नियम था......दस मिनट इसलिए   के  वो टॉयलेट    में सबसे ज्यादा वक़्त लगता......फिर आधी कमीज पेंट में खोंस्ता हुआ सोरी -सोरी   कहता हुआ बाहर निकलता..उसी वक़्त .उसकी गली में  दो सहेलिया भी अपनेस्कूल रवाना होती.. ब्लू ड्रेस  ओर स्कर्ट  पहने .रेड टाई के साथ.....लडकियों के  बेस्ट कोंवेंट स्कूल सोफिया की ड्रेस थी वो ..मेरे पास से से  गुजरते वक़्त पता नहीं  क्याबुदबदाती  ओर खी  खी करती . उनमे से.ब्राउन आँखेवाली  अक्सर  गली के किनारे  पहुंचकर  पीछे मुड़कर देखती फिर हंसती ......मै कई बार टाइमिंग  चेंज करता ..  पर उनकी खी खी रोज मेरी पीठ पे चिपक जाती .....झुंझला कर मै   संजीव पे गुस्सा  होता…..मुझे लगता वो  हमारे हिंदी मीडियम में होने पर हंसती है ...
घमंडी है ....कोंवेंट वाली है न ....

.वो रास्ते में मुझे बताता
माँ   शहद मिला दूध देती है रात को.....इससे कब्ज नहीं होगा बताता ... जाने कौन सा  शहद था.... पिछले छह महीनो से बे असर था...... 
"साले फीते बाँध लिया करो .किसी दिन बड़े जोर से गिरोगे ...संजीव कहता है.पर मै फीतों को ठूंसकर जूतों में फंसा देता हूँ....मुझसे फीते बंधते नहीं
 र्दिया बहुत अच्छी लगती है ....बस सुबह के उस हिस्से को  छोड़कर जिसमेपापा की पहली आवाज को जानबूझ रजाई से  ओर ढका जाता ....गर्म रजाई को छोड़नाबड़ा तकलीफदेह  काम है  ...मां रोज पानी गर्म करती है ओर मै सिर्फ हाथमुंह धोकर बाहर निकल आता हूँ....वे धीमे से रोज कहती है ...आज छोड़े दे रहीहूँ...कल नहा लेना .शुक्र है पापा का बाथरूम दूसरा है.......
सर्दियों में वो रोज होमियोपेथिक की तीन चार दवाइया चलने से पहले गटकता ...कभी कभी उन सफ़ेद मीठी गोलियों को मै भी ले लेता..उस रोज आफती  धुंध है ..  ....हम मुंह से धुया निकाल कर धुंध से मिला रहेहै ... हाथो में  ठण्ड लग रही है ...इसलिए   एक हाथ  जेब में है .......मां  के बुने  ग्लोव्स मुझे फेशनेबल  नहीं लगते .मुझे लेदर केग्लोव्स चाहिए ...काले ....जैसे हमारी क्लास के नीरज के है ...पर पापासुनते नहीं ... "तुम्हे  जिद सूट  नहीं करती ' वो अक्सर कहता है .....धुंधमें ही हमें जानी पहचानी दो परछाईया दिखने लगी है .....ब्लू ब्लेज़र ....व्हाईट जुराबे ...घुटनों तक.....
आधी धुंध में वे दोनों साइकिल रोके खड़ी है..कुछ परेशां सी....फ़ौरन साइकिल
पर नजर आती है .चेन उतरी हुई है ....कुछ फंसी हुई सी..... 
तुझे कसम है.. गर तू रुका तो....मै पहले ही उसे चेतावनी
  देता हूँ......देखना मत....
पागल है यार .उनका इक्जाम है ...देख कितनी रुआंसी हो रही है ...वो नजदीक आते आते धीमे से फुसफुसाता है

सीधा चल
  .....मै फुसफुसाता   हूँ.....बेक ग्रायूड में उनकी हंसी अब भी मेरे सर में सवार है ...
एक्सयूज़ मी.......कानो में कुछ सुनाई दिया है ....या शायद मेरे मन का
वहम............पर मैंने साइकिल तेज भगा दी है ......ओर तेज........ओरतेज......सर्दियों में भी मेरे माथे पर प"तुने कुछ सुना ".वो कहता है "उन्होंने शायद रुकने को कहा था ....".
नहीं तो ....मै झूठ बोलता हूँ

अच्छा है अकड़ ढीली होगी आज .मै
  कहता हूँ.....पर... जाने क्यों मन थका थका सा ..खाली है..  एक अजीब सी गिल्ट  ब्लेज़र पर  जम गयी  है .....जाने क्यों भारी लगने लगा है
हमें रुकना चाहिए था यार  .”...स्कूल के साइकिल स्टेंड पर साइकिल खड़ा करते वक़्त वो कहता है ..... मेरा ब्लेज़र ओर भारी हो गया है..
करीबन१५ दिन बाद ...किशोर एक पर्पोज़ल लाया है ..सोफिया में फेयर है ...सिर्फचुनिन्दा स्कूलों को इनविटेशन है ...कोट पेंट ओर टाई का जुगाड़ वो कर लेगा ...हम पांच लोग है ..थ्रिल ओर  डर के मिले जुले   परसेंटेज पर इच्छाये ओर लड़कपन हावी है सो...उस जोखिम  को. उठानेकी सामूहिक हामी भरी जाती  ..है.
धडधडातेदिलो से हमने  फेयरके अन्दर एंट्री कर ली है .सेंत जोन्स में किशोर के दो दोस्तहै शुरूआती मोरल सपोर्ट के वास्ते वे कुछ देर साथ है ...मै ओर संजीव आहिस्ता -आहिस्ता एक चौकन्नी बेफिक्री के संग उस ग्रुपसे  अलग होते है...ठेठ बोयस स्कूल से पोलिश कोंनवेंटी  लडकियों के बीच पहुंचना भला सालग रहा है ..कुछ मिनटों के बाद एक स्टाल हमें अपनी ओर खींचता है ..बन्दूकसे गुबारे फोड़ने  पर इनाम है  ... हम दोनों दोस्त से पहले दो लड़के ट्राई  कर रहे  है .. स्टाल  वाली लडकिय चीयर्स करती है ..ऐसे प्रोत्साहन कम्बखतओर नर्वस करते है ...मेरा नंबर आने तक हाथ  पसीने से भर गया  है ... पहलेचार  शोट ठीक लग गए है ...मुझे तीन ओर निशाने मारने है...पांच शोटो में से ..आँख  निशाने की ओर साधते वक़्त  जाने क्यों किसी जानी पहचानी नजर को दाईओर महसूस करता हूँ ....शोट लगाते ही उस ओर देखता हूँ.....ब्राउन आँखे वहांखड़ी है .....शोर मचा है ...शोट ठीक लगा है ...
"चल "पीछे से वो मेरे कान में फुसफुसा रहा है ...पसीने को हाथो से पोंछजाने  क्यों मै अगला शोट ले लेता हूँ...मन में भगवान् को याद करता हुआ ...भगवान् जी सुन लेते है ..
ब्राउन आँखे हिली नहीं है ...आखिरी शोट है ....आँखे बंद करके वो तुक्का सही बैठ गया है......
मैडम आयी है ..वहां फुसफुसाहट शुरू हो गयी है .....बन्दूक थामे मै किसी मैडम को नजदीक खड़ा देखता हूँ.....
"मैडम.आप प्राइज़ डिस्ट्रीबूट करेगी.."....स्टाल वाली दोनों लडकिया मैडम से रिक्वेस्ट कर रही है ....ब्राउन आँखे चलकर नजदीक आयी है .....तो स्टाल उसका भी है ....
मैडम मेरी ओर मुड़ी है ".वेल डन  माय बॉय" .चश्मा ठीक करके वो मेरे कोट से स्कूल का नाम पढने की कोशिश कर रही है .....
"कौन सी क्लास में हो ...."
मेरी पीठ पर पसीने की एक पूरी लहर पैदा हुई है ओर ऐसा लगता है जैसे मेरे दिल की धड़कन वहां सबको सुनाई दे रही है .....धक्.. धक्
 १२ डी मैडम ...मेरी आवाज ओरिजनल नहीं है ....
गुडमैडम मुझे एक पैकट पकड़ा रही है ....
 मै ब्राउन आँखों को देखता हूँ.....वे मुस्करा रही है ....
उस दिन पहली बार मैंने उसकी आँखों को इतनी देर तक देखा है ...नजदीक से .....वे कितनी सुन्दर है !मै थैंक-यू कहना चाहता  हूँ ...पर वो मुझे घसीट कर ले जाने लगा है ..... किशोर की किसी से लड़ाई हो गयी है ...पोल खुले  उससे पहले हमें निकलना होगा ......हम निकल गए है!
 उसके बाद की दुनिया मसरूफ है ....१२ में हमारा आखिरी साल .बोर्ड का इक्जाम ...संजीव को सिविल सेवा में जाना है .ओर मुझे मेडिकल में ..हम जानते है ...हमारे रस्ते आगे जुदा होने है ........अगले दो सालो में  मेडिकलएंट्रेंस मेरी   प्राथमिकता  है ....सो उस दुनिया के सफ़र के वास्ते फिलहालसंजीव से उतनी फ्रीक्वेंट मुलाकाते नहीं है .....
 ब्रायून आँखे फिर कभी मिली नहीं.....
 इंदोर जाने वाले यात्री ....कुछ अनायूसमेंट हो रहा है .वो खड़ी हुई है ...एक छोटा बेग लिए वो आहिस्ता आहिस्ता .....चल रही है ...मेरे पास एकसेकण्ड के लिए रुकी है ...नीचे देखती है ....फिर मुस्कराती है .........जहाँ तक नजर जाती है मै  आँखों  से  उसका पीछा करता हूँ.......फिर वो भीड़ में गुम गयी है ...संजीव का नंबर   मोबाइल पर मिलाते   मेरी निगाह नीचे अपने जूतों पर गयी है......फीते अब भी खुले है

कभी चलना आसमानों पे ...मांजे की चरखी ले के ...

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खांसते बच्चे . ओर  बूढ़े मोहल्ले एक से लगते है
मै जब बड़ा होजाऊंगा....बस अड्डे के पास मकान नहीं बनाऊंगा ......मै रजाईसे मुंह निकालकर  करपापा से कहता हूँ...किसी फाइल में डूबे  पापा सिर्फ" हूँ "करते है ... सवेरे सवेरे  हमारेउठने से पहले पापा रोज दिल्ली जाते है ......रात देर में  घर आते है ...मै अक्सर कोशिश करता हूँ उनके आने तक जगारहूं...उन्हें पतंग पसंदनहीं है ...मां सुबह जल्दी उठ जाती है...दिन भर काम करती रहती है. ...मुझे  पतंग उडानीबहुत अच्छी लगती है ..आज मैंने पहला  पेचा काटा है ....वो भीराजू भैय्या  का ..राजू भैय्या बहुत अच्छी पतंग उड़ाते है ..पापा को पतंगक्यों पसंद नहीं है?...
मां से मंजे के लिए  पैसेमांगू तो कहती है सारे खर्च हो गए ...मेहमानों के बिस्किट लाने में ...मेहमान .रोज  आते है ..ढेर सारे!!  बस अड्डे के पासहम  रहते  है  …किराये  के  मकान  में  … थापर नगरगली नंबर चार में……बस अड्डे से मोहल्ले में खुलती  गली जिसकी एक  दीवार पर ना जाने कौन  फिल्मो के पोस्टर चिपका जाता है   ...थोडा आगे चलकर एक मंदिर....जिसका लालआँखों वाला  पुजारी  मुझे  उछल  कर घंटा बजाने पे घूरता है ....मुझे मन्दिरआना पसंद नहीं है पर  स्वेटर वाली आंटी आम पापड़ का मीठा पेकेट देती है ..इसलिए उनके साथ आता हूँ……..गाँव सेमेरठ  चले  किसी  भी  काम के वास्ते चले  शख्स  की    ..हमारे घर हाजिरी  तय    है  ……..... मम्मी- पापा किसीज़मीन की बात कररहे   है ... ..मुझे   नींद ने घेरना  शुरू किया है ....मै जगे रहने की कोशिश  कररहा हूँ...बीच बीच में कुछ आवाजेसुने देती है ...पैसा .लोन...ढाई सौ गज...आहिस्ता - आहिस्ता   सारी आवाजेखो  जाती  है  … … कोई मुझे  रजाई  उड़ाते  वक़्त  प्यार कर रहा है ..चुभती  दाढ़ी ...पापा है .....
उम्मीदों केआसमान मेंयकीनो  के मांजे
सुबह  उठता  हूँ पापा  चले  गए  है  …मां  उन की केप   पहना  रही  है  ..मुझे  केप  पहनना पसंद नहीं ..बालकैसेचिपके चिपके से हो जाते है 
"मुझे  मंजा  लाना  है  मम्मी " …….... मांजैसे सुनती नहीं ...सीधे केप से  कान ढँक देती है ....स्कूल  पास  ही  है .. मै  पैदल  चल कर जाता हूँ..... स्कूल के नीचे बायीं ओर एक पोस्ट ऑफिस है ..जिसमे काम करने  वाले सारे बूढ़ेहै ..सब के सफ़ेद बाल है  ...दाई ओर एक नाई की दूकान है जिसे चलाना वालाकोई रिटायर्ड फौजी है ... उसे  "कटोरा कट" काटने में बड़ा मजा आता है ..छोटे छोटे बाल...मां अक्सर उसकी धमकी देती है.......गेट   पर  देव  खड़ा  है .... ऊँचा  हैओर मोटा भी...आते जाते  मेरी केप उतार देता है .....मुझे  उससे  डर  लगता  है  ..ओर मुझे वो  पसंद नहीं .....मै  साइड  से  निकल  जाता   हूँ ...आजकल  विनीत  मेरा  नया  पार्टनर  है ....अपने हाथ में वो एक लाल रंग की गाड़ीमुट्ठी  में दबाये रखता है ..क्लास शुरू होते ही उसे बेग की जेब में रखदेता है ....
...लंच  में  .. मै टिफिनखोलता हूँ....आलू ओर परांठा है ..मां.  रोज रोज  बस आलू ओर परांठे  देती  है .....जिस रोज आलू नहीं ..उस रोजअचार ...अचार का तेल टिफिन सेनिकलकर ..सब कुछ पीला कर देता है ..मेरा बेग भी.....विनीत ने अपना टिफिन खोला है ..उसका सफ़ेदपरांठा है...प्याज ओरटमाटर बीच में ...".खायेगा'.विनीत मुझसे पूछता है ....वो  मेरा बहुतअच्छा  वाला दोस्त नहीं है ..पर उसका परांठा!!!......मैआधे  से  ज्यादा  खा  जाता  हूँ …....उसका   "सफ़ेद परांठा"  कितना  अच्छा  है  !
लंच  के  बाद  अगला  पीरियड   हिस्टरी  का  है ….मेरा  कुछ  होम  वर्क  बाकी  है  ..मै  विनीत  की  कॉपी  से  कर  रहा  हूँ ….देव  ने  मेरी  केप  उतार  ली  है ….मै  उससे  लेने  की  कोशिश  करता  हूँ उसने मेरी हिस्टरी  की कोपी  उठा ली है....वापस लेने में ….  हिस्ट्री की कोपी फट गयी है ...होमवर्क का चेप्टर भी......
 पीरियड में  . हिस्ट्री कीमैडम  मुट्ठी बंद करवा के  स्केलको खड़ा करके मारती है ....बहुत जोर से लगती है...सीटपर जाकर आंसू पोछता  हुआ मै सोचताहूँ..टीचर बना तो बच्चो को नहीं मारूंगा !
स्कूल से लौटता हूँ तोसीडियो पर मुड़ी तुड़ी अधजली .बीड़िया देख मुझे गुस्सा आता है   ..मांरोज कीतरह कुछ बनाने मेंजुटी है .. कितना बड़ा गाँव है?

