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ज़िंदगी तेरी बज़्म में गालिबन नहीं लाती

जब हम एक वक्फे में रहते है दूसरा दूसरे वक्फे में रहता है।
हर शै का एक वक़्फ़ा होता है !
वक्फा जानते है एक "पॉज़ "।
मै जिस वक्फे में रहता हूँ उसी की बाबत लिख सकता हूँ।बाज दफे मै कई दिनों एक ही वक्फे में रहता हूँ ख़ास तौर से दिसंबर में।
वो कहती है के "मुझे तुमसे सिर्फ दिसम्बर में मिलना चाहिए ,बाकी महीनो में तुम बोर हो जाते हो "
मै हंस देता हूँ.हक़ीक़त ये है के मै दिसंबर में भी दिलचस्प नहीं रहता।
एफ एम रेडिओ पर अरिजीत गा रहा है इस लड़के के गले में खुदा ने अता बरती है।
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बाज दफे सोचता हूँ गर खुदा वाकई इबादतगाह में रहने लगे तो भी लोग उसका इस्तेकबाल उसी तरह से करेंगे जिस तरह उसके ना होने के अहसास के कारण करते है। नुमाया होने पर कैसा सलूक करेंगे उसके साथ !

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स्टेज में बेस्ट परफॉर्म देने वाला आर्टिस्ट शो के बाद अकेले में बतलाता है वो उस दिन बहुत नर्वस था ,पहले कुछ स्टेप्स के दौरान उसे पालपिटेशन था ,। स्कूल में बैडमिंटन में हमेशा अव्वल आने वाला वो लड़का भी ड्रेसिंग रूम में बहुत घबराता था पर हर साल अव्वल आता रहा

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हर उम्र के आदमी के लिए किसी शहर की तस्वीर अलग होती है ,कोई कहता है पहले यहाँ इस कोने पर एक नीम का पेड़ था ,कोई मैदान को याद करता है ,कोई किसी चीज़ को। साल दर साल शहर अपनी सूरत बदलते है शुक्र है समंदर की कैफियत बदलने की ताकत अभी आदमी के पास नहीं आयी है।
मुझे उन लोगो से रश्क होता है जिनके शहर में समंदर है !

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हम एक सधाए हुए परिंदे है जो तय रास्तो से अलहदा नहीं चलते ,कोशिश भी नहीं करते। ,
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वे कहते है लफ्ज़ कोई हलचल पैदा नहीं करते ,,लिखना वक़्त जाया करना है वे जितना ताकतवर होते जाते है उतना ही लफ्ज़ो से डरने लगते है।अरिजीत अब भी गा रहा है मै उसकी आवाज का अब भी मुरीद हूँ


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