उन दिनों सब  लोग एक से  थे ...न ज्यादा अमीर .न ज्यादा गरीब...
 उस रोज  "स्वेटर वालीआंटी" ने ..मुझेओर छोटे को  सुबह खाने पर  बुलाया है ..वो  सर्दियों में बहुत सारेस्वेटर   बुनती  है .....इसलिए उन्हें सब स्वेटर वाली आंटी  कहते है ....वे  बहुत अच्छी  है .. हमेशा प्यार करती है  .सुबह के स्कूल में अभी  टाइम है ...वहां  पहुँचताहूँ  तो देखता हूँ  बहुत सारे बच्चे है पूरी ..काले छोले..ओर हलवा ...कालेछोले मुझे बहुत अच्छे  लगते  है कई दिनों से आंटी मंदिर नहीं गयी  .... आंटी कापेटफूलाहुआहै .
"आप बीमार हो'.....मै पूछता हूँ...
वे हंसती है ...ओर मेरेसर पर हाथ फेरती है.ओर थोडा हलवा मेरी प्लेट में डाल देती है .
"आंटी   के  पेट  में  बेबी  है "बराबर में बैठी .रविंदर  कौर  मुझे  धीमे  से  बताती  है  ….रविंदर  कौर  गली  नंबर  तीन  में  रहती  है ...बड़ी होशियार है ..नेल कटर से नेल  काटती है .(   पापा अपने  ब्लेड से  नेल  काटते  है ) उसके  घर  में  एक  बड़ा  डौगी  है….जब  कभी  "लंगड़ी - टांग"  में  उससे  लड़ो  तो  वो  बहुत  जोर  से  भौंकता  है  ….
पेट  भर गया है ...ऐसा  जैसे  फट जाएगा .... ..स्कूल पहुँचता हूँ तो देखताहूँ एक कोने में भीड़ जमा है ...विनीत केहोठो पर खून है ....देव   ने उसेमारा है....देव के हाथ में उसकी गाडी है ...विनीत.  रो रहा है . .....किसी ने मुझे देव की ओरधक्का दिया है ...."तू लडेगा" ..देव मेरी ओर बढ़ा  है ...मेरी घिघ्घी  बंध आयी है ...देव ने हाथ घुमायाहै...मै पीछे हटगया  हूँ फिर  जाने  क्या  हुआ  है  के  मैंने  घूंसे  बरसाने  शुरू  किये  है  …लगतार  ….देव  गिर  गया  है  …..मुझे  लगता  है  काले  छोलो  ने  मुझमे  ताकत  भर  दी  है  .....
स्कूली ड्रेस में भी सारे बच्चे एक से लगते है
सुबह उठा  हूँ... वीर सिंह अंकल आये है ....चंडीगढ़ से ....मेरे लिए हमेशा  कोई  किताब लेकर आते है ..... पापा बताते है बचपन के दोस्त है….एक हीगाँव से निकलेचंडीगढ़  सेवे जब भी सन्डे को  आते है ..पापा उनके साथघंटोचेस खेलते है ..........रात को वीर सिंह अंकल मुझे कहानिया सुनाते है
.अगले  दिन  विनीत ने  मुझे घर पे बुलाया है....वो गलीनंबर पांच में रहता है....उसके पास मांजे  की एक चरखी है ...बहुत सारीपतंगे ...हम उसकी छत   से पतंग   उड़ाते है ..उसकी मम्मी  नीचे   बुलाती है ...प्लेट में गरम गरम सफ़ेद परांठा है ...ब्रेड के साथ.......मै पूरा खाजाता हूँ..... ….ओर ऑमलेट  खायोगे बेटे? उसकी मम्मी पूछ रही है .... ऑमलेट !!!!!..मैंने अंडा खाया है ....मै डर गया हूँ.....नहीं ...मै कहता हूँ....वापस लौटते वक़्त मन में अजीब सा गिल्ट है ..... घर जाने से पहले गली नंबर  तीन के  अस्पताल के नल से मुंह धोता हूँ....  मम्मी को नहीं बतायूँगा..बहुत मार पड़ेगी  
रात को वीर सिंह अंकल मुझे एक कहानी सुनाते हैवे कहानिया लिखते भी है ..."मै भी बड़ा होकर कहानिया लिखूंगा" ....मै उनसे कहता हूँ....
सपने में उनकी कहानी के साथ ऑमलेट भी आया है!
दो रोज से   मै विनीत के घर नहीं गया हूँ......तीसरे दिनविनीत   मुझे बुलाने आया है....मै शर्त रखता हूँ ऑमलेटनहीं  खायूँगा .......फिर कई दिन .रंग बिरंगी पतंगों.में बीतते है ...हाथ की अंगुलिया काटने लगी है मंजो से .... उसकी मम्मी ब्रेड सेंडविचबनाने लगी है ....उनके यहाँ की  ब्रेड कितनी मुलायम होती है न ...साफसुथरी  कोनो से कटी हुई.....आठ दिन बाद बसंत है ...पतंगों का त्यौहार ... हम ने उस दिन के लिए  एक रुपये वाली बड़ी पतंग भी खरीदी  है....".सरदारा "….
वक़्त के कन्ने कटते है जब ..
अगले रोज विनीत स्कूल में नहीं आया है ....दोपहर को मै उसके घर जाताहूँ....उसके यहां सामान की पेकिंग हो रही है ....पापा का ट्रांसफर हो गया ..वो बताता है ...उस रोज हम छत  पर पतंग नहीं उड़ाते...न सेंडविच खाते ...दोदिन बाद उसे जाना है ...वापस लौटते वक़्त  मै सड़क के कई पथ्थरो पर ठोकरमारता हूँ...  घर आकर मां से झगड़ता  हूँ..बिना खाए सो जाता हूँ....
सुबह जल्दी आँख  खुली है .पापा तैयार  होकर चाय पी रहे है .ये ट्रांसफरक्या होता है पापा ....मै पापा से पूछता हूँ.....वे कुछ समझाते है .जो मेरीसमझ नहीं आया है........
क्या आपका भी होगा
?..मै पूछता हूँ......वे हाँ कहते है ....जाते वक़्त मुझे प्यार करते है ......
मेरा स्कूल जाने का
  मन नहीं है ......मां गुस्सा होकर तैयार करके भेजती है .स्कूल में मन नहीं लगा है ...लौटा हूँ तो मां बताती है ... विनीतआयाथा..मुझे घर पे बुलाया है ...
मै उस रोज उसके घर नहीं गया हूँ...मां के कहने पर भी नहीं.... आज फिर मां से लड़ा हूँ कई बार
.. अगले दिन सुबह  मुझे ठण्ड  सी   लगती है ....स्कूल   में सब कुछ सुस्तसुस्त सा है ...मेरे सर में बहुत दर्द है....आज घर बहुत दूर  लगा है ......सीढियों पर चढ़ते चढ़ते  रुक गया हूँ... .मां दौड़ी आयी है ....कहती हैमुझे बुखार है ...रोते हुए प्यार करती है ....मै जब भी बीमार होताहूँ..मां बहुत प्यार करती है .....दवाई के साथ वो  मुझे ग्लूकोज़ काबिस्किट भी देती  है..मै दवाई लेकर  सो गया हूँ.....  घंटो  सोया हूँ...उठता हूँ....तो कमरे  के बाहर में हवा के साथ अजीब सी आवाजे सुनाई  दी  है .जानी पहचानी ...क्या .पापा छुट्टी लेकरआये है.?... ...."..मां "मै आवाज देता हूँ.....मां के हाथ मेंढेर सारी पतंगे है ओर हुचकी है .....बताती है विनीत आया था....छोड़ गया है... पापा कमरे के कोने में कोई कटोरी लेकर खड़े है ...गाजर का हलवा है ...मेरी फेवरेट डिशहवा से एक पतंग बाहर निकल कर गिरती है…."सरदारा" है….
 ...जनवरी महीने का एक मंगलवार   साल२०११ ..
नीचे अख़बार पढने उतरा हूँ तो मां चाय पीते पीते बताती
  है .वीर सिंह अंकलनहीं रहे .मन अजीब सा हो गया है ...... ...अखबार की तह बताती है ... ... पापा ने नहीं पढ़ा ....पापाचुप चुप से  है.... चाय में चीनी नहीं है ...पर वे चुपचाप पी रहे है ... उन्हें एक घंटे में चंडीगढ़निकलना है ...मुझे उनकी ख़ामोशीमुझे बैचेन करती है . ड्राईवर  को हिदायत देकर   भेजता हूं……पापा को अगले दिन आना है.....
बुधवार की दोपहर....
.. क्लीनिक से लौटते  वक़्त  सोचा है ......अगले  आधे दिन की छुट्टी रखूंगागाडी पार्क करते  देखता हूँ.......पापा दूरसड़क पे से आर्यन के साथ आ रहे है ...उसके हाथ में ढेर सारी पतंगे है….सबसे आगे "सरदारा "है

खाली पड़ी जगहों में गर थोडा खुदा फेंक दूं. ....

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मोहल्ला कथाओ  के संस्करणों में भारद्वाज जैसे लोग नायक नहीं होते....सह नायकभी नहीं..टोटलीटीमें कहेतो दुनिया के  एटलस में मनोज दिखता नहीं....नजैकी .. ...तो बात उन दिनों की है... जब सूरज बाबू  ओर धरती के  दरमियाँग्रीन हाउस इफेक्टवाला छेद इतना बड़ा नहीं था ...सो दोपहरे इत्ती चुभती नहीं थी.....
 भारद्वाज की आवाजे तब  तक लगती  जब तक आप अपना चेहरा बतोर "प्रजेंट सर "कीमुद्रा में उसे दिखा न दे .."जूते पहनकर फ़ौरन आ.."..हाथ में बैट थामे वोसफ़ेद ड्रेस पहनेइसरार मिक्स आदेश देता …भारद्वाज हमारी टीम का केप्टिन था ...उन दिनों दिन का सबसेपंसदीदा हिस्सा शाम  थी.. मैंने घडी देखी... वक़्त से पंद्रह मिनट पहले ... आज आपातकालीन मीटिंग  . थी.. कोने पे सूबेदार साहब का घर  था  ...टीम  ने कई बार तमन्ना की थी के घरो को व्हील पर होना चाहिए ..ताकि उनकी पोजीशनो को मुख्तलिफ जगहों पे सेट किया जा सके ...सूबेदार साहब बड़े फिक्रमंद आदमी थे....हमेशा फ़िक्र में रहते... ....बैचेनियो ओर तल्खियो  का कोकटेल ...अखबार में खबरे पढ़ देश के हाल पर मोहल्ले के कोनो मेंफ़िक्र  करते पर गली के  कुत्तो ओर भिखारियों को गरियाते . मोहल्ले के बाहर का कोई आदमी पार्क के पास नज़र आ जाए तो उसे पकड़करइन्टेरोगेशन कर डालते ..कहते है वे रात -बेरात अपने घर का ताला भी कई दफाचेक करके सोते थे ...क्रिकेट से उन्हें  जितनी  खुंदक थी..उससे दुगुनी  बौल से .....वहां गयी बौल का चेहरा कभी दोबारा देखने को नसीब नहीं होता था  गोया लेगसाइड पर शोट मारनाजुर्म हो गया....हालत ये के लोग लेग साइड पर दबाकरखेलने लगे पर ये आदतेमेच में नुक्सान देने लगीकोल सूबेदार साहब  क्रिकेट   "देश को आलसी बनाने वाले खेल"था  ...देश की सारी प्रगति  योजनाये इसी की वज़ह से टेबलों में रुकी पड़ी थी..ऑफिसों का सन्दर्भ इतने जोर से  देते  जैसे नॉन क्रिकेट दिनों में सरकारी बाबू  फाइलों को राजधानी एक्सप्रेस की तरह निबटाते है ....सूबेदार साहब काबढ़ताकलेक्शन  टीम की भविष्य  की योजनाओं जिसमे विकेट कीपिंग ग्लोव्स के अलावातीन जोड़ी पैड खरीदना भी था के लिए रूकावट बन रहा था ..
टीउन दिनों भारी आर्थिक ओर दूसरे कईसंकटों”  से गुजर रही थी..बीस रुपये कीलेदर की बौल  आती थी ..रोज का एक या दो रूपया जेब खर्ची को मिलता था  स्कूलके किनारे के कल्लू  हलवाई के समोसे और कचोरियो  से अलग  वफादारी  थी . . दूसरे कई संकट थेजो सबके निजी निजी जोड़कर सामूहिक हो जाते थे .जैसे ...पिताओं के अपने तर्क थे .मसलन  शाम ओर सुबह का वक़्त पढने के लिए सबसेमुफीद है .शाम का ये खेल बकोल उनके हमारे उज्जवल भविष्य के लिए  बड़ेआसन्न  खतरे की तरह था...पिताओ  की इन दूरगामी दृष्टियों से .माँ रक्षाकरती...  .आर्थिक रूप से भी  गुप चुप मदद माँ  से मिलती पर उसइमोशनलबैंककी भी कई शाखाए थी...आखिर हर घर में दो  तीन भाई बहन जो थे. . हमारीटीम के दोनों  मेन बोलर ट्वेल्थ  क्लास में आये थे ट्वेल्थ क्लास यानी बोर्ड के इक्जाम ..जिनकी  अपनी ख्याति थी ..अपने साइडइफेक्ट्स ..जाने कौन सी दीप्ति से  विधार्थी का चेहरा उज्जवलित रहता का हरआने जाने वाला उसे खेलते देख टोक देता .".रे लल्ला इस दफे तो बोर्ड काइक्जाम है तेरा !  मोहल्ले के बुजुर्ग इस कर्तव्य को निभाना अपनी नैतिकजिम्मेवारी समझते ...
 गले महीने एक टूर्नामेंट होना था जिसके लिए हमें एक्स्ट्रा एफर्ट डालने थे .टीम का कप्तान भारद्वाज था .क्रिकेट को समर्पित..समर्पण भावना को कई पैमानों से मापा जाता था ..शाम को पांच बजे से घरो घरो में जाकर खिलाडियों को इकठ्ठा करना ..सोते हुए को उठाना .. पिताओं की तीखी नजरो को रोज़ बर्दाश्त करना .दो दो रुपये इकट्ठे करना .. चूँकि दो तीन खिलाडी मसलन त्यागी कभी आर्थिक भागदारी में हिस्सा नहीं लेतेथे तो उनके हिस्से की भरपाई भी कप्तान को गाहे बगाहे करनी होती थीभारद्वाज  सारे क्राइटेरिया फुल फिल करता था...एक ओर गुण था ..केवल उसी के बस पूरी किट थी !....पिता ओर सख्त हो रहे थे ओर मांओ का इमोशनल बैंक भी अपने आखरी स्टोक में था ...भारद्वाज के क्रिकेट सेन्स के मुताबिक   जिस मैदान में टूर्नामेंट होना था उसकी लेग साइड की बाउंड्री  छोटी थी.... ओर हमारी टीम के इसी कमजोर पक्ष को मजबूत करने के लिए हमें बेधड़क हो कर लेड साइड पर शोट खेलने की प्रेक्टिस करने थी...जीतने वाली टीम को ग्यारह सौ रुपये नकद के अलावा पूरी क्रिकेट किटमय नेट के मिलना तय था……ग्यारह सौ रुपये के  मुताल्लिक  कई ख़्वाब भी टीम  मोटिवेशन की प्रक्रिया का हिस्सा थे.
 पातकालीन मीटिंग में तय हुआ के पिच को बदल के पार्क के दूसरे कोने में शिफ्ट कर दिया जाए ...वहां का खतरा दूसरा था ..चतुर्वेदी जी लेग साइड में पड़ते थे ...चतुर्वेदीजी हाइडिल से रिटायर इंजीयर थे...उस महकमेमें  जहाँ उपरी कमाई कोडेमोक्रेटिक राईटमानाजाता है  ..चतुर्वेदी जी जिंदगी भर पक्केडेमोक्रेट रहे .... रिटायर मेंट के बाद वे अपनी इसी डेमोक्रेसी के चलते  बच्चो को सेटल कर अचानक सात्विक हो गये ...यूँ भी सात्विकता मोर्निंग वाक् की तरह  है ..आप कभी भी शुरुआत कर सकते  है .किसी रोज़ भी ब्रेक ले सकते है....वहां से बौल तो वापस मिल जाती पर वहां जाने वाले कोअपने भविष्य की कई संभावनाओं का पता चलता... वे अपने आप को बड़ी गंभीरता  से  लेते  थे ...बाते करते वक़्त अटल बिहारीवाजपायी की तरह पॉज़ लेते..बड़ी क्लासिकल गरिमा से वेपढाई की महत्तासमझाते उनका स्लो मोशन दो तीन ओवरों का समय निकाल देता
वे एक एक संभावना पे टोर्च फेंकते....."सुन रहे हो बच्चे" उनका
विरासत में मिला फिकराहोता ..जिसका  परोक्ष अर्थ होता बात अभी बाकी है.......
 पातकालीन मीटिंग में तय हुआ चतुर्वेदी वाला जोखिमलिया जाए ....इसे ओर लोकतान्त्रिक बनाने के लिए दिनों के मुताबिक आदमी बांट दिए जाए  केफला दिन फलां आदमी का बौल उठाने का नंबर है ...बोर्ड के दोनों विधाथियो कोअधिक जोखिम देखते  हुए इस प्रक्रिया से बाहर रखा जाये  ओर बोर्ड वालो की मम्मियो पर थोडा  इमोशनल टच ओर बिखेरा  जाये ताकि अगले एकमहीने  तक वे  पिताओं से प्रोटेक्ट शील्ड का उनका   काम जारी  रहे.
"मै हफ्ते में तीन दिन जा सकता हूँ..."उसने कहा ... वो पार्क के उस कोने में बनी  बेंच के दूसरे  कोने में खड़ा  था .हर उम्र अपना एक यक्ष प्रशन लेकर आती है ओर पिछले किसी तजुर्बे को रिकंसट्रक्ट करती है  ..जिंदगी की नयी चाभी हाथ में थमा देती है ..उसकी एंट्री हमारी जिंदगी में भी ऑफिशियली पार्क के उस कोने से हुई थी ...सांवलासा चेहरा .,लम्बा कद ...दरमियाना शरीर ..गंवाई कट से बाल जिसमे भूरे सेमिलते जुलते  कई रंगों के शेड्स ...ऊँची पैंट पर बाहर निकली शर्ट .पैरो मेंचप्पले ...यही था उसका  पहला पोट्रेटपहली बार उसे  नुक्कड़ वाले उस  बनिए की दूकान पे  देखा था ....मुझे देख वोबेवजह मुस्कराया था ..फिर वो कई बार गली मेंदिखा..हर बार बेवजहमुस्कराना ... कभीगेंहू का बोरा लेकर चक्की पे   ...कभी कपडे लेकर धोबी ...पिछलेएक हफ्ते से उसको अक्सर बाहर देखा था....उसकी साइकिल गली के कोने में उसआखिरी मकान में घुसती...जिसके सामने एक सरकारी जीप सदा मुस्तैद  रहती…..घर के  लोग मोहल्ले केलोगो से कम  वास्ता रखते.....शादी ब्याह का कार्ड या  होली दिवाली  काचंदा  लेने कोई जाता तो बाहर  दरवाज़े पे नौकर अपने जरिये से निबटा देता..घरकी मालकिन  सरकारी जीप में ही बाहर निकलती ....उसकी दो लडकिया भी.!.  एक साल से  इन  किरायेदारो  की    उस ."अकडू फेमिली  "के इस नए सदस्य का यूँ बेवजह  मुस्कराना मुझे चौकन्ना करदेता...अलबत्ता उसका पहनावा फेमिली मेंबर जैसा टच देता नहीं था ....
"तुम "भारद्वाज उसकी ओर मुड़ा
 सिंह साहब मामा जी है मेरे ..अब यही रहने आया हूँ....उसने कहा था ...
हमारी टीम पूरी है ..त्यागी ने कहा
मै बौल बहुत फास्ट फेंकता हूँ ...उसने भारद्वाज से कहा ...वो कप्तान की हैसियत जान गया था 
एक बौल  में दो रूपया देना पड़ता है .त्यागी ने दूसरा फेंका...त्यागी ने टीम मेंकभी चवन्नी का योगदान परोक्ष रूप से भी नहीं किया था
मै चार दिन जायूंगा...उसने भारद्वाज को टटोला
क्या नाम है तुम्हारा
"मनोज " .
उसमे "सिंह साहब फेमिली" वाला शहरी अभिजात्य एब्सेंट था यही उसका पोजिटिव पक्षथा ...पर सिंह फेमिली का पूर्व इतिहास उससे एक शंकालु दूरी रख रहा था ..भारद्वाजने  त्यागी की मझोली अकलमंदी को इग्नोर करते हुए  कप्तानी-धर्म के चरित्रकी भूमिका को बखूबी निभाते हुए डीसीज़न पेंडिंग रख दिया.
वोअगलेदिन सुबह फिर उसी चक्की पे मिला ..साइकिल  पे आटा रखते रखते मेरे पैर कानाखून उखड गया ..उसने मेरी साइकिल थाम ली ..थामे वापस  मेरे साथ आते आतेउसने बताया उसका एडमिशन हो गया है...घर पर उसने आटा उतारा ओर अपने हाथो मेंबोरा उठाये अन्दर तक रख आया ..गर्मियों ने उसके चेहरे के पसीने देखते हुएमैंने पानी ऑफर किया ...वो गटागट पी गया ..ओर मिलेगा..उसने कहा
 ठंडा पानीमामी पीने नहीं देती.. जैस हम  फ्रिज को खा जायेगे
.तसदीक हो गया...मनोज फेमली   मेंबर नहीं है
गले चार दिनों में कई चीज़े एक साथ हुई....मनोज की टीम में एंट्री हुई.... .कमाल का बौलर निकला वो..हवा की तरह तेज फेंकने वाला .उठती गेंदे..भारद्वाजइम्प्रेस हुआ ..बाकी लोग भी....गली में एक भूरे रंग का छोटा पिल्ला  पतानहीं कहां से आ गया ..
वैज्ञानिक लोग बोलते है इस बिरादरी में प्यार सूंघने की गज़ब सेन्स है ..मनोज में उसने जाने यही  बू सूंघ ली ....उसके पीछे हो लिया...बुजुर्ग सभ्यबिरादरी स्नेह भी संकोच ओर दूर से करती है .दया भी डिस्टेंस से ...मनोजथोडा पगलेट है...गंवई जो ठहरा ...अपने हिस्से की आधी रोटी तो देता ही..मामीरसोई से चुपके से दूध भी देना लगा..एक रोज बारिश हुई..स्टोर से पुरानेकट्टे निकलकर एक बेंच के नीचे घर जैसा अरेंजमेंट करके" जैकी " नाम भी देदिया
...चतुर्वेदी पुराण अपने उठान पे था ....सूबेदार साहब  अपने बेटेसे मिलने  शहर से बाहर थे ... ज्ञानीजन वो है जो कब  किसी चीज़ को रिजेक्ट करना है जानते है ...अपनाना नहीं! . अकडू फेमिली ने पिछले दो सालो में डिस्टेंस के  जो मानक बनाये थे एक देसीपिल्ला बजरिया मनोज  उसे ध्वस्त करने में अपना मूक योगदान दे रहा था .
जैकी के आगमन ओर   सूबेदार साहब के छुट्टी पेजाने की प्रोग्रामिंग पतानहीं किस दुष्ट ने कीथी..(मेहता अंकल ऐसे  हादसों को " विधि का विधान  "कहते है )मेच की तैयारी जोरो से चल रही थी ...पर कहते है ना जिंदगी में जो सुखइंजेक्टकरता है...वही दुःख भी....सूबेदार साहब की एंट्री मोहल्ले में हुई...ओरजैकी उनकी निगाह में पड़ा....नफरत के पास तर्क नहीं होते ...ओर कुछ लोगनफरत करने में बड़े कुशल होते है ..सूबेदार साहब ने इस फलसफे को बड़ीशिद्दत से निभाया जब उनके तरीके जैकी को बाहर करने में फ़ैल हुए..तोउन्होंने अकडू फैमली की घंटी बजा कर ऑफिशियल शिकायत दर्ज कर दी मनोज केखेल पर भी बैन लग गया..भारद्वाज का पल्स रेट बढ़ गया ओर हमारे भीतर गुस्सा.....मनोज घर से निकलता तो पर सामान लाने ...पार्क को देखता..जैकी उसके  पीछे दौड़ लगा देता ...मैंने एक दो बार उसे रोकने की कोशिश की ..
 नहीं यार मामी वापस भेज देगी..उसने सर झुकाकर कहा था ...मां अकेली है...पढाई के लिए पैसे नहीं है उसके पास ...उस रोज़ उसने फ्रिज का पानी भीनहीं पिया ..जैकी उसके आस पास पूँछ  हिलाकर दौड़ता रहा ...
सूबेदार साहब ने  तडके  मुंह अँधेरे दो दफे जैकी का अपरहण किया..कही छुडवाया पर  जाने कैसे जैकी सूंघता सूंघता शाम ढले वापस आ गया….उकडूं बैठ कर  जैकी अपनी कई सोशल विजिट त्याग कर  मनोज के दरवाजे पे जाकर उसे आवाज देता...नौकरों के दुत्कारने को इग्नोर करता..फिर अपने प्रयत्न में लग जाता
उदास होकर उसके दरवाजे के पास बैठ  जाता ..ज्यादा  भूख  लगती  तो हमारी  दी हुई रोटी  मुंहमें ले जाकर वही बैठ कर खाता ..मैच के दिन नज़दीक आ रहे थे ....मनोज को फिरचक्की के पास पकड़ा गया ...भारद्वाज ने उसे दोस्ती का वास्ता दिया ..मनोजने वादा किया  पहले मेच के दिन वो कोई बहाना बना कर निकल लेगा ....पर मेचके लिए व्हाईट शर्त पैंट आवश्यक  शर्त थी..तय हुआ अपने बैग में भारद्वाजउसके माप के कपडे रख देगा..मनोज ने मुझसे वादा लिया के मै जैकी को दूध देता रहूंगा .. ... 
शनिवारको हमारा पहला मेच था ..उस रोज सब कुछ अच्छा हुआ मनोज ने शानदार बोवलिंग कीथी...हम मेच जीतकर ख़ुशी ख़ुशी लौटे ..तय हुआ था मनोज हमारे पंद्रह मिनटबाद अलग रास्ते से मोहल्ले में घुसेगा ...पर पार्क के किनारे जैकी के जोरजोर से  कराहने की आवाज थी.. उसकी एक टांग टूटी पड़ी थी  पार्क में खेलते  छोटे बच्चो ने बताया .... सूबेदार साहब ने दो तीन बार लाते मरी तो जैकीउन्हें काटने दौड़ा ....सूबेदार साहब ने अपनी घूमने वाली लाठी उस पर चला दीथी ...सूबेदार साहब इंजेक्शन लगवाने गए थे .
मनोज उसके पास बैठा रहा ..जैकी की कराहे जारी थी ....हमने दूध में दवा कीगोली मिलाकर पिलाई..कुछ देर कराह कर जैकी थक कर सो गया .मनोज वही बैठा रहा...खामोश..उसकी मामिका नौकर उसे दो दफे बुलाने आया ....पर वो नहीं गया
थोड़ी देर में चला जायूँगा .उसने हमसे कहा....वो जैकी  की पीठ पे हाथ फेरता रहा ...
मै  खाना खाकर सो गया ..... एक घंटे बाद मां ने उठाया ..."तेरे उस लड़के ने सूबेदार साहब की कार का कांच तोड़ दिया है " ...गायब है
मै हडबडा कर उठा था ...अकडू फैमली के घर के आगे भीड़ थी...सूबेदार साहब  मौलिक गालियों पे उतरे हुएथे  .आधे घंटे शोर गुल के बाद बीच बचाव के बाद मनोज की मामी ने माफ़ी मांगीएयर उनके शीशे का हर्जाना देने का वादा भी किया ....मनोज का पता नहीं था...लौटते  वक़्त  मैंने देखा जैकी बेंच के नीचे अब भी सोया पड़ा था.
अगले रोज़ से मनोज मोहल्ले में नहीं दिखा.......दो रोज ..चार रोज..मै जैकीकी दूध पिलाता रहा ...जैकी मनोज के घर की ओर देखकर आवाजे लगाता ...पर मनोज नहीं दिखा.....दो हफ्ते के बाद जैकी लंगड़ा कर चलने लायक हुआ...हमने तीन मैच जीत लिए थे ...चौथा मेच हार कर कर हम लौटे तो जैकी भी नहींदिखा......कभी नहीं
दिखने के लिए .
.


वो क्या कहते थे तुम जिसे .....प्यार !

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"अ"का प्यार-
मेर बाप अब भी मुझे उंगुली पकड़ के चलाना चाहता है ..वो समझता है मुझमे अक्ल नहीं है ....ये मेरी जिंदगी है यार
"....वो पूरे कमरे में   चहलकदमी कर रहा है ..वो जब भी परेशां होता है ..बहुत चलता है ..यहां वहां .बेवजह .सन्डे की सुबह सुबह उसकी एंट्री हुई है ..घडी में आठ बजे है..वार्ड का रायूंड भी है ...
मै मेज पर पड़ी आखिरी सिगरेट को देखता हूँ ..फिर.अलमारी पर टंगे उस ब्लेक बोर्ड को जिस पर रात में मैंने बड़ा बड़ा चोक से लिखा था ..."क्विट स्मोकिंग "
  .तेरा अच्छा है साला ब्रेक अप हो गया इन लफ़डो  से छूट गया ..मै उसे याद दिलाना चाहता हूँ के मेरा ब्रेक अप नहीं हुआ मुझे लड़की ने छोड़ा है ..पर मै सिर्फ सिगरेट सुलगाता हूँ
तू साला मेरी बात भी सुन रहा हूँ या सिर्फ सिगरेट पी रहा है
 
मै उसकी ओर देखने लगा हूँ....

"तुम कवि शायरों का पता नहीं साला कब क्या सोचते रहते हो'.. !  तुम लोगो के  क्या कहते है उसे ....' ज़मीर" को   बेवक्त आने की आदत है ...... !.उसके हाथ में जावेद की तरकश " है ..ये डाइलोग उसने उसके पन्ने  पलटते  हुए बोला है...फिर उसे पलंग पे उछाल दिया है ..पूयर जावेद!
उसका मोबाइल बज उठा है...वो बिना कुछ कहे बात करता बाहर निकल गया है..ठीक वैसे ही जैसे आया था .
पता नहीं मेरा  ज़मीर अब कितने  टके का होगा   !!!!
 "ब ""का प्यार ...
मुझे हाल्फ फ्राई खाने की तलब लगी है
.झोपड़ा केन्टीन पे बाइक खड़ी करता हूं .इस केन्टीन में सिर्फ शोहदे आते है ओर सिगरेट पीने वाले सारे शोहदे होते है! हॉस्टल ओर हॉस्पिटल के बीचो बीच एक टीन  का शेड है...जिसे झोपड़ा केन्टीन कहते है .....ऑर्डर देने की जरुरत नहीं है..उसे मालूम है  मुझे क्या चाहिए ... मै  गुजराती अखबार उठाकर पढने की कोशिश करता हूं .ऐसा नहीं है के गुजराती मुश्किल है पर मैंने कभी सीरयसली सीखने की कोशिश नहीं की ."ब " की मोटर साइकल आकर रुकी है..उसने चाय का ऑर्डर देकर सिगरेट सुलगाई है ..अपने म्यूजिक लाइटर से ...
"रायूंड   हो गया " मै उससे पूछता हूं
हूम..म...उसने लम्बा कश लेकर सिगरेट मेरी ओर बढाई है ...

"नहीं  अभी पी है " मै कहता हूं...
"**** कैसी है" मै उसकी गर्लफ्रेंड के बारे में पूछता हूँ....जो आजकल बरोदा में है .उससे एक साल सीनियर
'ठीक है'
तू गया नहीं ..अमूमन सन्डे वो ट्रेन से बरोदा निकल जाता था ...
साला छुट्टी मिले तो फिर  इमरजेंसी ... एक्जाम टर्म  ..घर जाना चाहता  हूँ.. एक ब्रेक ..थक  गया हूँ
"क्या हुआ "..मै जान गया हूँ वो डिस्टर्ब है ..ये लाइने उसकी नहीं है . 
गुलाब कविताएं रोमांस ..उसी मुझमे वही चाहिए ..वो कम्फर्ट ज़ोन में है यार ..पर  मेरा स्ट्रगलिंग पीरियड है... ..वो अब भी मुझमे  चार साल पुराना  मैढूंढती  है ....सब कुछ उस के सामने तो है . ऐसे में रोमांस ....एक लम्बाकश....
.केन्टीन वाला हाल्फ फ्राई रख के गया है .समझदार है सिर्फ चुपचाप सुनता है ..मुझे भूख बहुत लगी है ..मै कहना चाहता हूं  ये पाव बासी है पर  सामने वाले की सूरत देखकर पता नहीं क्यों नहीं कहता! ..वो क्यों नहीं समझती....चार  साल का रिश्ता है हमारा पर........उसकीआवाज धीमी हुई है.....कंधे झुक से  गये है .... जानते हो अन्दर से मै डराहुआ हूँ...पिछले एक महीने से  उसकी बातो में एक ओर बन्दे की तारीफ होती है ...उसकी आवाज की टोन   बदल गयी है या मेरा भ्रम है के  जैसे भर्रा  गयीहो.....मै जानबूझ कर उसके सामने नहीं देखता ...."क्विट स्मोकिंग" को एक दिनओर आगे बढाकर मै सिगरेट  उसके म्यूजिक लाइटर से जलाता हूँ...खाते खाते .
.मेरा" मेल एगो " इस डर को  उसके आगे............ वो रुक गया है .सिगरेट जल रही है परवो कश नहीं लेता ......
पर
  प्यार का मतलब समझना भी तो होता है न यार "
 मै  सिगरेट का  बड़ा कश  लेता हूँ.....फिर दूसरा .......लाइटर को  उलटपुलट के देखता हूँ ...ये लाइटर उसकी गर्लेफ्रेंड सिंगापूर से लायी थी ....स्लीक !
 तू  सुन रहा है  ना या सिर्फसिगरेट पी रहा है .मै उसकी ओर देखता हूं.... पर उसने कवि- शायर के मुताल्लिक कुछनहीं कहा है !
ब्रेक में "क" की गर्लफ्रेंड
 ...हॉस्पिटल केन्टीन में मै चाय पीते वक़्त अंग्रेजी का अखबार पढने की सोचता हूं ..सूरत में अंग्रेजी अखबार लेट आता है ..चाय के पहला  घूँट भरता हूं....तुम सिगरेट क्यों पीते हो यार ? ‘-“वाली है ....मेरे सामने बैठ गयी है ... मेरी शर्ट के जेब से झांकते पैकेट को देख कुड जाती है.. कहना चाहता हूं  .तुम्हारे बॉय फ्रेंड के वास्ते है उसे वार्ड में देने जाना  है .महँगी  सिगरेट है .साले ने मोबाइल पर फोन करके मंगाई है ..इनकमिंग काल ४ रुपये की है ...सिगरेट २२ की....पर कहता नहीं... जानते हुए भी की ये पैसे कभी वापस नहीं मिलेगे ..उन हालातो में जब आपकी जेब में केवल चालीस रुपये हो.....यूँ भी के ....लोग कहेगे कितने कमीने आदमी हो दोस्ती बड़ी के २६ रुपये !
केन्टीन बॉय उसके लिए चाय रखकर गया है .उसकी टी शर्ट पे "प्ले बॉय 'लिखा है ..! केन्टीन में "वो "आयी है अपने डिपार्टमेंट के साथ ...उससे  आंखे  मिलती है ...उन आंखो में अजीब सा कुछ है ..मै अफ़सोस मनाता हूं के मैंने शेव नहीं बनायीं ..वो हमारे बाए तरफ वाली सीट पर  बैठ गयी है..उन आँखों में मै फिर देखता हूँ ...वे अब भी मुझे देख रही है 
उधर देखने का कोई फायदा नहीं ..वो फिक्स है "क" वाली ने जैसे मेरी मूवमेंट  को पकड़ लिया है
(फिक्स ! पर उसकी आँखे तो कुछ ओर बोलती है .)
 "हमारी शादी की डेट भी नक्की  हो गयी है ."क वाली  बोले जा रही है .नक्की गुजराती वर्ड है ...मै उन आँखों से फिर टकराता हूं...बड़ी बड़ी  आँखे ... .(ऐ खुदा  फिक्स वालो की आँखे इतनी स्टेयरनिंग तो नहीं होती.)
वैसे तुम क्या सजेस्ट करते हो..मैरून कलर का लहंगा ठीक रहेगा ...क वाली शादी में इन्वोल्व है....पर '.वे आँखे ' सीट से उठ गयी है ....उसने सीट से उठते उठते मुझे फिर देखा है ....मै भी उठ गया हूं .बाय कहकर ...सोच रहा हूं" क" को सिगरेट का पैकेट देते वक़्त कहूँगा "अब भी वक़्त है सोच ले '...पर बिना कहे ही सिगरेट का पैकेट दे आया हूं ..जेब में अब केवल १८ रुपये है .
"स"का प्यार जैसा कुछ  -
पूरा कोलेज मानता था  के वो पिछले दो सालो से कोलेज की सबसे सेक्सी लड़की  के साथ है ! मै  भी ! पर मेरी उसकी दोस्ती उससे कही पहले  थी . वो बहुत खूबसूरत तो नहीं था पर उसे  भीड़ में  भी इग्नोर नहीं किया जा  सकता था . ...झूठ बोलने का भी एक सलीका होता है ...कोंफिड़ेंस..."स " उसमे माहिर है ..पर वो ये आर्ट सिर्फ लडकियों ओर टीचरों के आगे दिखता है दोस्तों के आगे नहीं...... पीकर तो बिलकुल नहीं! ...वो रूम में शिवासलेकर आया है ..सूरत में ..शिवास मिलना एक लक्ज़री है ..ट्रेन में सूटकेस में कई कपड़ो के  नीचे दबा कर लाया है ..कहता है पापा ने गिफ्ट की है ..मुझे अपने याद आते है .सिगरेट का पता चलेगा तो बन्दूक निकाल लेगे ...

उसका तीसरा है ..ओर मेरा दूसरा ..मै  अपने ग्लास में आइस डालता हूं....मेरी औकात  दो तक की है ओर मुझे मालूम है ..कमरे में छोटा  फ्रिज भी एक लोकालाईट ने रखा है इसी वास्ते ...
"रिलेशन शिप में कभी कभी आप उबने लगते हो '..अचानक उसकी   बातो  का दायरा  बदलने  लगा है ..अपना स्पेस ढूँढने की छटपटाहट सी होती है ..तुझे कभी ऐसा नहीं लगा ..वो मुझसे पूछता है मै जवाब नहीं देता सिर्फ मुस्कराता हूँ..
"साली दुनिया सोचती है मै कोलेज की सबसे सेक्सी लड़की के साथ घूम रहा हूँ...पर कोई मुझसे पूछे ..'
मै उसकी ओर देखता हूँ ...
गर कोई मुझसे पूछे उसके साथ जिंदगी गुजार लेगा ..तो ईमानदारी से कहूँ डर लगता है यार
मुझे सिगरेट जलाने पड़ेगी ....ऐसे  फिलोस्फिकल माहोल में वो बड़ा सहारा देती है !
मुझसे उसपे यकीन नहीं है यार !
 "उसने तुझसे शादी के लिए कहा .क्या" मै पूछता हूं .
नहीं 
गर पूछेगी तो ....उसका डर है !
गर न पूछे तो
?
वो भी हर्ट  करेगा ..
..ब्लेक बोर्ड हवा से हिला है ..सोचता हूं उसके जाने के बाद  क्विट स्मोकिंग मिटा दूंगा ..पिछले तीन हफ्ते में चौथी बार मिटाया है .केसेट ख़त्म हो गयी है ...मै उठकर पलटता हूं उसका पैग ख़त्म हो गया है .वो आगे कुछ नहीं बताना चाहता .न मै उससे पूछना .

लिखा था जिस किताब में इश्क तो हराम है ...

सुबह मोबाइल के अलार्म ने आँख खोली है ..फोन उठाकर बंद करता हूं..उनीदी आँखों से  एक मेसेज दिखता है ... ....मेरी एक्स  का मेसेज है ..."
  मिलना चाहती हूं..मिलोगे"
मै फिर से तकिये में मुंह छिपाकर सो जाता हूं .


 ये तसल्ली है की इसे वो नहीं पढेगी.....जो कभी पढ़कर  "किसी" से कहा करती थी "तुम्हारे दोस्त की कहानियो में इतनी सिगरेटे क्यों आती है!

उस जानिब से जब उतरोगे तुम !!

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वो कौन सा लम्हा है  जो तब्दील   करता  है  आदमी को एक दूसरे आदमी में  !वो कौन सी शै है जो धो देती है पिछले दागो को ...जाने क्या ऊँडेलती  है भीतर के बाहर सब कुछ   छना-छना सा निकलता है ...  .त"आरुफ़  कराती है नए मानो  से जो कहते  है पिछला जो जिया ....सब" रफ -वर्क" था .
.क्या लोहे के बने थे सुकरात - या बुद्द ...या  बायस होकर कोई जुदा  रूह धकेली थी खुदा ने कबीर में ...! दुःख  क्या  अलार्म क्लोक है जिसकी साउंड म्यूट कर छोड़ी   है हमने ? .खुदा कोई अबूझ  पहेली है या ऐसा फार्मूला जिसका तजुर्मा मुमकिन नहीं ......


सुना है
कुछ बरस पहले
यूँ करार हुआ
दोनों के दरमियाँ
बिना जिस्म के
 "एनर्जी " घूमेगी
उस जानिब "गेलेक्सी" में ,
इस जानिब "अर्थ" पे
बिना रूह के
जिस्म अपना" साइकल "
पूरा करेगे !
(गाइड के इस सीन के बरक्स गुजरते हुए .....)



("काइनात में कई तरह की जिंदगी के अमकानात है ! एक अमकान ये भी है कि जहाँ जिंदगी बिना जिस्म के सिर्फ एनर्जी के रोशन नुकतो कि तरह घूमती होगी" - किताब " पंद्रह पांच पचहतर "का पेज नंबर चालीस का एक बयान )

ओर  हां.. शीर्षक.... गुलज़ार  साहब की नज़्म के किसी टुकड़े को औंधा करने से वही करीब में पड़ा मिला 

वजहे भी है ..मौसम भी है ..ख्याल भी है ....बहरकैफ जिंदगी ज़ारी है !!

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मौसम ठंडा है ...अपने होने की इत्तिला दे रहा है .. कमरे गालिबन ठन्डे   है ...लाइब्रेरी में पास की कुर्सी पर बैठे  किसी  इंटेलेकचुवल कम्पेनियन  की तरह खामोश .......घडी की टिक टिक  इन  दिनों   रात को यूँ   सुनाई देती है की लगता है गर्मियों में अपनी आवाज काबू  में रख के चलती है ..आलस की जंजीरे बिस्तर  के साथ अटेच है मुई ....एक बार उसके आगोश से निकल  जाओ  तो रजाई मुआफ नहीं करती ..तुम्हारी  तरह  का मिजाज़ पाया  है ! हर बार मिजाजपुर्सी मांगती है ....पर रजाई से निकलना पड़ेगा ..बाहर निकल कर तैयार होता हूँ   ..... हवा  गैर-हमदर्द तरीके से  आती  है .... जैकेट की जेब में  अब भी वही सिगरेट है  जो तुम्हारी रकीब हुआ करती थी . सर्दियों में सड़के जल्दी सो जाती है ...बाज खम्बे खड़े कितने वीरान तन्हा दिखाई पड़ते है ... इन्हें देर रात कभी दहशत  नहीं होती .....पर  पीले रंग की रौशनी इस कदर अच्छी लगती है  ...की कमरे में  भी   सर्दियों में लैम्प मुसलसल जला कर छोड़ता हूँ   .....
रेलवे स्टेशन के बाहर उतरता हूँ ...तो अहसास होता है  आज  मौसम बड़ा पुरकैफ है ! सिगरेट  के पैकेट को  जैकेट की जेब में हाथ डाल कर  छूता हूँ  .. फिर कुछ मोहलत के लिए  मुल्तवी  कर देता हूँ.....प्लेटफोर्म अपने आप से बड़ा  मुत्तासिर सा है ...ठण्ड की पाबंदी से बेअसर ...वहां मौजूद  हर शख्स के  मौसम के मुताल्लिक ख्यालात  एक से है.... ट्रेन लेट है .....ट्रेनों के ड्राइवर  जाने इन ठंडी हमशक्ल  पटरियों पे गुजरते क्या सोचते होगे .... कई मिनट अखबार में  खर्च करता हूँ....
सीधे  हाथ पे  बेंच पर  वो लड़की  इतनी गैर -तवज्जो देती है के शक होता है जैसे ज़ेहन पढने के हुनर से वाकिफ है ....उसकी बड़ी बड़ी आँखे बड़ी गैर तकल्लुफ है ....तुम्हारी    बात याद आती है "उस उम्र की आँखे  अक्सर सब टटोलना चाहती है" .....उसके दाई  ओर  बैठी दूसरी  दो  औरत कुछ रुखी सी है ....खुश्क ..कुछ औरते बड़ी रुखी सी दिखाई पड़ती है ...अपने आप से बेपरवाह ....... शायद उसे दास्ताने कहने का बड़ा शौक है  चुप होती है तो मालूम होता है अपने  खिलाफ जाकर वो चुप होती है.!दाई ओर एक कोने में खड़े एक साहब है .......इंतज़ार में इंतज़ार लम्बे हो जाते है ..अखबार उतना दिलचस्प मालूम नहीं होता ......
तुम फिर" बेवक्त " ओर "बेवजह "ज़ेहन में दाखिल होती हो ....कोलेज के कई शख्स (उन्हें दोस्त नहीं कहूँगा  ) याद आते है जो मुझे देखकर तुम्हे याद करते थे मुमकिन है उनकी दिलचस्पी  मुझमे  तुम्हारी वजह से रही हो !
 जानती हो कई बार मै  तुम्हारे लिए " आसान" हुआ हूँ ... ये जानते हुए के  तुम्हारी फितरत में पढना नहीं है खास तौर से वे चीज़े जो तुम्हे मुश्किल लगती है ..मेरी तुम्हारी दिलचस्पी भी मुख्तलिफ चीजों में है....फिर वो क्या चीज़ है जो तुम्हे मुझसे जोड़े रखती है .....
प्यार हिस्सों से नहीं किया जाता  !
मतलब ??
"  कई टुकड़े .जोड़  करके आदमी की सूरत बनती है ...उसमे वे  टुकड़े भी है ..जिनमे मै मौजूद नहीं रहती.".. पढना लिखना तुम्हारा  सिर्फ एक  हिस्सा है .......ओर मै तुमसे प्यार करती हूँ !! ........मै तुमसे तब भी प्यार करती हूँ जब तुम कुछ लिख -पढ़ नहीं रहे होते .......समझे !!
(तुम  उससे कही ज्यादा समझदार हो  जितना मै तुम्हे  सोचता हूँ)
सोचता हूँ कितने ज़ज्बात किस पैमाने पे  किस दिल में डाले जाये ये कौन तय करता होगा  ...खुदा या उसका कोई कारिन्दा ? ओर ख्वाहिशो पर इख्तियार आदमी की जात पे छोड़ा है ( मुआवाजे के तौर पर ) ? पर न मालूम कैसी  हसीन कमजोरी है जो  अपनी जेहनी  पुख्तगी के बावजूद  हर शख्स इस पे निसार है   ..अपने डरो की वजह से ही आदमी  अपने ख्यालात में ओर इरादों में जुदा  होता है ओर अमल में जुदा ! जेब में हाथ डालकर लाइटर टटोलता हूँ अब सिगरेट जलानी पड़ेगी ठण्ड बढ़ गयी है . शुक्र है  ऐसे वाहियात ख्यालो का रकीब  निकोटिन  है !!

....देवदास अब यहाँ नहीं रहते !

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 वो  दिसंबर के आखिरी  हफ्तों वाली  सर्द रात थी ..आधी रात मोबाइल ने जगाया था
"दुनिया भर की  लडकिया एक सी होती है प्यार दिल से करती है ओर फैसले दिमाग से ".......उस ओर नशे में रुंधी  आवाज .....
"नीलाभ "??
   ......"तुम्हारी" डेस्टिनी" वाली  सुई अब  मुझपे  आकर रुकी है  " उदास हंसी !
"तू  कहाँ पे है"?  अकेला है या कोई साथ में है ? मै उनीदी आँखों से घडी देखी थी .. फोन के बैक ग्रायूंड में शोर  था  .वो बाहर  था ...यू एस  में  इतने  कडाके  की  ठण्ड  में  .
"मै उससे प्यार करता था यार ...."
इस सवाल का जवाब बरसो से जाने किस तहखाने में दफ़न है ! ! !
"मुझे  लगा उपर वाला मुझे   बाईपास  कर  जायेगा  .....पर उसके पास भी मार्कर है शायद !"
कोई  बात  नहीं  ,वक़्त  ही  है  साला  गुजर  जाएगा  ..नहीं  तो  धक्का  दे  देंगे  इसे .....मैंने  उसे   झूठा  दिलासा  दिया
"साले  खुदा  के  ओफ्फिस  में  घूस  नहीं  चलती तुझे तो मालूम ही है ."
बरसो बाद दुनिया  के  अपने  अपने  हिस्से  में  एक  दूसरे  को  बिना  बताये  हम  फोन  के  दूसरी  तरफ   रोये थे .!
बाज  वक्तो  में  कुछ  ग़म  कित्ते  बड़े  ग़म  मालूम  होते  है .....दिल   के  ग़म  !

 कोई डेड महीना गुजरा   मैंने  ऐहेतियातन  ख़ामोशी  ओढ़  ली ...वो वक़्त  ऐसा ही होता है" इम्तेहानी किस्म" का ....बड़ा तकलीफ देह .....मीलो  दूर तक फैली  ठंडी  सन्नाटो भरी सडको सा ..जो कहाँ ख़त्म होती है दिखता नहीं !
 वो  फिर  फ़ोन  पर  था  ......इस दफे संभला हुआ , थोडा संजीदा
."बैचैन  रहा यहाँ वहां भटका .....हॉस्पिटल  नहीं  गया  .....कुछ दिनों बाद   हॉस्पिटल  गया  तो  एक  16 साल की नीग्रो  लड़की  को  देखा   ....प्रेगनेंट....वो  भी  ट्विन्स  .....हॉस्पिटल स्टाफ ने .बहुत  समझाया  एबोरशन   के लिए ...नहीं  मानी  ...बोली  लड़  लूंगी  ...कर लूंगी .जी लूंगी ........16 साल  की  लड़की  यार  ! ओर  हम  साले   पढ़े  लिखे  आदमी !!....दुनिया  ख़त्म  करे  बैठे  है ! मै  किससे  खौफ जदा हूँ  यार  ...किससे भाग रहा हूँ .....खुद से ."

बीच में वही गैप  जो अक्सर सिगरेट के कश   लेने के दौरान होता है ...

कई  रोज से  अस्पताल में एक बूढ़ा बीमार हालत में था ,आया था तो  तीन दिन तक रोता रहा ..अपने बेटो को याद करके .वे उसे घर में नहीं रखना चाहते .........दो दिन पहले  उसके बेटो को बुलाया गया .कायूँसिलिंग की ...जब वे तैयार हो गए तो अचानक  उस रात  बूढ़े ने मना कर दिया मुझसे बोला  "डॉ वे  अपने भीतर से मेरे लौटने का वेलकम नहीं करते  .....प्रेशर में कर रहे है ,मै ऐसा रिश्ता नहीं चाहता .....

फिर वही गैप.....

" जानते हो उस रात घर लौटते वक़्त मुझे लगा मै भी तो ऐसा ही कर रहा हूँ ......".दूसरा शख्स उस रिश्ते को जारी नहीं रखना चाहता ..ओर मै उसे इस रिश्ते में  रोकना चाहता हूँ क्यों ? क्यूंकि मै उससे प्यार करता हूँ...पर मै ये क्यों नहीं एक्सेप्ट करना चाहता की अब वो मुझसे प्यार नहीं करता ...ये तो एकतरफा प्यार जैसी जिद हुई ना ."

इस बार दो कश वाला गैप ...
"तय कर लिया उसकी फीलिंग की रेस्पेक्ट करूँगा ओर "वी वाल्क लाइक एडल्ट "  !    (एक सांस ).....................मुश्किल था पर सच है ..."

.ऐसा लगा जैसे उसकी  सिगरेट भी ख़त्म हो गयी है ...या उसने खाली जलने  छोड़  दी है ...

"सुन ,डब्लू  .एच .ओ  में  अपलाइ   किया  है  ,,,कुछ  पोसिटिव  साइन  है  निकल  जायूँगा"
"ओर  अमेरिका  .....तेरा तो सपना था ....अब पूरा होने वाला है फिर ....."
"कुछ है जो सपनो से अलग है ....क्या है  ?एक्सप्लेन नहीं कर सकता ..टेम्परेरी है या परमानेंट ... नहीं जानता ..पर कुछ है "........
.वो संजीदा था  उसकी  संजीदगी  के बेकग्राउंड में गम की मिलावट  नहीं था ...एक अजीब सी मजबूती थी ....
"तू ठीक है ना ?
हाँ ....

 जिंदगी की तलबो में  फेरबदल लाजिमी  है ..
सके बाद  मेरे  मोबाइल  में  अजीब अजीब  से   नबर सेव होते फिर बदल जाते ! .अलग अलग देशो से अलग अलग वक्तो में   कई  देश   अफ्रीका नाम्बिया .इथोपिया .. ..इराक ओर न जाने कहाँ कहाँ ...साल दर साल गुजरे....
उसकी बाते   बदलनी  लगी "  जो  दुःख  "मेरे" के दायरे से बाहर हो वो   हमारे लिए   इंडिकेटर   है ....ओर हम सोचते है कोई दूसरा रुक जायेगा"
  पने पिता की खबर सुनकर  सिर्फ तीन दिन के लिए आया था वो...माँ उसकी पहले से नहीं थी....उसके शहर तक जाने में वक़्त लगता है .हम चार घंटे के लिए साथ थे उस दिन. पर बात सिर्फ कुछ मिनटों के लिए हो पायी थी ...उसके घर में कमरे की बालकोनी में .....   .मैंने सिगरेट छोड़ दी है पर मै उससे कहता नहीं . वो अपने हाथ की सिगरेट बात करते करते  आगे बढाता है तो ...पी लेता हूँ
" ये देश बीमार है ... मर रहा है....  डाइगनोस  सब  कर लेते है ...कारणों को भी  पहचान  लेते है पर  कमाल है इसे रोकने के लिए कोई कुछ करता दिखाई नहीं देता  .....उसके पास कहने को बहुत कुछ है ,वो बहुत से चीजों को दुरस्त करना चाहता है !

तरकीबन सात महीने  बाद
 उसके भाई फोन पर है ..मुझे लगा उसकी शादी की बाबत  या भारत  लौट कर आने के बारे में मुझसे कहेगे.......पर उनकी  नाराजगी दूसरी है ........ तुम्हारा  दोस्त पगला गया है ...करोडो की जमीन ट्रस्ट को दे रहा है ....स्कूल चलायेगे ... ज़माना अब वैसा नहीं रहा है....इंडिया के हालात उसे पता नहीं है "
वे ओर भी  बहुत कुछ कहते है ......पर मुझे सुनाई  नहीं देता   !
पिता से  वसीयत में मिली जायदाद .को वो......
 .दुनिया का एक्सपोज़र अपने आप में  एक अलहदा किस्म की किताब है !  तमाम  वक़्त  गुजर जाते है ,ऐसे वक़्त भी जो लगता है गुजरेगे नहीं....

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वोडे स्कोलर  थी  घर से कोलेज .......कोलेज  से घर ....उस उम्र की  ज्यादातर लडकियों की तरह .जो अपनी  माँ को दिन भर की   सारी बात बताती.है ...उन  सहेलियो  के साथ उसका ज्यादा वक़्त बिताती   जो स्कूल टाइम से उसके साथ थी ...टोपर खानदान की टोपर बिटिया ... कुल जोड़ निकाले तो  एक आदर्श  लड़की  ......ओर  वो हॉस्टल वाला था ...उसका अपना बिगडैल  गैंग ...पढाई में साधारण ....दुनिया की ज्यादातर  बुरी आदते उसमे थी ... .वो हमेशा अगली बैंच पर बैठती ओर वो पिछली दो बैंचो के दरमियाँ रहता....... वो हमेशा  क्लास टॉप करती  वो बमुश्किल पास होता वो अपने में सिमटी ओर वो  दुनिया भर के लिए खुला ...... अक्सर हॉस्पिटल  के बाहर वाले कोने में सिगरेट पीते कभी कभी दिख जाता या अपनी "गर्ल फ्रेंड" के साथ किसी पिक्चर हौल में .....उसकी  गर्लफ्रेंड जूनियर  बैच में थी  ...जो ज्यादा वक़्त जींस में रहती ...कोलेज के  सारे लड़के जिस पर  लट्टू रहते ...उसकी क्लास के भी ...कुल मिलाकर उन दोनों ने  आपस में  पूरे तीन सालो में शायद छह दफे बात की हो ..गोया वे न बेहद अच्छे दोस्त थे न दुश्मन .ओर हाँ उसे कभी प्यार नहीं हुआ था ओर वो आठवी क्लास में ही   अपने टीचर के प्यार की  पहली कम्पलसरी शर्त पूरी कर चूका  था .
नकी पहली मुलाकात ........जिसे मुलाकात कहा जा सकता है कोलेज के फेस्टिवल दिनों में हुई थी ..उस दिन वो जब घर से कोलेज के लिए निकली थी तो रेडियो पर "ओ हँसनी" बज रहा था  ......उसकी "गर्लफ्रेंड "घर गयी हुई थी ....  ...वो शायद .कही से भागा आया था हांफ रहा था .....तभी उसने उससे पूछा था
तुम मेरी पार्टनर बनोगी ?
गेम था  मेल पार्टनर की शेव बनाकर दौड़कर दूसरे किनारे जाकर एक मेडिकल  पज़ल सोल्व करनी है जो पहले करेगा वो जीत जाएगा .
"मैंने कभी शेव नहीं बनायी"
उसमे करना क्या है ...लेदर बना कर शेव करना है फटाफट .....कम ऑन !!
वो उसके साथ आयी है .
वो शेव करते वक़्त उसका चेहरा छील देती है ...पर पज़ल सोल्व पांच सेकण्ड में कर देती है
वे दोनों जीत गये है....उसे .उसके चेहरे पर खून देखकर अफ़सोस है  वो रुमाल से  पोछ रहा है.पर जीत से खुश है.
 विनिंग गिफ्ट   है ...  शहर के  फेमस चाइनाइज़ रेसटरोनेंट में लंच के  दो कूपन अगले एक हफ्ते तक वेलिड है .
"सन्डे चलोगी .
"मम्मी से पूछना पड़ेगा सन्डे के लिए"
उसके दोस्त उसे आवाज दे रहे है,
"ये कूपन रखो ..अगर मम्मी हाँ बोले तो सन्डे मेरे साथ चलना नहीं तो अपनी किसी फेवरेट सहेली के साथ हो आना ...शनिवार को मेरा मैच है इंजीयरिंग कोलेज से ..
उसने सोच लिया था वो उसके साथ नहीं जायेगी ...कल ही उसे कूपन थमा देंगी .
अगले तीन दिन तक वो क्लास में नहीं आता .....अजीब अहमक है  उसे  गुस्सा आता है ....उसकी गर्लफ्रेंड दिखती है ..उससे पूछू क्या ? नहीं खामखाँ पता नहीं क्या सोचेगी ? पर ये है कहाँ ?
शनिवार सुबह वो अपना काइनेटिक कोलेज में पार्क कर रही है ....कोई  मोटरसाइकिल आकर रूकती है
क्या कहा मम्मी ने ? वही है
वो सर हिलाती है
गुड ....कैंटीन के सामने ठीक एक बजे .......फुर्र से मोटरसाइकिल से गायब .
अजीब आदमी है ! पता नहीं वो इसके साथ क्यों जा रही है .. अपनी गर्लफ्रेंड को क्यों नहीं ले जाता ! वो अपनी "बेस्ट फ्रेंड "की शरण लेती है . डिफेंसिव मत रहना ...."अटैक इस बेस्ट डिफेन्स " वो तुम्हारी आँखों की तारीफ़ करेगा ,तुम्हारे कपड़ो की ....तुम्हारी बात बात में तारीफ़ करेगा भाव मत देना .
सन्डे दोपहर एक बजे कोलेज कैंटीन के सामने
तुम्हारी गर्ल फ्रेंड शहर में नहीं है क्या
गर्लफ्रेंड ?
वो तुम्हारी गर्लफ्रेंड नहीं है ?
साथ घूमने से कोई गर्लफ्रेंड हो जाता है
वो उसे घूरती है ...आधा दिन तुम लोग साथ गुजारते हो .
हम्म .वो अपनी बाईक में झुककर नीचे कुछ चेक करता है
"साथ रहने से प्यार होने की प्रोबेबलिटी ज्यादा होती   है   ".....वो फिर कहती है
वो मुस्कराता है ."लडकियों में "
हाँ लडकियों में ...
जानती हो हम जिसके साथ वक़्त गुजारते है दिल के भीतरे हिस्से से उसके बारे में सब जानते है ."..सब !!
वैसे हम दोनों के बीच बहुत अच्छी अंडर स्टेंडिंग है वो किसी ओर को पसंद करती है ओर हम दोनों के बीच प्यार नहीं होने वाला
वो अब भी बाईक में नीचे झुक कर कुछ कर रहा है
तुम्हारे बारे में  ज्यादातर लोगो की राय अच्छी नहीं है
उसे लगा वो बाईक छोड़कर गुस्से में खड़ा होकर कुछ कहेगा .पर वो नीचे झुका हुआ कहता है
"ओपिनियन पोल" हाईवे के ट्रक ड्राइवर की तरह होते है ..उन पर एतबार नहीं करना चाहिए ...ओर  ये अच्छी  बुरी  चीज़े  बड़ी कमाल की होती है ... शायद पंद्रह साल बाद अच्छा" बुरा" हो जाए ओर बुरा "अच्छा "
फिर नजरे उठकर उसकी आँखों में देखता है ....कभी ड्राइव किया है हाई वे पर
फिर साथ क्यों घूमते हो
हम दोनों एक दूसरे की कम्पनी रेलिश करते है ....दैट्स ईट .
उसने रास्ते में कही ब्रेक नहीं मारे ...बाइक भी तेज नहीं चलायी...वो पिछला हिस्सा पकड़ कर  सेफ डिस्टेंस पर  बैठी रही .पर उसके ड्यू की खुशबु अच्छी है
उसकी बाईक   चाइनीज़ रेस्ट्रोरेन्ट  के बाहर आकर रुकी है
....तुम नॉन वेज खाती हो ?
आई  लव नॉन वेज .मम्मी के हाथ का खायोगे तो उंगलिया चाटते रह जाओगे
वो उसकी ओर देखता है " मैंने अभी अभी रेलिश करना  सीखा है ...एक सीनियर हाँ ओर ना के बीच था तो अपना दुःख बांटने के लिए यहाँ ले आता था.....मै सिर्फ सूप पीता ओर उसकी बात सुनता धीरे धीरे जब  टेस्ट डेवलप हुआ तो उसकी गर्लफ्रेंड ने हाँ बोल दी ओर .....आई ओ दिस टेस्ट टू देयर लव ...
"रेलिश "!! तुम चीजों को रेलिश बहुत करते हो
वो नोट  करती है ..... उसकी एक दिन की बड़ी दाढ़ी  है ग्रीन ग्रीन सी...... शेव बनाकर भी नहीं आया बेवकूफ ! वो होती तो ........
.रेस्तरा में "ओ हंसनी "का इंस्ट्रूमेंटल बज रहा है
मुझे ये गाना बहुत पसंद है वो कहती है
मुझे भी
वो बतलाना  चाहता है   वो अपनी  सो काल्ड  गर्लफ्रेंड के साथ दो बार आया है पर जाने क्यों रुक गया है .इस लड़की के अन्दर  एक अजीब सा इनोसेंस उसे पसंद है ...घर लौटते वक़्त वो याद करती है उसने उसकी तारीफ़ बिलकुल नहीं की वो अपने मैच , क्रिकेट ओर इन्जियार्निंग ओर मेडिकल कोलेज के फर्क की बात करता रहा.....ओर जगजीत सिंह के बारे में ......उसे गजले समझ नहीं आती .

ओ हंसनी मेरी हंसनी
उसके बाद ....उसके काइनेटिक के पास से कोई  तेजी से गुजरता  ओर जोर से   "हैलो"  कहकर डरा देता,
एक सन्डे वो सुबह सुबह  किसी गुरूद्वारे से निकालता  टकरा गया .....यहाँ  ?
 गुरूद्वारे का प्रसाद बहुत अच्छा होता है ...उसने आँख मारी थी .....एक रोज शोर मचाने पर  उसे   क्लास से बाहर निकला गया ...बाहर कैंटीन के सामने वाली दीवार पर उसके पास गुजरते हुए उसने उसे कहा था "क्यों करते हो ऐसा "? बड़े अजीब ढंग से देखता रहा था वो बिना बोले उसे ...देर तक उसकी उन  आंखो ने पीछा नहीं छोड़ा था लड़की का .......दिलवाले  दुलहिनिया ले जायेगे  के टिकट लायी थी  उसकी बेस्ट फ्रेंड ...कितना खुश थी वे तीन चार सहेलिय ....पर पिक्चर हौल में उसे उसकी गर्लफ्रेंड के साथ देखकर जाने क्यों फिल्म में मन नहीं लगा था उसका .
तय कर लिया था उसने आगे से कभी बात नहीं करेगी उससे .
फिर उस रोज  पीठ पर कोई बैग  लादे सड़क पर बाईक  घसीटता मिला था ...क्या हुआ ?
कुछ गड़बड़ है मुझे आगे तक ड्रॉप कर डौगी... मकेनिक तक
वही ड्यू की खुशबु .
उसका बैग उसके पास रह गया था .किसी का बैग खोलना गलत बात है पर  रात को खोल ही लिया उसने .......
.दो  नयी  कैसट ..किशोर कुमार ओर जगजीत  , एक रजिस्टर ...विवियन रिचर्ड्स की बायोग्राफी ओर एक सिगरेट लाइटर.....उस रात वो देर तक  अपने बिस्तर पर वाल्क्मैन लगाकर  सुनती रही......सोते वक़्त आखिरी गाना  उसने दो बार सुना ......." ओ हंसनी .मेरी हंसनी "

AIIMS NEW DELHI
...दो दिन से बुखार था पर उसने पेरासिटामोल खा खा कर उसे चढ़ने नहीं दिया है ...मलेरिया की गोली भी खा ली है ..उसे यहाँ आना था ....पहली बार घर से इतनी  दूर निकली  है .बेस्ट फ्रेंड साथ है शायद इसलिए मम्मी ने भेज दिया है
 देश भर के मेडिकल कोलेज  कल्चरल फेस्टिवल के लिए जुटते है ....उसकी गर्लफ्रेंड भी है पर उसकी  कोई रिलेटिव  है इसलिए रात को ही आती है...उस रोज सब कुतुबमीनार देखने निकले थे..... उसकी तबियत खराब हुई है ..वो उसे    छोड़ ने  आया है ऑटो से उतारते वक़्त वो चक्कर सा महसूस करती है इसलिए उसकी बांह पकड़ लेती है ....कोलेज में  आने के बाद भी वो उसे  गर्ल्स हॉस्टल नहीं ले जाता ग्रायूँड के ठीक सामने पड़ी पत्थर  की बेंचो पर दोनों बैठते है .बिना बात किये देर तलक ..वो  अपनी जेब में  हाथ डालकर अपनी हथेली फैलाता है .
"खाओगी "इन्हें हमारे यहाँ बूंदी कहते है
बूंदी ...वो पीले रंग के उन दानो को देखती है
जानती हो मै बचपन में एक वक़्त में हलवाई बनना चाहता था .....फिर पाइलट  ओर कभी टीचर .......बचपन के  हमारे मकान तक कुछ  आवाजे    .गुरूद्वारे से   आती थी ..कितने घरो को पार करके .गली से मुडके उसकी खिड़की तक ..."गुरुबानी " है  दार  जी  ने  बताया  था  दार जी सब उन्हें  दार जी कहते थे .उनका सब कुछ सफ़ेद था दाढ़ी ,भौंहे , मूंछे सर की पगड़ी .उसके घर से  चौथे मकान पर रहते थे ..
."प्रार्थना रब से बातचीत का जरिया है ".वे कहते
"पर रब से रोज एक ही बातचीत क्यों होती है "  मै  उनसे पूछता था  तो वो जोर जोर से हँसते थे  दार जी बहुत अच्छे  थे हर मंगलवार  मुट्ठी खोलते तो  हाथ में बूंदी के बड़े बड़े दाने निकलते..
वो महसूस करती है जैसे वो एक छोटा बच्चा है ....अपनी  आँखों  में चमक लेकर कुछ कुछ  बताता है  .....वो उसके पास ओर खिसक जाती है
"पहली  बार  दार  जी  के  साथ  मैंने  गली  का  दूसरा  कोना  पार  किया  था  गुरूद्वारे  के  वास्ते   ...., हर इतवार  जानी पहचानी गंधे  वहां होती ....गंध   का भी स्वाद होता है शायद ......आलू की गंध  ,हलवे की गंध ,रोटी  की गंध .हर इतवार वहां मेला सा लगता .बड़ी बड़ी भट्टिया बड़ी बड़ी कढाईया . चने हलवे से मिलकर कितना अच्छा स्वाद देती है .माँ ऐसे कभी नहीं बना पाती .एक रोज पतंग लूटते लूटते मै   गाड़ी के टायर के बीच आ गया  ....पैर की हड्डी गयी ..दार जी सीडिया नहीं चढ़ सकते थे...नीचे खिड़की से आवाजे देते ...एक रोज मेरे सोते सोते  अपने रब के पास चले गए"
वो उसके   नजदीक हो गयी  है इतने की  उसके बदन की खुशबु महसूस कर सकती है .एक अजीब सी गंध ...भली सी ..कभी कभी आप बरसो किसी शख्स के साथ एक तय समय गुजार कर उसे जान नहीं पाते ...हर शख्स के कितने हिस्से है उसका  कौन सा हिस्सा कब खुलता है...वो उसकी बांह पकड़ कर उसके काँधे पे सर रखकर इस धूप में बैठना चाहती है ....बिना लोगो की परवाह किये.....दिल्ली की उस रोज की ये  धूप उसके भीतर तक उतरती है .
पंद्रह दिन बाद का कोई एक बुधवार
वो कैंटीन में उसके पास आयी है
"कैसी हो" वो पूछता है .उसकी ग्रीन दाढ़ी ओर ग्रीन लगने लगी है
वो उसे  घूर कर देखती है .....वो सैंडविच खाने में बिजी है" चाय पियोगी " वो पूछता है
उसे  गुस्सा आता है .उसकी सैंडविच की प्लेट अपनी ओर खींचती है
. .".क्या हुआ ?"
तुम्हे वाकई कोई फर्क नहीं पड़ता ? वो गुस्से में है
किस बात का ?
मै पंद्रह दिनों से तुम्हे इग्नोर कर रही हूँ ...बात नहीं कर रही हूँ ..पूछोगे नहीं क्यों ?
वो उसकी ओर देखता है ...पर पूछता नहीं...... वो फिर भी बतलाती है
पंद्रह दिन पहले मै  गर्ल्स हॉस्टल में गयी थी वहां लडकियों ने कहा .वो रुक गयी है ....सर नीचे झुकाए.....".के तुम "..........तुम कई लडकियों ............
"के साथ सो चूका हूँ " वो चाय के घूँट पीता पीता उसकी बात पूरी करता है ..
वो हामी में सर हिलाती है
"बिना किसी की मर्जी के उसके साथ सोया जा सकता है ? वो चाय का आखिरी घूँट हुए पूछता है 
उसकी चाय आ गयी है .वो चाय में बेवजह चम्मच घुमा रही है .
तुम जिसे मेरी "गर्लफ्रेंड "कहती हो उसमे ओर तुममे यही अंतर है वो कभी मुझसे ये सवाल नहीं पूछती के मै तुमसे क्या बात करता हूँ  ....क्यों करता हूँ
" गर्लफ्रेंड "का बेवाज़िब जिक्र जाने क्यों उसमे गुस्सा भरता है .....तुम उसे हर बार  बीच में क्यों लाते हो ? वो घर से दूर हॉस्टल में है ....मै यहाँ लोकालाईट हूँ....मेरे अपने संस्कार है ....मेरी अपनी घर की कुछ वैल्यू .... मेरी अपनी इनहिबिशन ....मेरा अपना  नजरिया  है अच्छा ओर बुरा ....उसकी आवाज तेज हो गयी है ....कैंटीन में कुछ सर उनकी ओर मुड गये है
एक ख़ामोशी फिर उनके दरमियाँ पसर जाती है
इमोशन हमें "रिड्यूस" करते है....वो कहता है ...फिर उठ गया है ..
.वो  परेशां हो गयी है .वो यहाँ लड़ने नहीं आई थी
वो बाईक स्टार्ट कर रहा है ...वो कैंटीन से बाहर  निकल उसके पीछे पीछे आयी है .उसे "सोरी "कहना चाहती है
पर वो गुस्से में है
"हो सकता है वो  बुरी हो ,पर उसमे एक अच्छी बात है उसने कभी तुम्हे" बुरा "नहीं कहा ......उसके  पास अच्छे बुरे की कोई लिस्ट नहीं है जिसके साइड बार में राईट  का ऑप्शन हो .........ओर हाँ मै "वर्जिन" नहीं हूँ !
वो बाईक स्टार्ट करके चला गया है ओर वो रो पड़ी है
ये प्यार भीतर से बीहड़ ओर खुरदुरा जंगल है जहाँ कई जगह अकेलापन है !
गर याद रहे
इक्जाम ख़त्म हुए है . इंटर्नशिप के पहले छह  महीने इधर उधर की पोस्टिंग में निकल गए है ....अगले तीन महीने की
पोस्टिंग  उसने   दिल्ली ली है कहता है पापा का ओपरेशन होना है .इसलिए उसे तीन महीने वही रहना पड़ेगा इधर वो अपने लिए आये सब रिश्ते वो मना करती है ...एक...दो...तीन !
एक रिश्ता बाहर का है ,माँ के मन में वही अटका है
कही  तुम उससे प्यार  तो करने नहीं लगी ?
नहीं ! वो अपनी माँ से कहती है
शायद ! वो अपनी  बुआ से कहती है
"हाँ" वो अपनी बेस्ट फ्रेंड से कहती है
"उसे मालूम है "?उसकी बेस्ट फ्रेंड पूछती है
शायद !
ओर वो तुझे प्यार करता है ?
शायद ?
"शब्बा खैर " उसकी बेस्ट फ्रेंड सांस लेती है
वो तुम्हारे लिए राईट चोयेस नहीं है ....उसकी बेस्ट फ्रेंड उसे कहती है ....उसकी बुआ भी ......बिना पूछे उसकी माँ भी .....उसका दिमाग भी !
बस उसका दिल अलग बाते कहता है
कुछ दो  महीने अट्ठाईस दिन  कितने अलग होते है
"वो मेरे ज़ज्बात के आधे हिस्से पर  एक वक़्त से  काबिज़  है  बिना मेरी मर्जी के ."वो ट्रेन में अपनी गर्लफ्रेंड से  उसके बारे में कहता है
तुम उससे कह क्यों नहीं देते
मै उसे डिज़र्व नहीं करता ...वो बहुत अच्छी है . मै उसे खराब नहीं करना चाहता
" ओर तुम बहुत बुरे " .पागल ! दिक्कत ये है के उसके दोस्तों की तरह तुमने भी उसे  अच्छा होने का टैग लगा दिया  है ..सब वक़्त को वही पॉज़ कर रहे है  .वो  उसे  उसी तरह से देखना चाहते है जिस तरह से  बरसो से देखते आये है ...सब भूल गए है  उसके पास भी इमोशन है...... नोर्मल इमोशन
वो अपनी दोस्त की बात सुनता है ....ट्रेन के दरवाजे पर खड़े सिगरेट पीते पीते सोचता है   कॉलेज पहुँचते ही उसे कह देगा !!
दो दिन से उसे ढूंढता है.....
वो लॉकर रूम के बाहर दिखती है .अपनी बेस्ट फ्रेंड के साथ
  हाय ....कहाँ हो यार तुम
वो जवाब नहीं देती .उसकी बेस्ट फ्रेंड जवाब देती  है
एक गुड न्यूज़ है ...... इसकी शादी तय हो गयी है ....अगले  तीन महीने  में अमेरिका जा रही है अभी सारे सरटीफिकेट इकठ्ठा करने है ओर तैयारी भी
.वो  सर झुकाए  खड़ी है
 वो कोंग्रेट्स  नहीं कहता
उसकी बेस्ट फ्रेंड आगे बढ़ गयी है ... आवाज दे रही है ....वो उसे देखना भी चाहती है पर अपनी आँखे दिखाना नहीं चाहती .आहिस्ता आहिस्ता चल देती है ......डरती है..  वो  अभी पीछे से आवाज देगा ....रोकेगा ...पर .वो कुछ कहता नहीं .पार्किंग में अपने काइनेटिक के पास आकर वो रोती है .

हते है उसके बाद उस लड़के ने  कभी प्यार नहीं किया ,वो कोलेज की  किसी लड़की के साथ नहीं सोया ,  कोई मैच नहीं खेला ... हॉस्टल  वाले  कहते थे  अगले तीन साल हर सुबह उसके रूम में सबसे   पहला  गाना बजता "ओ हंसनी "!

विलुप्त नहीं होता प्यार ...न बंद होता किसी पैराग्राफ की आखिरी लाइनों में ......फुलस्टॉप लगाकर ,
बचा रह जाता है मेरे तुम्हारे भीतर थोडा थोडा .!!

(.ओर हाँ किसी भी कथा के पात्र काल्पनिक नहीं होते प्रेम कथाओ के तो बिलकुल नहीं)

नोटबुक !!

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  • दिसंबर की उस सर्द रात  बिस्तर पर उसके बाजू में  लेटा उसका नन्हा अचानक उससे पूछता है "ऊपर भगवान् जी  के पास डार्क ग्रे रजाई है पापा ! "
 वो किसी किताब से बाहर निकलता है  "डार्क ग्रे " ?
"तभी तो वो किसी को नहीं दिखती" छोटा धीमे से फुसफुसाता है . 
बचपन का ईश्वर स्कूल में भी रहता है ! 
  •  लिखना दरअसल अपने आप  को एक्सटेंड करने जैसा है . १२ साल की उम्र से ३५ के बीच कही भी आसानी से दौड़ा  जा सकता है .बिना गिरने का डर लिए .लिखना दरअसल  दोबारा कुछ रास्तो पर गुजरना है. कुछ  किवाड़ो को खोलना . 
  • अपने को सुनने का वक़्त दुनिया के सबसे अच्छे वक्तो में से एक है !
  • भी कभी उबता है वो भी इस सड़क से ,अपने ऑफिस से , अपनी रेसेप्शिनिस्ट से , ,चिल्लाते  रेडियो जौकी से ,अखबार  के खेल पन्ने से ,सेमिनारो में फलसफा पढ़ते बुजुर्गवारो से . क्या उबता होगा प्रेम गीत लिखने वाला लिरिस्ट भी कभी प्रेम से ? पुजारी भी ईश्वर से ? माली भी गुलाब से ? परिंदे भी आसमान से ? कोई पुराना मकान किसी गली से ? सन्यासी  संन्यास से ? 
  • दुःख की तरह  सुख के  भी अब स्थानीय  ध्रुव  है  !
  •  पार्क की  बेंच पर खामोश बैठा वो बुजुर्ग  आज उदास है .रोज  कबूतरों को दाना डालने वाला वो शख्स  कभी दाना बेचने वाले बच्चे से मौल- भाव नहीं करता . जीवन के कुछ  सन्दर्भ तात्कालिकता से उपजते है .बच्चो की अपनी दुनिया है , उनकी दुनिया में चहलकदमी सामान्य नहीं होती . . आधुनिक  दुनिया की  भी अपनी रूढिया है .आधी उम्र के बाद अपने जीवन साथी को खोना ज्यादा तकलीफ देह है. कोई  योग कोई एलोपैथी  अपनी  संवेदना को बचाये  रखने की "एकसरसाइज़" नहीं खोज पाया है .

दुनिया के एक हिस्से में  जीवन भी एक भौतिक क्रिया  है !
  • ब प्रेमिकाए एक सी नहीं होती . सब चोकलेट  कुतर कुतर कर नहीं खाती ,सबको गुलाब पसंद नहीं होते  ,सब बाल खुले रखकर  सुन्दर नहीं लगती  .सबसे प्यार करने के बाद आप में ओर प्यार नहीं जागता  .(सब प्रेमिकाए नहीं डरती कोकरोच से ,सब नहीं पढ़ती वुमेन मैगज़ीन ,सब नहीं जाती अवसाद में ब्रेक अप के बाद ,सब का फेवरेट नहीं होता पिंक कलर ,सबके लिए नहीं होता प्रेम पहला ओर आखिरी.)
 .रूमानी दुनिया की भी अपनी संकीर्णताये  है

  • रम्भ ओर अंत के बीच कुछ चीजों का उपस्थित होना  अनिवार्य नहीं है  .जीवन ओर म्रत्यु के बीच  एक चीज़ ओर  है जिसका जिक्र किसी किताब में नहीं है . आई. सी. यू !  जहाँ  हर बेड के साथ एक कागज अटेच्ड है .  बेड नंबर एक ग्यारह लाख , बेड नंबर दो पंद्रह लाख  बेड नंबर सिक्स बाईस लाख . पैसे  अपने साथ  इतिहास नहीं लाते  ,ना उपजी परिस्थितिया !    अकाउंट डिपार्टमेंट का कंप्यूटर   बेड  नंबर सिक्स की गाँव की बिकी जमीन को बिल की रिसिप्ट  में दर्ज नहीं करेगा   . अस्पताल के बीचो बीच एक मंदिर भी है 
  •  ईश्वर का भी ट्रांसफर होता है !

 यदि ज्ञान देता  मनुष्यत्व  तो / बुद्धिमानो  में नहीं  होता  "इगो " ./ सुखो के नहीं होते पाले / दुःख होते स्मृतिहीन / पृथ्वी नहीं बदलती भूगोल अपना / रोज  नहीं उगते  निजी  ईश्वर / बढ़ते नाखूनों की तरह रोज बढ़ता प्रेम / तुम जब लिखते  कविता / वो नहीं सहेजता दिन भर  भूख.

खुदा की शनाख्त मुश्किल होगी !

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  • क्रिकेट के मैदान के बाहर बैठी  छोटी लड़की  इसलिए दुखी है क्यूंकि उसे कोई क्रिकेट नहीं खेलने देता ,उसके बराबर  में बैठा लड़का वो इसलिए दुखी है क्यूंकि वो तीसरी गेंद पर ही आउट हो गया .वो दुखी है पर लड़की के दुःख में शामिल नहीं है दुःख का  सेंट्रल पॉइंट  बदलता रहता है,   हम  अपने  दुखो के "जूम" करके देखते है.!
  •  मार्क्स ,ओशो,   कबीर या  विवेकानंद    इंटेलेकचुवलटी  में कुछ जोड़  करने वास्ते नहीं है  न कागजी हूनर को तराशने के लिए . वे  रूह की  मरम्मत वास्ते है . आवाज लगाते हुंकारे है जो बरसो से कह रहे है के  दुःख में इंटरफेयर  करो  दूसरो के दुःख में भी  .दुखो का कोलाज़ मुत्तासिर  करता है पर अपने साथ  "एडिक्शन"  का भी खतरा  लाता है .गमो से  मोहब्बत  बड़ी  अजीब शै है   इससे कुछ वक़्त  रोशन  होने का अहसास रहता है  .भीतर रोशन कर " मै "  से मुलाकात का इल्म देती है  पर  उस रोशनी को सब कोनो में फेंकना  लाजिमी  होता है   दूसरे शख्स के अँधेरे कोनो में भी .वो कोने भी जो लौटकर उदासी देंगे ,पर"  मै "  उन्ही  कोनो से  लौटकर  बने  रहने में मुकम्मल होता  है 
रोजो -शब् एक सी नहीं गिरती बस्ती पर
  •  तकलीफों के अपने तयशुदा रास्ते होते है   खुदा तकलीफों के दरमियाँ न कोई हदबंदी करता है न कोई स्पीड ब्रेकर जैसी किसी  चीज़ में यकीन . वो  शायद तकलीफों का बिचोलोया है ऐसा बिचोलिया जो अपने पेशे के लिए  बड़ा  संजीदा  है.तभी कुछ  नस्ले खुरदुरी मिलती है . वैसे इस दुनिया के  सारे साधारण लोग खुरदुरे ही है   .शरीर के निचले हिस्से से बेकार उस १४ साल के लडको को उसका पिता गोद में उठाकर क्लिनिक में लाता है .माथे पर छोटे छोटे दाने है , उनकी डिटेल बतलाते बतलाते वो उसके माथे पर गिर आये उसको बालो को ठीक करता है . लड़का कुछ अस्पष्ट  सा बोलता है .पर पिता में उसकी भाषा को  ट्रांसलेट कर देने  के टूल किसी "शै " ने दे दिए है   .ऐसे पिता याददाश्त को आसानी से नहीं फलांगेगे  .मेमोरी सैल में कई सालो जिंदा रहेगे . शायद ताउम्र ! 
 कुछ मायनों के मुन्तजिर ना रहे
  •  सर से पाँव तक इतनी गर्मी में तीन जिस्म   रिक्शे में   काले कपड़ो में बंधे  जा रहे  है  . कुछ नस्लों में  मज़हब की  " किस्ते '  चुकाने की  संजीदगी  जिद  की तरह कायम है  .   मजहब  "डिटेकटिव सा बिहेव" करता है  .  इसका  मेटाबोलिजम  जुदा किस्म का है  "डायल्यूट"  नहीं होता.    मोबाइल का कैमरा  रिक्शे में बैठी लगभग  तेरह साल की लड़की की आँखों से आँखे मिल जाने पर जाने क्यों शर्मिंदा होकर   अपनी  आँख नीचे कर लेता है .  इस हिस्से में ऐसी तस्वीरो की किल्लत कभी नहीं होगी . बौद्धिकता के  लबादे में  आयातित  कई कम्प्यूटरी सुख है  ! कुछ  दुःख दिखते नहीं ओर कई लोग तो इन्हें दुःख की "टेबुल"   में रखते नहीं .
 ख्वाबो के जहाज आराम करते है
  •  ख्वाहिशो  की कई कतारे है  जो  फ़िक्रो की पाबन्दी के तहत अब तक  एक कदम भी चली नहीं है  नुक्सानात  से बचे रहने की "मिडिल क्लास हिच"की माफिक  ! हर लम्हे की पेशानी पे अलहदा तर्क है   "  गुजरने " से पहले ,   देखो न  नाखुदा  आखिरी किस्त भरने आया है
          " रोज उस नुक्कड़ से
             नुचे हुए दिन को
            हांक के ले जाता है
           वक़्त के गल्ले में !
             क्यों ना
          किसी शब ऐसा करे
           रस्ते से
        अपने अपने खुदा को
        "एक्सचेंज" करे !   " 
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